05-10-2014, 06:20 PM | #1 |
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धरती-दोष
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आरम्भ की गई स्*वच्*छ भारत अभियानका व्यापक असर देश पर पड़ने लगा है.. मेरा मतलब है देशवासियों पर पड़ने लगा है. मैं सुबह-सुबह ताज़ा-ताज़ा ऑक्सीजन का आनन्द लेने के लिए बाहर निकला तो तीन-चार बुद्धिजीवियों ने घेर लिया. एक ने पान की पीक बेदर्दी से सड़क पर थूकते हुए कहा- ‘मोदी की बात तो ठीक लगती है. हमारे देश को स्वच्छ होना ही चाहिए.’ दूसरे ने कहा- ‘इस बारे में आप भी कुछ कहिए. आपका क्या विचार है?’ मैंने कहा- ‘अभी मेरा भाषण देने का मूड नहीं है.’ दूसरे ने कहा- ‘लगता है आपका भाव बढ़ गया है. इसीलिये बोलने से इन्कार कर रहे हैं.’ मजबूरन अपना बढ़ा भाव गिराने के लिए मैंने बोलना चालू किया- ‘स्*वच्*छ भारत अभियान देश के विरुद्ध है. क्या आपको पता है- इससे देश में कितनी बेरोज़गारी बढ़ जायेगी और कितने लोग बेरोजगार हो जाएँगे? यदि हम देशवासी गन्दगी नहीं फैलाएँगे तो गन्दगी साफ़ करने वालों की रोजी-रोटी छिन जायेगी...’ एक ने टोकते हुए कहा- ‘आप स्*वच्*छ भारत अभियान के पक्ष में बोलिए, विपक्ष में नहीं.’ मैंने मुँह बनाते हुए कहा- ‘आपको पहले बताना चाहिए था- आप क्या सुनना चाहते हैं? क्योंकि अन्त में लोग वही सुनते हैं, जो वो सुनना चाहते हैं!’ सभी ने एक ही सुर में कहा- ‘स्*वच्*छ भारत अभियान के पक्ष में बोलिए,’ मैंने बोलना शुरू किया- ‘हम सभी देशवासियों को चाहिए कि सड़क पर बिल्कुत गन्दगी न फैलाएँ. सड़क पर गन्दगी नहीं होगी तो उसे साफ़ करने में देश का जो धन खर्च होता है, वह बच जाएगा. गन्दगी देश का बहुत बड़ा दुश्मन है और हम सब को चाहिए कि एकजुट होकर अपने देश से गन्दगी के दुश्मन को निकाल फेंकें. सभी जानते हैं- बूँद-बूँद से घड़ा भरता है और यदि उसी घड़े में एक छोटा सा छेद भी हो जाए तो बूँद-बूँद करके घड़ा खाली भी हो जाता है. देश से गन्दगी निकाल फेंकनें के लिए हमें बहुत अधिक मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है. बस हमें गन्दगी के घड़े में एक छोटा सा छेद बनाना होगा और उस छेद से देश की सारी गन्दगी बूँद-बूँद करके देश से बाहर चली जाएगी. क्या आप लोग तैयार हैं- देश की गन्दगी के घड़े में छोटा सा छेद बनाने के लिए?’ एक ने प्रसन्न होकर कहा- ‘वाह-वाह.. क्या बात कही है आपने- बस गन्दगी के घड़े में छोटा सा छेद बनाना है! लीजिए, इस बात पर हमारी ओर से एक केला खाइए.’ सुबह-सुबह निःशुल्क ऑक्सीजन के सेवन के साथ छोटे से भाषण के लिए निःशुल्क केला मिलता देखकर हमारी जीभ लपलपाने लगी. हमने बिना धन्यवाद दिए केले का भक्षण करते हुए कहा- ‘हम सभी को चाहिए कि स्वच्छ भारत अभियान में आज ही तन-मन से लग जाएँ और अपने देश को साफ़-सुथरा बनाएँ. क्या अच्छा लगता है- सड़क पर गन्दगी फ़ैली है?’ कहते हुए मैंने केले का छिलका सड़क पर फेंक दिया. एक ने टोकते हुए कहा- ‘आप स्वच्छ भारत अभियान की अच्छी बात करते हैं और खुद केले का छिलका सड़क पर फेंकते हैं?’ केला देने वाले ने हँसते हुए कहा- ‘केला देकर हमने आपका स्टिंग-ऑपरेशन किया है. केले का छिलका सड़क पर फेंककर आप हमारे स्टिंग-ऑपरेशन के जाल में बुरी तरह फँस गए हैं!’ मैंने सकपकाकर कहा- ‘देखिए, मेरे पंडित ने मुझे बताया है कि मुझे धरती-दोष है और इसे ठीक करने के लिए मुझे एक हफ्ते तक केला खाकर केले का छिलका ज़मीन पर फेंकना होगा, तब जाकर धरती-दोष दूर होगा!’ एक विज्ञ ने प्रश्नवाचक दृष्टि से मुझे घूरते हुए संदेहास्पद स्वर में कहा- ‘सूर्य दोष, चन्द्र दोष, मंगल दोष, बुध दोष, गुरु दोष, शुक्र दोष, शनि दोष, राहु दोष, केतु दोष तो हमने सुना है. ये धरती-दोष पहली बार सुन रहा हूँ. आपके पंडित का क्या नाम है?’ मैंने घबड़ाकर बात बनाते हुए कहा- ‘धरती माता की छाती पर हम अपने भारी पाँव रखकर चलेंगे तो धरती-दोष तो लगेगा न? पंडित कह रहा था- परिहार आवश्यक है. इसमें बनता काम बिगड़ जाता है!’ दूसरे ने केला खाकर छिलका सड़क पर फेंककर धरती-दोष का परिहार करते हुए कहा- ‘मुझे भी धरती-दोष लगता है. बनता हुआ काम बिगड़ जाता है. एक हफ्ते तक लगातार फेंकना है?’ मौका मिलते ही हमने वहाँ से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी!
Last edited by Rajat Vynar; 06-10-2014 at 04:45 PM. |
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