22-06-2014, 10:13 AM | #1 |
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भूख
मेरा गीत चाँद है न चांदनी है आजकल, ना किसी के प्यार की ये रागिनी है आजकल| मेरा गीत हास्य भी नहीं है माफ़ कीजिये, साहित्य का भाष्य भी नहीं है माफ़ कीजिये| मै गरीब के रुदन के आंसुओ की आग हूँ, भूख के मजार पर जला हुआ चिराग हूँ| मेरा गीत आरती नही है राज पट की, जगमगाती आत्मा है सोये राज घट की| मेरा गीत झोपडी के दर्दो की जुबान है, भुखमरी का आइना है, आंसू का बयान है| भावना का ज्वार भाटा जिये जा रहा हू मै, क्रोध वाले आंसुओ को पिए जा रहा हू मै| मेरा होश खो गया है लहू के उबाल में, कैदी होकर रह गया हू, मै इसी सवाल में| आत्महत्या की चिता पर देख कर किसान को, नींद कैसे आ रही है देश के प्रधान को|| सोच कर ये शोक शर्म से भरा हुआ हू मै, और मेरे काव्य धर्म से डरा हुआ हू मै | मै स्वयं को आज गुनेहगार पाने लगा हू, इसलिए मै भुखमरी के गीत गाने लगा हू| गा रहा हू इसलिए की इन्कलाब ला सकूं | झोपडी के अंधेरों में आफताब ला सकूं| इसीलिए देशी और विदेशी मूल भूलकर, जो अतीत में हुई है भूल, भूल कर| पंचतारा पद्धति का पंथ रोक टोक कर, वैभवी विलासिता को एक साल रोक कर| मुझे मेरा पूरा देश आज क्रुद्ध चाहिए, झोपडी की भूख के विरुद्ध युद्ध चाहिए| मेहरबानों भूख की व्यथा कथा सुनाऊंगा, महज तालियों के लिए गीत नहीं गाऊंगा| चाहे आप सोचते हो ये विषय फिजूल है, किंतु देश का भविष्य ही मेरा उसूल है| आप ऐसा सोचते है तो भी बेकसूर है, क्योकिं आप भुखमरी की त्रासदी से दूर है| आपने देखि नही है भूखे पेट की तड़प , भूखे पेट प्राण देवता से प्राण की झड़प| मैंने ऐसे बचपनो की दास्ताँ कही है, जहाँ माँ की सुखी छातियों में दूध नही है| जहाँ गरीबी की कोई सीमा रेखा ही नही, लाखो बच्चे है जिन्होंने दूध देखा ही नहीं| शर्म से भी शर्मनाक जीवन काटते है वे, कुत्ते जिसे चाट चूके, झुटन चाटते है वे| भूखा बच्चा सों रहा है आसमान ओढ़ कर, माँ रोटी कम रही है, पत्थरों को तोड़ कर| जिनके पाँव नंगे है,और तार तार है, जिनकी सांस सांस साहूकारों की उधार है| जिनके प्राण बिन दवाई मृत्यु के कगार है, आत्महत्या कर रहे है भूख के शिकार है | बेटियाँ जो शर्मो हया होती है जहान की, भूख ने तोडा तो वस्तु हो गई दुकान की| भूख आत्माओ का स्वरूप बेच देती है, निर्धनों की बेटियों का रूप बेच देती है| भूख कभी कभी ऐसे दांव पेंच देती है, सिर्फ 2000 में माँ बेटा बेच देती है| भूख आदमी का स्वाभिमान तोड़ देती है, आन बान शान का गुमान तोड़ देती है| भूख सुदमाओ का अभिमान तोड़ देती है, महाराणा प्रताप की भी आन तोड़ देती है| किसी किसी मौत पर धर्म कर्म भी रोता है,क्योंकि क्रिया क्रम का भी पैसा नहीं होता है| घरवाले गरीब आंसू गम सहेज लेते है, बिना दाह संस्कार मुर्दा बेच देते है| थूक कर धिक्कारता हू , मै ऐसे विकास को, जो कफ़न भी देना पाए गरीबों की लाश को| भूख का निदान झूटे वायदों में नही है, सिर्फ पूंजीवादियो के फायदे में नही है| भूख का निदान कर्णधारों से नही हुआ, गरीबी हटाओ जैसे नारों से नही हुआ| भूख का निदान प्रशाशन का पहला धर्म है, गरीबों की देखभाल सिंहासन का धर्म है| इस धर्म की पलना में जिस किसी से चुक हो, उस के साथ मुजरिमों के जैसा ही सलूक हो| भूख से कोई मरे ये हत्या के समान है, हत्यारों के लिए मृत्युदंड का विधान है| कानूनी किताबो में सुधर होना चाहिए, मौत का किसी को जिम्मेदार होना चाहिए| भूखो के लिए नया कानून मांगता हु मै, समर्थन में जनता का जूनून मांगता हु मै| ख़ुदकुशी या मौत का जब भुखमरी आधार हो, उस जिले का जिलाधीश सीधा जिम्मेदार हो| वह का एम् एल ए , एम् पी भी गुनेहगार है, क्योंकि ये रहनुमा चुना हुआ पहरेदार है| चाहे नेता अफसरों की लॉबी आज क्रुद्ध हो, हत्या का मुकदमा इन्ही तीनो के विरुद्ध हो| अब केवल कानून व्यवस्था को रोक सकता है, भुखमरी से मौत एकदिन में रोक सकता है| आज से ही संविधान में विधान कीजये, एक दो कोल्लेक्टरो को फंसी तंग दीजिये| कवि : हरी ओम पवार
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कविता, भूख, रोटी, bhookh, hunger, roti |
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