My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Hindi Forum > The Lounge
Home Rules Facebook Register FAQ Community

 
 
Thread Tools Display Modes
Prev Previous Post   Next Post Next
Old 20-01-2015, 06:49 PM   #1
Rajat Vynar
Diligent Member
 
Rajat Vynar's Avatar
 
Join Date: Sep 2014
Posts: 1,056
Rep Power: 29
Rajat Vynar has a brilliant futureRajat Vynar has a brilliant futureRajat Vynar has a brilliant futureRajat Vynar has a brilliant futureRajat Vynar has a brilliant futureRajat Vynar has a brilliant futureRajat Vynar has a brilliant futureRajat Vynar has a brilliant futureRajat Vynar has a brilliant futureRajat Vynar has a brilliant futureRajat Vynar has a brilliant future
Talking बद अच्छा, बदनाम बुरा

क पुरानी कहावत है- ‘बद अच्छा, बदनाम बुरा।’ अर्थात् यदि बदनामी न हो तो बुरा व्यक्ति भी भला। इसका एक गूढ़ अर्थ और है- सुन्दरता चेहरे के स्थान पर आचरण से पहचानी जाती है। यही कारण है- हमारा देश मूर्खाें के मामले में बहुत बदनाम है। इस बारे में कुछ लोग कहते हैं- ‘एक मूर्ख ढूँढो, हज़ारों मिल जाते हैं।’ लगभग डेढ़ दशक पूर्व हमने प्रण किया कि अपने देश पर लगे बदनामी के इस काले धब्बे को जड़ से मिटाकर रहेंगे और यह साबित करेंगे कि विदेशों में भी मूर्ख बसते हैं। इस महान कार्य के लिए यह आवश्यक था कि हम मूर्खाें की तलाश में विदेश-यात्रा करें और विदेशी मूर्खाें को चिह्नित कर अपने देश की जनता के सामने लाएँ। जनहित और देशहित का कार्य होने के कारण हमने पार्टी हाईकमान की हैसियत से पार्टी अध्यक्ष को तलब किया और यह आदेश पारित किया कि जल्द से जल्द विदेश-यात्रा के लिए पाँच करोड़ रुपया एकत्रित किया जाए। विदेशी मूर्खाें की तलाश में कई मुल्कों की यात्रा करनी पड़ेगी। काफी खर्चा बैठेगा, मगर इस यात्रा से हमारे देश पर लगा कलंक हमेशा के लिए मिट जाएगा। इस कार्य से पार्टी का भी बड़ा नाम होगा। पार्टी हाईकमान की गरिमा को बरकरार रखते हुए पार्टी अध्यक्ष ने बिना हुज्जत किए कहा- ‘‘आपकी बात तो ठीक लगती है, मगर विदेशी मूर्खाें की तलाश के लिए विदेश-यात्रा के नाम पर एक धेला भी चन्दा न मिलेगा।’’
हमने अक़्ल के घोड़े दौड़ाते हुए कहा- ‘‘ठीक है। विदेशी मूर्खों की तलाश के लिए चन्दा न माँगिए। जनता से कहिए- पार्टी हाईकमान लोकतन्त्र की जड़ें और मज़बूत करने का गुर सीखने के लिए कई मुल्कों की यात्रा पर जाने वाले हैं। चन्दा मिल जाएगा।’’
पार्टी अध्यक्ष ने हमारी राय पर तन-मन से अमल करके धन एकत्रित करना शुरू किया और पाँच महीने बाद पाँच करोड़ की जगह पाँच सौ रुपया नगद हमारे हाथ पर टिका दिया।
