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#11 |
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![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() Join Date: Jul 2013
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![]() एक दरख्त की तबाही......... सैकड़ों वर्ष पुराना पाकड़ (पकरिया: Ficus virens) का वृक्ष हुआ धराशाही: जानते हैं इस पेड से लोगों का जुडाव यूं नहीं था। हमें याद आता है कि गर्मी में जब हम इमली चौराहे से आर्यकन्या चौराहे की ओर जाते थे तो इस बात का अहसास रहता था कि अभी दुखः हरण नाथ मंदिर के पास पाकड के नीचे गुजरते वक्त ठंडक मिल जाएगी। अभी तक लगता था कि ऐसा हम ही सोचते थे, लेकिन हमारी तरह से और भी लोग थे। उनको भी इस पेड की ठंडक अच्छी लगती थी। धूप तो धूप यह पेड इतना घना था कि पानी बरसे तो छाते का काम करता था। न जाने कितने ही लोगों की रोजीरोटी इसी पेड के नीचे बैठकर चलती थी। ब्रिटिश भारत में जमीं थी जड़ें: धार्मिक कार्यों का गवाह था यह वृ्क्ष: जानते हैं यह पेड आजादी से पहले का था। न जाने कितनी ही यादों को संजोए हुए था यह पेड। जब मेरा विवाह हुआ तो यही पेड था जो गवाह था कुंआ पूजे जाने का। इसी पेड के नीचे एक कुंआ है, जिसकी परिक्रमा की थी। मेरी मां इसी कुंए में पैर डाल कर बैठी थी। याद तो नहीं आता है, वह कौन सी बात होती है विवाह के दौरान जब मां बेटे से वचन लेती है। मैने भी वह वचन अपनी मां को दिया था, तब यही पेड था जो गवाह था उस वचन का:..........
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पिता, बेबस लडकी, महाराजा, विक्रमादित्य, "सच्चा प्रेम" |
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