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Old 17-11-2013, 12:13 AM   #11
Dark Saint Alaick
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Default Re: 'भारत रत्न' सचिन

हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में 'सचिन सा' दीदावर पैदा’




क्रिकेट को मजहब और उन्हें खुदा मानने वाले देश में एक अरब से अधिक क्रिकेटप्रेमियों की अपेक्षाओं का बोझ भी कभी सचिन तेंदुलकर को उनके लक्ष्य से विचलित नहीं कर सका और ऐसा उनका आभामंडल रहा कि कैरियर की आखिरी पारी तक भारत ही नहीं दुनिया की नजरें उनके बल्ले पर गड़ी रही । मुंबई में आज अपना 200वां और आखिरी टेस्ट खेलने वाले तेंदुलकर महान खिलाड़ियों की जमात से भी उपर उठ गए । क्रिकेट खुशकिस्मत रहा कि उसे तेंदुलकर जैसा खिलाड़ी मिला जिसने न सिर्फ समूची पीढी को प्रेरित किया बल्कि उसके इर्द गिर्द क्रिकेट प्रशासकों ने करोड़ों कमाई करने वाला एक उद्योग स्थापित कर डाला । चौबीस बरस तक सचिन ने जिस सहजता से अपेक्षाओं का बोझ ढोया, उससे सवाल उठने लगे थे कि वह इंसान हैं या कुछ और । पूरे कैरियर में एक भी गलतबयानी नहीं, मैदान के भीतर या बाहर कोई विवाद नहीं, शर्मिंदगी का एक पल नहीं । तेंदुलकर एक संत से कम नहीं रहे जिन्होंने अपनी विनम्रता से युवा पीढी के क्रिकेटरों को सिखाया कि शोहरत और दबाव का सामना कैसे करते हैं । सिर्फ 16 बरस की उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उतरे सचिन का सामना चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान से पहले ही कदम पर हुआ । वसीम अकरम और वकार युनूस के सामने उन्होंने जिस परिपक्वता का परिचय दिया, क्रिकेट पंडितों को इल्म हो गया कि एक महान खिलाड़ी पदार्पण कर चुका है ।
दुनिया ने सचिन की शख्सियत का एक और पहलू देखा जब 1999 विश्व कप के दौरान अपने पिता की मौत के शोक में डूबे होने के बावजूद उन्होंने अंतिम संस्कार के बाद लौटकर कीनिया के खिलाफ शतक जड़ा । अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 100 शतक जड़ने वाले एकमात्र बल्लेबाज सचिन को डान ब्रैडमेन के बाद सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर के रूप में याद रखा जायेगा । बतौर कप्तान वह कामयाब नहीं रहे और वह ऐसा दौर था जब बल्लेबाजी का दारोमदार उन पर इस हद तक था कि उनके आउट होने को भारतीय पारी का अंत माना जाता था । पिछले साल इंग्लैंड के खिलाफ वह खराब फार्म में थे और आस्ट्रेलिया के दौरे पर भी अपेक्षाओं का बोझ उन पर बढ गया । लेकिन सचिन ने आत्मविश्वास की नयी परिभाषा गढते हुए सुनिश्चित किया कि अपने घरेलू दर्शकों के सामने अपनी शर्तों पर क्रिकेट को अलविदा कहेंगे । अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण से काफी पहले तेंदुलकर ने 1988 में लार्ड हैरिस शील्ड अंतर विद्यालय मैच में विनोद कांबली के साथ 664 रन की साझेदारी करके अपनी प्रतिभा की बानगी पेश कर दी थी । उन्होंने पहला टेस्ट शतक 1990 में इंग्लैंड में लगाया । इसके बाद उन्होंने ब्रायन लारा के सर्वोच्च टेस्ट पारी (नाबाद 400) और सर्वोच्च प्रथम श्रेणी स्कोर (नाबाद 501) को छोड़कर बल्लेबाजी के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिये । वनडे क्रिकेट में दोहरा शतक जड़ने वाले भी वह पहले बल्लेबाज थे । उन्होंने फरवरी 2010 में ग्वालियर में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ यह कमाल किया । ब्रेडमैन ने 1999 में कहा था कि सचिन की शैली उनकी शैली से मेल खाती है।
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