25-09-2014, 01:03 PM | #1 |
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परमात्मा को धन्यवाद कहने में झिझक क्यों?
परमात्मा को धन्यवाद कहने में झिझक क्यों?
संसार में कोई व्यक्ति आपके बच्चे को स्नेहवश टॉफी या अन्य उपहार देता है तो आप झट से अपने बच्चे को यह कहते हैं कि अंकल को थैंक्यू बोलो! यह संसार का छोटा-सा सदाचार है। फिर हमें भगवान को धन्यवाद कहने में झिझक क्यों होती है जिसने हमें जन्म दिया है और हमारा पालनकर्ता है। हम इसी बात से अंदाज लगा सकते हैं कि संसार में कितने असली भक्त हैं। जाहिर है, भक्तों की संख्या कम है। संसार में हम जिसे प्रेम करते हैं उसे बेहतरीन चीजें भेंट करके खुश करना चाहते हैं तो फिर भगवान के साथ हम ऐसा क्यों नहीं कर पाते ? हमें भगवान के साथ सबसे अधिक प्रेम करना चाहिए और बेहतरीन से बेहतरीन चीज उसे भेंट करनी चाहिए। नारद जी यह भी कहते हैं कि जब भी गृहस्थ को समय मिले भगवान वासुदेव चरित कथा का श्रवण करें। भगवान की अवतार कथाएं सुनकर हमें यह मालूम होता है कि वह हमें तारने के लिए ही अवतार लेते हैं। इससे हमारी श्रद्धा और विश्वास और दृढ़ होते हैं। हम जल्द ही जान जाते हैं कि वह हमसे कहीं भी दूर नहीं है। जिस प्रकार पलकें हमारी आंखों की रक्षा करती हैं उसी प्रकार भगवान हमारे हृदय में बैठे हुए हमारी देखभाल कर रहे हैं। भगवान की अवतार कथा से भगवान की दया, करुणा और उनके वात्सल्य की गहराई का पता चलता है। >>>
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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