हमने बौखलाकर कहा- ‘‘अगर विदेश के लिए कन्सेशन रेट पर पैसेन्जर ट्रेन भी चलती होती तो भी पाँच सौ रुपया का टिकट लेकर अफगानिस्तान के आगे नहीं जाया जा सकता! शर्म नहीं आती आपको- विदेश-यात्रा के नाम पर पाँच सौ रुपया देते?’’
पार्टी अध्यक्ष ने बिना शर्माए कहा- ‘‘हमारी पार्टी का ‘वसूली-दम’ बस इतना ही है।’’
हमने शक़ की नज़रों से पार्टी अध्यक्ष को घूरते हुए कहा- ‘‘दूसरी पार्टी वाले तो करोड़ों में खेलते हैं?’’
पार्टी अध्यक्ष ने समझाया- ‘‘राजनीति के मैदान में अभी हमारी पार्टी नई है। लगता है- अभी हम राजनीति की बारीकियाँ और चन्दा वसूली का गुर पूरी तरह नहीं सीख पाए। धीरे-धीरे सीख जाएँगे तो हमें भी करोड़ों रुपया चन्दा मिलने लगेगा।’’
हमने अपनी हाईकमानी झाड़ते हुए पार्टी अध्यक्ष को आदेश दिया- ‘‘धीरे-धीरे सीखेंगे तो इसमें बहुत समय लग जाएगा। पता कीजिए- शहर में कोई ऐसा कोचिंग सेन्टर है जिसमें राजनीति के दाँव-पेंच और चन्दा वसूली का गुर सिखाया जाता हो।’’
पार्टी अध्यक्ष ने कहा- ‘‘तीन बार आई॰ए॰एस॰ का एक्ज़़ाम दे चुका हूँ। मेरी नज़र में तो शहर में ऐसा कोई कोचिंग सेन्टर नहीं।’’
हमने तुरन्त अक्ल के घोड़े दौड़ाते हुए कहा- ‘‘तो ऐसा कीजिए- इलेक्शन कमीशन को तुरन्त पत्र लिखिए और पूछिए- उनके पास राजनीति का दाँव-पेंच सिखाने वाली और चन्दा वसूली का गुर सिखाने वाली कोई गाइड है?’’
पार्टी अध्यक्ष ने कहा- ‘‘पार्टी का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए मैं दिल्ली गया था। ऐसी कोई गाइड होती तो चुनाव आयोग में ज़रूर दिखती।’’
हमने एक बार फिर अक्ल के घोड़े दौड़ाते हुए कहा- ‘‘ऐसा कीजिए- आप सभी पार्टियों के हाईकमान को पत्र लिखकर पूछिए- चन्दा वसूली का क्या गुर है? राजनीति की बारीकियाँ और उसके दाँव-पेंच क्या हैं?’
पार्टी अध्यक्ष ने कहा- ‘‘कोई जवाब नहीं देगा। डाक-टिकट का खर्च वेस्ट होगा।’’
हमने कुपित होकर पूछा- ‘‘क्यों नहीं जवाब देगा? क्या आपको पता नहीं- चोर-चोर मौसेरे भाई। हम सभी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। सभी दौड़कर मदद करेंगे।’’
पार्टी अध्यक्ष ने कहा- ‘‘नेता लोगों की आदत दौड़कर मदद करने की नहीं, दौड़कर एक-दूसरे की टाँग पकड़कर घसीटने की होती है। इसलिए पत्र लिखने से कोई लाभ न होगा।’’
हमने राजनीति का अन्तिम हथियार फेंकते हुए कहा- ‘‘ठीक है। चुनाव सिर पर हैं। सुनने में आया है- चुनाव के समय पार्टी का टिकट बेचकर करोड़ों रुपए वारे-न्यारे किए जाते हैं। आप पार्टी का टिकट कम दाम पर बेचने का प्रबन्ध कीजिए। आप देखिएगा- गिरी हालत में पाँच करोड़ रुपया इकट्ठा हो जाएगा।’’
पार्टी अध्यक्ष ने दाँत निकालते हुए कहा- ‘‘कोशिश कर चुका हूँ। अपनी पार्टी का टिकट तो कोई मुफ़्त में भी लेने को तैयार नहीं है!’’
विदेशी मूर्खों की तलाश में विदेश-यात्रा की बात भूलकर हमने कुपित होकर पूछा- ‘‘लेंगे कैसे नहीं मुफ़्त में? यह बताइए- पार्टी का टिकट कितना बड़ा होता है?’’
