20-10-2013, 12:17 PM | #21 |
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Re: जीवन की छोटी छोटी पर महत्वपूर्ण बातें
अपने लिखने पर जब-जब ऐसे जुमले सुने, तब-तब हर बार, अपनी धारणा पर विश्वास और गहरा ही हुआ। मेरा मानना रहा है कि हमारे जीवन में कोई भी बात छोटी नहीं होती। इसके विपरीत, छोटी-छोटी बातें प्रायः ही बड़े प्रभाव छोड़ जाती हैं। बच्चों की बातों की अनदेखी और उपेक्षा करना हमारा स्वभाव है। किन्तु बच्चों की बातें भी हमें सबक सिखा देती हैं। मेरा छोटा भतीजा गोर्की पाँच-सात साल का रहा होगा। दादा ने उसे कोई काम बताया। वह अनसुनी कर जाने लगा। दादा ने कहा - ‘गुण्डे! कहाँ चल दिया?’ तब तक गोर्की दौड़ लगा चुका था। लेकिन दादा की बात सुनकर वह पलटा और घर के बाहर, सड़क से ही चिल्लाया -‘मैं गुण्डा तो आप गुण्डे के बाप।’ और कह कर गोर्की यह जा, वह जा। दादा के पास मौजूद सब लोग ठठा कर हँस दिए। किन्तु दादा गम्भीर हो गए। उसके बाद उन्होंने अपने तो क्या, किसी और के बच्चे को भी ऐसे सम्बोधन से नहीं पुकारा। आप-हम अपने बच्चों को ‘बेवकूफ, गधा, पाजी’ जैसे ‘अलंकरण’ देते रहते हैं। इसका एक ही मतलब हुआ कि हम बवेकूफ, गधे, पाजी के भी बाप हैं। बात छोटी है किन्तु मर्म पर प्रभाव करती है।
मुझे लगता है कि हमारे संकटों में सर्वाधिक व्यवहृत संकट यही है - किसी बात को छोटी मान कर उसकी अनदेखी करना। एक बार की गई अनदेखी कालान्तर में हमारा स्वभाव बन जाती है और इसके परिणाम प्रायः ही कष्टदायक होते हैं। अपने बड़े बेटे वल्कल को मैंने तब ही मोटर सायकिल सौंपी जब वह 18 वर्ष पूरे कर चुका था और लर्निंग लायसेन्स ले चुका था। मैं जानता था कि वह घर से बाहर, स्कूल के मित्रों के दुपहिया वाहन चलाता है। मैंने उसे ऐसा करने से हमेशा ही हतोत्साहित किया और कहता रहा कि वह अपराध कर रहा है। परिणाम यह हुआ कि वह यातायात नियमों और कानूनों के प्रति आज भी अतिरिक्त सतर्क है। इसके विपरीत, छोटे बेटे तथागत को सोलह वर्ष की अवस्था से पहले ही मोटरसायकिल चलाने को मिल गई। इस मामले में वह अपने बड़े भाई के मुकाबले अधिक असावधान और कम गम्भीर बना हुआ है। |
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छोटी छोटी बातें, motivating |
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