17-09-2014, 11:54 PM | #11 |
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Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘आं हो यार, जब वोट देबे अधिकार सबके सरकार देलकै हें तब सबके वोटा देबेले काहे नै मिलो है।’’
‘‘ताकत के जमाना है हो, गांधी जी बनके केकरो कुछ नै मिले बाला है।’’ यह विमलेश की आवाज थी। विमलेश भी राजनीति में पकड़ रखता था और वह अपने जाति का नेता माना जाता है। उसके पिताजी की राजनीति पकड़ है। ‘‘हां हो सूटर दा केतना साल से सबके जागाबे में लग हखीन पर कोई साथ दे है?’’ इ पूरा गांव ही मुर्दा है।’’ कमल ने कहा। हमलोगों की यह बहस चल ही रही थी कि बाजार से लौट रहे सूटर दा ने टोक दिया। ‘‘की हो जवान सब चहतै तब साला कोई वोट नै देबेले देतै, सबतो खाली पिछूआ में बोलो है। ‘‘ऐसन की बात है सूटर दा, अबरी हमसब साथ देबो, देखल जइतै जे होतइ से।’’ मैंने जोश में आकर साथ देने की बात कह दी। फिर कुछ देर तक चर्चा चलती रही। वहीं पर मालूम हुआ कि कल विधायक जी आने वाले हैं गांव में वोट मांगने। दलितों के लिए आरक्षित इस क्षेत्र के चाौधरी जी विधायक थे पर उनके उपर गांव के दबंगों का ही कब्जा था। तभी तो हमलोगों को सुनाते हुए विमलेश ने कहा भी था- ‘‘हां हो विधायक चाहे कोई जात के होबै पर उ सुनो तो तोर बभने सब के है।’’ >>>
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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