पार्टी अध्यक्ष ने सोचते हुए जवाब दिया- ‘‘कभी देखा नहीं। चुनाव का मामला है तो जाहिर सी बात है- सिनेमा, सर्कस और जादू के टिकट से तो बड़ा होता होगा। मैं तो समझता हूँ- कैलेण्डर जितना बड़ा होता होगा।’’
हमने समस्या का समाधान करते हुए अचूक परामर्श दिया- ‘‘ऐसा कीजिए- पार्टी का टिकट पाॅकेट साइज़ में छपवाइए और उसके पीछे नए साल का मिनी कैलेण्डर छपवा दीजिए। आप देखिएगा- मुफ़्त में पार्टी का टिकट लेने के लिए लम्बी लाइन लग जाएगी। हर आदमी पार्टी का टिकट लेकर एक साल तक जेब में रखकर घूमेगा।’’
पार्टी अध्यक्ष ने समझाया- ‘‘पार्टी का टिकट जेब में रखकर घूमने के लिए नहीं, चुनाव लड़ने के लिए होता है।’’
हमने जवाब दिया- ‘‘तो हम किसी को रोक कहाँ रहे हैं चुनाव लड़ने से? चुनाव लड़ने के शौक़ीन लोग जाकर पार्टी की ओर से अपना नामांकन-पत्र दाखिल कर सकते हैं।’’
पार्टी अध्यक्ष ने समझाया- ‘‘एक चुनाव क्षेत्र से पार्टी का एक ही उम्मीदवार खड़ा हो सकता है। पार्टी के टिकट के पीछे नए साल का कैलेण्डर छपवाकर मुफ़्त में बाँटेंगे तो हज़ारों-लाखों लोगों के पास हमारी पार्टी का टिकट होगा। बहुत बड़ा घपला पैदा हो जाएगा।’’
घपले को दूर करने का प्रयास करते हुए हमने परामर्श दिया- ‘‘ठीक है। ऐसा करते हैं- जिसे-जिसे चुनाव लड़ना हो वो अपना टिकट पार्टी कार्यालय में जमा करा दें। जिसके नाम से लाॅटरी निकलेगी, वो चुनाव में खड़ा होगा। घपला खत्म!’’
पार्टी अध्यक्ष ने कहा- ‘‘मुझे तो नहीं लगता- कोई पार्टी का टिकट लेकर चुनाव लड़ने के लिए आगे आएगा। मुफ़्त में मिला नए साल का कैलेण्डर भला कौन वापस करना चाहेगा?’’
पार्टी हाईकमान के रूप में हम अत्यधिक चिन्तित और विचलित होकर कैलेण्डर की काट ढूँढ़ने में लग गए। तभी पार्टी अध्यक्ष ने याद दिलाते हुए कहा- ‘‘पार्टी का टिकट
मुफ़्त में बाँटने से तो आपके विदेश-यात्रा का मसला हल नहीं होने वाला।’’
हमने हथियार डालते हुए आदेश पारित किया- ‘‘ठीक है। रहने दीजिए। अग्रिम सूचना तक विदेशी मूर्खाें की तलाश में विदेश-यात्रा का प्रोग्राम कैन्सिल किया जाता है।’’
विदेश-यात्रा का कार्यक्रम रद्द करके हमने एक बार फिर अक़्ल का घोड़ा दौड़ाना शुरू किया कि ‘हल्दी लगे न फिटकरी, रंग होय चोखा’ की तर्ज पर किस प्रकार विदेशी मूर्खाें की खोज की जाए? (अभी और है.)
__________________
WRITERS are UNACKNOWLEDGED LEGISLATORS of the SOCIETY!
First information: https://twitter.com/rajatvynar
https://rajatvynar.wordpress.com/

Last edited by Rajat Vynar; 20-01-2015 at 06:52 PM.
Rajat Vynar is offline   Reply With Quote
 

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 02:35 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.