17-06-2015, 10:28 PM | #1 |
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भगवान कहाँ मिलेगा मालूम नहीं...bansi
भगवान तुझे मैं आकर कहता पर तू मिलेगा कहाँ मालूम नहीं
दिल खोल कर सामने मैं रख देता पर तू मिलेगा कहाँ मालूम नहीं इंसान की इंसानियत गिरते देख दिल को बहुत दुखी मैं पाता हूँ क्यूँ है इंसान इतना बुरा बनता जाता यह समझ नहीं मैं पाता हूँ मैं तुझ से ही आ कर समझ लेता पर तू मिलेगा कहाँ मालूम नहीं बहन बेटियों की आबरू लुटते देख मन ही मन रात रात भर रोता हूँ मैं पड़ोसी की नींद ना कहीं जाए ज़ोर ज़ोर से नहीं रो पाता हूँ मैं तेरे सामने दिल खोल कर रो देता पर तू मिलेगा कहाँ मालूम नहीं तुझे बुरा लगे या अच्छा लगे मुझको तेरे दुनियाँ बिल्कुल भाई नहीं तेरी ऐसी दुनियाँ में रहने को मेरा बिल्कुल भी मन अब करता नहीं दुनियाँ छोड़ ‘बंसी’ तेरे पास आ जाता पर तू मिलेगा कहाँ मालूम नहीं भगवान तुझे मैं आकर कहता पर तू मिलेगा कहाँ मालूम नहीं दिल खोल कर सामने मैं रख देता पर तू मिलेगा कहाँ मालूम नहीं बंसी(मधुर) Last edited by Bansi Dhameja; 19-06-2015 at 07:01 PM. |
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