16-06-2014, 10:07 AM | #11 |
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Re: काका हाथरसी की हास्य कविताएँ
फादर ने बनवा दिये तीन कोट¸ छै पैंट¸कालिज स्टूडैंट / काका हाथरसी लल्लू मेरा बन गया कालिज स्टूडैंट। कालिज स्टूडैंट¸ हुए होस्टल में भरती¸ दिन भर बिस्कुट चरें¸ शाम को खायें इमरती। कहें काका कविराय¸ बुद्धि पर डाली चादर¸ मौज कर रहे पुत्र¸ हडि्डयां घिसते फादर। पढ़ना–लिखना व्यर्थ हैं¸ दिन भर खेलो खेल¸ होते रहु दो साल तक फस्र्ट इयर में फेल। फस्र्ट इयर में फेल¸ जेब में कंघा डाला¸ साइकिल ले चल दिए¸ लगा कमरे का ताला। कहें काका कविराय¸ गेटकीपर से लड़कर¸ मुफ़्त सिनेमा देख¸ कोच पर बैठ अकड़कर। प्रोफ़ेसर या प्रिंसिपल बोलें जब प्रतिकूल¸ लाठी लेकर तोड़ दो मेज़ और स्टूल। मेज़ और स्टूल¸ चलाओ ऐसी हाकी¸ शीशा और किवाड़ बचे नहिं एकउ बाकी। कहें 'काका कवि' राय¸ भयंकर तुमको देता¸ बन सकते हो इसी तरह 'बिगड़े दिल नेता।'
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