10-10-2015, 03:55 AM | #1 |
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जय माता दी "
कई बार सितम्बर (अधिक मास वाले वर्ष में ये अक्टूबर ) में ये नवरात्री पर्व जब आता है तब तब हर मानव मन आस्था से सराबोर होकर मा जदम्बा के गुणगान पूजा पाठ और एक बड़े त्यौहार का स्वागत करने के लिए हमारा पूरा हिन्दुस्तान तेयार रहता है . ये ही नहीं भारत से बाहर विदेशों में बसे भारतीय भी इस त्यौहार को वहां अपने अपने ढंग से और अपने अपने रीती रिवाजो के अनुसार बेहद उत्साह से मानते हैं और मनाते हैं . बंगाल में इन नवरात्री के दिनों को पूजा कहा जाता है बड़ी श्रध्धा दिखाई पड़ती है जब हमारे देश के पूर्वी भाग बंगाल में इस त्यौहार का लोग आयोजन करते हैं गुजरात में डंडिया रस के साथ साथ अनेक कार्यक्रम हुआ करते हैं जिसमे गरबा खेलते हैं और मा की महिमा का गुणगान करते हैं और बेहद धामधूम से इस त्यौहार को मनाया जाता है .रत के समय गरबा नृत्य द्वारा मा के बहुत सुन्दर सुन्दर अर्थसभर जो गीत होते हैं वो लोक शैली में होते हैं जो बेहद कर्ण प्रिय होते हैं जब संगीत के साथ गरबे की धून बजती है अपने आप एक उमंग दिल में समां जाती है और गरबा खेलने को दिल करता है पंजाब और उत्तर प्रदेश तह मध्य भारत में बड़ी आस्था सहित लोग व्रत उपवास करते हैं . इसी तरह बंगाल में धूपदानी लेकर जो नृत्य होता है वो बड़ा ही सुहावना होता है और खासकरके जब आरती होती है कोल्कता में तब जो दिव्या वातावरण होता है वो आत्मा की गहराई तक पहुंचकर मानो प्राण और परमेश्वर को एक कर देता है इतना भक्ति पूर्ण वातावरण बन जाता है उनका भक्ति पूर्ण नृत्य देख कर किसी को भी माता के प्रति भक्ति भाव उत्पन्न हो जाता है .और माँ तो माँ हैं उनकी महिमा जितनी गएँ कम हैं क्यूंकि वो तो पुरे जगत की जननी हैं आओ चलें हम भी सच्चे मन से आपने श्रध्धा सुमन समर्पित करें इस जगत की जननी को, मा जगदम्बा को जो अपने अलग अलग स्वरूपं से आपने बालकों की रक्षा करतीं हैं
मा शक्ति याने दुर्गा का स्वरुप नव दिन में मा के जो स्वरुप होते हैं उनके नाम इस प्रकार से हैं .. 1. शैल पुत्री- माँ दुर्गा का प्रथम रूप है शैल पुत्री। पर्वतराज हिमालय के यहाँ जन्म होने से इन्हें शैल पुत्री कहा जाता है। नवरात्रि की प्रथम तिथि को शैल पुत्री की पूजा की जाती है। ..2. ब्रह्मचारिणीमाँ दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। माँ दुर्गा का यह रूप भक्तों और साधकों को अनंत कोटि फल प्रदान करने वाली है। ..3. चंद्रघंटा-माँ दुर्गा का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा है। इनकी आराधना तृतीया को की जाती है। इनकी उपासना से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। वीरता के गुणों में वृद्धि होती है। स्वर में दिव्य अलौकिक माधुर्य का समावेश होता है व आकर्षण बढ़ता है। 4. कुष्मांडा- चतुर्थी के दिन माँ कुष्मांडा की आराधना की जाती है। 5. स्कंदमाता- नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। 6. कात्यायनी- माँ का छठवाँ रूप कात्यायनी है। छठे दिन इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है। 7. कालरात्रि- नवरात्रि की सप्तमी के दिन माँ काली रात्रि की आराधना का विधान है। 8. महागौरी- देवी का आठवाँ रूप माँ गौरी है। इनका अष्टमी के दिन पूजन का विधान है। इनकी पूजा सारा संसार करता है। 9. सिद्धिदात्री- माँ सिद्धिदात्री की आराधना नवरात्रि की नवमी के दिन किया जाता है। माँ दुर्गा की कृपा प्राप्ति के लिए दिव्या दुर्गा अष्टकम जो की मैंने अंतर्जाल के माध्यम से प्राप्त किया है वो यहाँ लिख रही हूँ . दुर्गे परेशि शुभदेशि परात्परेशि! वन्द्ये महेशदयितेकरुणार्णवेशि!। स्तुत्ये स्वधे सकलतापहरे सुरेशि! कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि!॥1॥ दिव्ये नुते श्रुतिशतैर्विमले भवेशि! कन्दर्पदारशतयुन्दरि माधवेशि!। मेधे गिरीशतनये नियते शिवेशि! कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि!॥2॥ रासेश्वरि प्रणततापहरे कुलेशि! धर्मप्रिये भयहरे वरदाग्रगेशि!। वाग्देवते विधिनुते कमलासनेशि! कृष्णस्तुतेकुरु कृपां ललितेऽखिलेशि!॥3॥ पूज्ये महावृषभवाहिनि मंगलेशि! पद्मे दिगम्बरि महेश्वरि काननेशि। रम्येधरे सकलदेवनुते गयेशि! कृष्णस्तुते कुरु कृपा ललितेऽखिलेशि!॥4॥ श्रद्धे सुराऽसुरनुते सकले जलेशि! गंगे गिरीशदयिते गणनायकेशि। दक्षे स्मशाननिलये सुरनायकेशि! कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि॥5॥ तारे कृपार्द्रनयने मधुकैटभेशि! विद्येश्वरेश्वरि यमे निखलाक्षरेशि। ऊर्जे चतुःस्तनि सनातनि मुक्तकेशि! कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितऽखिलेशि॥6॥ मोक्षेऽस्थिरे त्रिपुरसुन्दरिपाटलेशि! माहेश्वरि त्रिनयने प्रबले मखेशि। तृष्णे तरंगिणि बले गतिदे ध्रुवेशि! कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि॥7॥ विश्वम्भरे सकलदे विदिते जयेशि! विन्ध्यस्थिते शशिमुखि क्षणदे दयेशि!। मातः सरोजनयने रसिके स्मरेशि! कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि॥8॥ दुर्गाष्टकं पठति यः प्रयतः प्रभाते सर्वार्थदं हरिहरादिनुतां वरेण्याम्*। दुर्गां सुपूज्य महितां विविधोपचारैः प्राप्नोति वांछितफलं न चिरान्मनुष्यः॥9॥ ॥ इति श्री मत्परमहंसपरिव्राजकाचार्य-श्रीमदुत्तराम्नायज्योतिष्पीठाधीश्वरजगद्गुरु-शंकराचार्य-स्वामि- श्रीशान्तानन्द सरस्वती शिष्य-स्वामि श्री मदनन्तानन्द-सरस्वति विरचितं श्री दुर्गाष्टकं सम्पूर्णम्* ॥ Last edited by rajnish manga; 10-10-2015 at 03:43 PM. |
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