01-02-2015, 02:38 PM | #1 |
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प्रश्नचिह्न
ईश्वरीय सत्ता पर आस्तिक लोगों के अकाट्य विश्वास को परिलक्षित करती हुई हिन्दी में एक प्रचलित लोकोक्ति है- ‘जाको राखे साइयाँ, मार सके न कोई’, किन्तु पाकिस्तान के एक स्कूल में आतंकवादियों द्वारा सौ से अधिक बेगुनाह और मासूम बच्चों की निर्ममतापूर्ण हत्या और उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में बी.एड. की छात्रा से दुष्कर्म के बाद नृशंस हत्या का सनसनीखेज मामला सामने आने के बाद दैनिक जागरण संवाददाता द्वारा छात्रा के पिता के बारे में यह संकेत करना कि छात्रा के पिता दिल्ली के चर्चित निर्भया सामूहिक दुष्कर्म कांड के विरोध में 17 दिन चले आंदोलन में शामिल रहे थे- क्या ईश्वरीय सत्ता पर आस्तिक लोगों के अखण्ड विश्वास को डगमगाने के लिए काफ़ी नहीं है? ईश्वर मासूम और बेनुगाह बच्चों को क्यों नहीं बचा सका? एक सज्जन पिता जो स्वयं दिल्ली के चर्चित निर्भया सामूहिक दुष्कर्म कांड के विरोध में 17 दिन चले आंदोलन में शामिल रहे, उसी की पुत्री के साथ ऐसी दर्दनाक घटना क्यों घटित हुई? इस प्रकार की कई घटनाएँ ऐसी घटती हैं जिन पर हम ध्यान नहीं देते। क्या ये घटनाएँ ईश्वरीय सत्ता पर बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न नहीं है? कृपया इस तर्क-वितर्क में अपनी टिप्पणी अवश्य दें, क्योंकि आज यह ईश्वरीय आदेश है।
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