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Originally Posted by arvind
निशांत भाई और सिकंदर भाई,
ये सही है कि कोई सदस्य यहा क्या करता है यह महत्वपूर्ण है। बहुत से सदस्यो के इस बात से भी फर्क नहीं पड़ेगा कि प्रबंधन मे कैसे लोग है?
परंतु, अगर प्रबंधन मे साफ-सुथरी छवि के लोग हो, तो इसका फोरम मे लंबे अवधि मे अंतर स्पष्ट दिखाई देगा।
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अरविन्द जी ने किसी सूत्र पर नेट जगत के छलावा होने से सहमति प्रदान करते हुये एकांश अपनी ओर से भी जोड़ा था कि शायद इस फोरम पर भी छलावा है । मुझे समझ मेँ नहीँ आ रहा है कि जितेन्द्र जी ने महत्वपूर्ण प्रबन्धक होने के बावजूद इस सूत्र का निर्माण कैसे कर डाला । बात निकली है तो दूर तलक जायेगी की तर्ज पर सभी अपना मत प्रकट करने का निमन्त्रण पाकर अवश्य आयेंगे जबकि साक्षात्कार पर ही इस चर्चा को विराम दे देना चाहिये था जैसाकि अरविन्द भाई के सूत्र बैन किये जाने का विवरण का पटाक्षेप किया गया था क्योँकि प्रबन्धन को उसमेँ विवाद की संभावनायेँ नजर आयी थीँ । फोरम के नियम सँख्या 3 का स्वयं उल्लंघन करने वाले प्रबन्धन ने पता नहीँ क्यूँ ऐसे सूत्र का निर्माण कर डाला । खैर यह तो प्रबन्धन के विशेषाधिकार हैँ कि कब आँख खुली रखनी है कब बन्द करनी है किसको कब कौन सा मुखौटा पहनाना है । एक बात तो है कि साक्षात्कार पर युवी और सिकन्दर जी की तल्ख बातोँ से भीतर ही भीतर एक कसक उठी कि क्या हम यहाँ पर उस फोरम की ही चर्चा करने के लिये आते हैँ । हमारा दायरा सिकुड़ कर चन्द लोगोँ तक ही , एक फोरम विशेष तक ही सीमित रह गया है । हम अपनी ऊर्जा कहाँ खर्च कर रहे हैँ ? शायद हम अपने अतीत से पीछा नहीँ छुड़ा पा रहे हैँ । कुछ वहाँ जाकर , कुछ यहाँ रहकर उनकी चर्चा कर ।
अन्त मेँ , कुछ का पुश्तैनी घर वहाँ बना हुआ है और यहाँ स्वास्थ्य लाभ के लिये घूम जाते हैँ । दो नागरिकता का मजा लूट रहे हैँ । अनुच्छेद 370 का आनन्द ले विशेष बने हैँ और शेष उसे कोस रहे हैँ ।