26-03-2014, 05:42 PM | #11 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
लोपामुद्रा से ऐसा कह अगस्त्य धन मांगने के लिए महाराज श्रुतर्वा के पास पहुंचे। उनके आने का समाचार पाकर श्रुतर्वा अपने मंत्रियों के साथ उनकी अगवानी के लिए अपने राज्य की सीमा तक आया और उन्हें आदरपूर्वक नगर में ले गया। फिर उसने अत्यंत विनयपूर्वक उनके आगमन का कारण पूछा। तब अगस्त्य ने कहा, राजन्, मैं धन की इच्छा से आपके पास आया हूं। अत: आपको जो धन दूसरों को कष्ट पहुंचाए बिना मिला हो, उसी में से यथाशक्ति दीजिए।
अगस्त्य की बात सुनकर राजा ने अपने सारे आय-व्यय का हिसाब उनके आगे रख दिया और कहा कि इसमें से आप जो धन लेना उचित समझें, वही ले लें। अगस्त्य ने देखा कि उस हिसाब में आय-व्यय का लेखा बराबर था। इसलिए यह सोचकर कि इसमें से थोड़ा-सा भी धन लेने से प्राणियों को दुख होगा, उन्होंने कुछ नहीं लिया। फिर वे श्रुतर्वा को साथ लेकर व्रघ्नश्व के पास चले। व्रघ्नश्व ने भी अपने राज्य की सीमा पर आकर उन दोनों का विधिवत स्वागत किया, उन्हें घर ले जा कर अर्घ्य दिया और पधारने का प्रयोजन पूछा। अगस्त्य ने उसे भी कहा, राजन, हम दोनों आपके पास धन लेने की इच्छा से आए हैं। अत: तुम बिना प्रजा को पीड़ा पहुंचाए, अपने प्राप्त धन में से हमें यथासंभव भाग दो। अगस्त्य की बात सुनकर उसने भी उन्हें आय-व्यय का हिसाब दिखा दिया और कहा कि इसमें जो धन अधिक हो, वह आप ले लीजिए। अगस्त्य ने आय-व्यय का लेखा बराबर देखकर विचार किया कि इसमें से कुछ भी लेने से प्राणियों को दुख ही होगा। इसलिए वहां से धन लेने का संकल्प छोड़ कर वे तीनों पुरुकुत्स के पुत्र महान धनवान राजा त्रसद्दस्यु के पास चले। इक्ष्वाकुलभूषण महाराज त्रसद्दस्यु ने भी उसी प्रकार उनका स्वागत सत्कार किया। वहां भी आय-व्यय का जोड़ समान देखकर उन्होंने धन नहीं लिया। >>>
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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