23-11-2013, 08:00 AM | #29 |
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Re: साक्षात्कार
1. अन्यत्र आपने बताया है कि रामायण और महाभारत आपकी पसंदीदा पुस्तकों में शामिल हैं. क्या आप बताने का कष्ट करेंगे कि आपको महाभारत क्यों पसंद है?
महाभारत मुझे इसलिए पसन्द है, कि इसमे सब कुछ है। इतिहास, धर्म, परंपरा, राजनीति, कूटनीति, संग्राम, षडयंत्र, वीर गाथा, कायरता और धूर्तता, ईर्ष्या, प्रेम, भक्ति, निष्ठा और स्वामिभक्ति, मित्रता, द्वेष, पति-पत्नि सम्बन्ध, प्रेमी-प्रेमिका सम्बन्ध, जाति सम्बन्धी घटनाएं, कुल मर्यादा, और दिव्य-उपदेश। ऐसा कोई विषय नहीं है जो आप इस ग्रन्थ में नहीं पाएंगे। महाभारत के किस पात्र ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया है और क्यों? कैसे बताऊँ? किसको चुनूं? हर एक पात्र ने मुझे प्रभावित किया। कर्ण से सहानुभूति है और मैं शायद कर्ण को चुनता पर द्रौपदी चीरहरण घटना के समय, उसने कौरवों का साथ दिया, और मेरे लिए यह असह्य है। मेरी नज़रों मे उसका उसी समय पतन हो गया। मैं नहीं मानता कि इस कहानी में किसी पात्र को हीरो कहा जा सकता है, पर शायद अर्जुन का दावा सबसे सशक्त है। पर मेरी राय में रण छोडकर भागना उसे भी अयोग्य बना देता है। पान्डवों को मैं आदर्श हीरो नहीं मान सकता। न ही कौरव बिना कोई गुण के पात्र थे। कृष्ण तो भगवान हैं, और हीरो से भी ऊपर! उनकी चर्चा यहाँ नहीं होनी चाहिए! अन्य कई सम्मानित पात्र, जैसे भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य सर्वथा बेकसूर नहीं थे। सब के चरित्र में मुझे कोई न कोई त्रुटि नज़र आती है। वेदव्यासजी ने किसी को नहीं छोडा। सब को नंगे कर दिए। महाभारत मुझे बार बार पढने को जी चाहता है और जैसे जैसे मेरी आयु बढती जाती है, मैं घटनाओं का नये ढंग से विश्लेषण करता रहता हूँ और मेरी राय बदलती रहती है। पहले, हम भी सोचते थे कि राज्य पाण्डवों को सौंपा जाना चाहिए था पर यदि आज के नियम और कानून के हिसाब से चलें तो मेरी राय में पांडवों का कोई हक नहीं बनता। महाभारत एक ऐसी सशक्त कहानी है, कि इसके लिए नोबल पुरस्कार भी तुच्छ है। विश्व के सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में इसे मैं प्रथम स्थान देना चाहूँगा। 2. अभी हाल ही में गिरीश कर्नाड ने एक भाषण के दौरान कहा कि भारतीय सिनेमा अपने नाच गानों के बल पर ही हॉलीवुड की चुनौती का सामना कर सका है और अब तक टिका हुआ है वरना हॉलीवुड इसे भी अन्य देशों के सिनेमा की तरह निगल जाता. क्या नाच गाने ही हमारे सिनेमा का सबसे शक्तिशाली पक्ष है? आप इस बारे में क्या सोचते हैं? गिरीश कार्नाड से असहमत। यह तो मुझे बेतुकी बात लगती है। हाँ, हॉल्लीवुड, तकनीकी दृष्टिकोण से, सर्वश्रेष्ठ है पर कहानी, पटकथा, निर्देशन, और अभिनय में हम किसी से कम नहीं। यदि हमारी फ़िल्मों में नाच गाने न भी हो, फिर भी सफ़ल हो सकते हैं। हॉल्लीवुड की फ़िल्में केवल हमारी शहरों में अँग्रेजी जानने वालों को प्रभावित कर सकती हैं। भारत के ज्यादतर लोग, उनके पात्रों से, और कहानी और situations से relate नहीं कर सकेंगे। हॉल्लीवुड से बॉल्लीवुड को कोई खतरा नहीं है, न कभी था और न कभी होगा। यदि मुझे फिल्म देखने जाना है और एक ही समय में दो फ़िलमें चल रही है, एक सुपरहिट हॉल्लीवुड फ़िल्म और दूसरी एक अच्छी हिन्दी या तमिल या मलयालम फ़िल्म, और मैं एक ही देख सकता हूँ तो मैं देशी फ़िल्म ही चुनूँगा। कह दीजिए गिरीशजी को, यह बात। |
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