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Old 27-11-2014, 12:15 AM   #28
soni pushpa
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Default Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है

Quote:
Originally Posted by Pavitra View Post
[size="3"]हम सभी अपनी ज़िन्दगी अपने हिसाब से जीना चाहते हैं। हर रोज़ प्लानिंग करते हैं कि आज क्या करना है , कल क्या करना है। कभी कभी तो हम अपनी पूरी ज़िन्दगी की ही प्लानिंग कर लेते हैं। और फिर एक दिन सब कुछ बिलकुल अपोजिट हो जाता है हमारी प्लानिंग के , हम सोचते रह जाते हैं कि हमने तो पूरी कोशिश की सब कुछ अपनी प्लानिंग के अनुसार करने की फिर ये सब कुछ उल्टा कैसे हो गया ???
हमारी नज़र बहुत छोटी है , हम देख नहीं पाते कि हमारे लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं ? अरे हम तो कल क्या होगा ये भी नहीं जान सकते]
[QUOTE=Pavitra;540597][size="3"]हम सभी अपनी ज़िन्दगी अपने हिसाब से जीना चाहते हैं। हर रोज़ प्लानिंग करते हैं कि आज क्या करना है , कल क्या करना है। कभी कभी तो हम अपनी पूरी ज़िन्दगी की ही प्लानिंग कर लेते हैं। और फिर एक दिन सब कुछ बिलकुल अपोजिट हो जाता है हमारी प्लानिंग के , हम सोचते रह जाते हैं कि हमने तो पूरी कोशिश की सब कुछ अपनी प्लानिंग के अनुसार करने की फिर ये सब कुछ उल्टा कैसे हो ग




कर्म की व्याख्या हर किसी इन्सान ने अपने अपने विचारो अनुसार की है किन्तु जहाँ तक मेने सुना है समझा है पवित्रा जी की आप कितनेभी पुण्य कर्म करो फिर भी पाप कर्म का फल भुगतना तो पड़ता ही है इन्सान को . यदि पाप करके फिर १०० गरीब को खाना खिला दिया तो उस इन्सान का पाप कभी धुल नही सकता एक न एक दिन उसे उसके पापों की सजा मिलती ही है फिर वो चाहे किसी भी रूप में क्यों न हो. कहते हैं न की अनजाने में किये पाप की सजा भी भुगतनी ही पड़ती है जिसका सबसेबड़ा उदहारण है भगवन रामचंद्र जी के पिता दसरथ जी जिन्होंने श्रवण कुमार को अनजाने में मृग समझकर तीर चलाया और उसकी मृत्यु के कारन राजा दसरथ बने थे जिसकी सजा उन्हें मिली और पुत्र वि योग में ही उनके प्राण गए .. जब त्रेता युग में पाप से छुटकारा पुण्यों द्वारा नही हो पाता था तो सोचिये अभी तो कलियुग है keise मानव छूट सकता है अपने पापो की सजा से .

और अब बात आती है जब जो मिले उसमे संतुष्ट रहना की ..प्रारब्ध समझकर चुपचाप सह लेना .यहाँ में इतना कहूँगी की एईसी स्थिति मानव की तब आती है जब वो संसार के सभी मोहमाया से विलग हो गया हो , या फिर कोई साधू या संत हो जो हर दुःख और ख़ुशी में एक जेइसा रह सकता है क्यूंकि सांसारिक मानव के लिए सर्वथा त्याग असंभव है क्यूंकि उसपर हजारो जिम्मेदारियां है कर्त्तव्य है उसके और कई चीजे और परिस्थियाँ उसके जीवन के लिए बेहद जरुरी होतीं हैं जेइसे की घर का मुखिया है उसे बच्चो की परिवार की देखभाल के लिए सबका ख्याल रखना जरुरी है वो ये कहकर नही बैठ सकता की जो है उसमे खुश रहो हमे जो भगवन देगा उसमे चला लो एइसा सर्वथा असंभव है जीवन के लिए,, क्यूंकि हम समाज में देखते हैं की हम अपने लिए बाद में जीते है अपनो के लिए पहले जीते हैं हमे कोई चीज़ न मिले चलेगा किन्तु अपनों को कुछ उनकी आवश्यकतानुसार नही दे सकते तब बहुत दुःख होता है इन्सान को ... और कर्म को तो हरेक युग में पहले रखा गया है भगवन कृष्णा ने अर्जुन का साथ तब दिया जब उसने खुद युध्द करने को तेयार हुआऔर हाँ कही.
हाँ आप यदि कर्म करते हो और साथ साथ भगवन का सहारा लेते हो तब आपके भाग्य की रेखा अवश्य चमकती है क्यूंकि मेहनत और लगन से काम करने वाले का साथ भगवन देते ही है .

कही सुना पढ़ा होगा आप सबने भी की, दिल से और लगन से यदि आप मेहनत कुछ मांगोगे तो सारी कायनात उसे आपको मिलाने में लग जाती है. आपकी की गई मेहनत कभी विफल नही जाती किन्तु भगवन भी उसका ही साथ देते हैं जो खुदका साथ देता है .
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happiness, life, motivation


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