26-02-2015, 04:16 PM | #20 |
Diligent Member
Join Date: Sep 2014
Posts: 1,056
Rep Power: 30 |
Re: आक्षेप का पटाक्षेप
७. रूद्र-संहिता, युद्ध खंड, अध्याय २४ के अनुसार विष्णु असुरेन्द्र जालंधर की स्त्री वृंदा का सतीत्व अपहरण करने में तनिक भी नहीं हिचके। असुरेन्द्र जालंधर को वरदान था कि जब तक उसकी स्त्री वृंदा का सतीत्व कायम रहेगा, तब तक उसे कोई भी मार नहीं सकेगा। असुरेन्द्र जालंधर के वध के लिए विष्णु को परस्त्रीगमन जैसे घृणित उपाय का आश्रय लेना पड़ा। ''विष्णु------पुत्भेद्नाम।'' अर्थात्- विष्णु ने जालंधर दैत्य की राजधानी जाकर उसकी स्त्री वृंदा का सतिवृत्य (पतिवृतय) नष्ट करने का विचार किया। इधर शिव जालंधर के साथ युद्ध कर रहा था और उधर विष्णु महाराज ने जालंधर का वेश धारण कर उसकी स्त्री वृंदा का सतीत्व नष्ट कर दिया, जिससे वह दैत्य मारा गया। जब वृंदा को विष्णु का यह छल मालूम हुआ तो उसने विष्णु से कहा- ''धिक्------तापस:।'' अर्थात्- 'हे विष्णु ! पर स्त्री के साथ व्यभिचार करने वाले, तुम्हारे ऐसे आचरण पर धिक्कार है। अब तुम को मैं भली भाँति जान गई। तुम देखने में तो महासाधु जान पड़ते हो, पर हो तुम मायावी, अर्थात् महाछली।
क्या उपरोक्त अनुच्छेद विष्णु की साफ़-सुथरी छवि प्रस्तुत कर रहा है?
__________________
WRITERS are UNACKNOWLEDGED LEGISLATORS of the SOCIETY! First information: https://twitter.com/rajatvynar https://rajatvynar.wordpress.com/ |
Bookmarks |
|
|