17-12-2014, 04:09 PM | #11 |
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Re: अलवर (राजस्थान) पर्यटन
भरथरी (भर्तहरी) गुफा तथा समाधि मंदिर
यहाँ तो लकडी के जंगल भी नहीं है। फ़िर यहाँ के लकडी वाले बेलन इतने मशहूर क्यों है? मन्दिर के आसपास कई जातियों की धर्मशाला बनी हुई है। जिसमें गुर्जर, यादव व सैनी समाज की धर्मशाला प्रमुख है। मेले के दिनों को छोडकर यहाँ ठहरना मुश्किल नहीं है। भृतहरि महाराज को यहाँ के गुर्जर समाज ने काफ़ी सहयोग दिया था जिससे गुर्जर समाज इनकी समाधी पर अपना हक समझता है। अशोक भाई को कोई सीडी चाहिए थी। वे सीढी तलाशने चले गये। तब तक मैंने समाधी मन्दिर व भैरव मन्दिर के दर्शन के साथ फ़ोटो भी ले लिये। बाहर आने के बाद दुकानों के बीच पहुँचकर देखा कि वहाँ नशा करने वाली चिलम बिक्री के लिये उपलब्ध है। अपने एक साथी को चिलम पीते हुए स्टाइल में फ़ोटो के कहा। चिलम खाली थी अन्यथा उसमें से धुआं भी निकलता दिखायी देता। कुछ देर वहाँ रुकने के बाद वापिस लौटने लगे। राजा भृतहरि की कहानी काफ़ी रोमांचक है। उज्जैन के राजा गन्धर्वसेन के दो पुत्र थे। पहली पत्नी से भृतहरि हुए, जबकि दूसरी पत्नी से छोटे पुत्र विक्रम हुए। चन्द्रसेन की मृत्यु के उपरांत भृतहरि राजा बने। भृतहरि की पत्नी का नाम पिंगला था। राजा अपनी पत्नी का पागलपन की हद तक दीवाना था। पत्नी के प्रति इतना प्यार व कवि ह्र्दय होने के कारण राजा विलासपूर्ण जीवन जीने लगा। विक्रम ने इस बात का विरोध किया तो राजा भृतहरि ने विक्रम को राज्य से बाहर निकाल दिया। जिस रानी के प्यार में राजा इतना दीवाना था उसी रानी के कारण राजा का मोह जल्द ही टूटने वाला था। राजा को अपनी पत्नी के कारण वैराग्य हो गया। राजा के लिये कई कहानी बतायी जाती है।
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