15-12-2016, 10:47 PM | #34 |
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Re: कुछ ओर!
दुनिया ये दुनिया है बेईमानी सी, सो लगती जानीमानी सी । यह पहले तो रुमानी थी, अब भी तो है दिवानी सी! उपर से शोर मचाती है, अंदर भी है तुफानी सी । यहां सबकी एक कहानी है, खुद भी एक कहानी सी ! रंग एसे बदलती रहती है, आदत हो जैसे पुरानी सी । जब हम ही आते-जाते है, क्युं यह लगती है फानी सी ? बेशर्म हुए जब से ईन्सान, यह हो गई पानी-पानी सी ! है कैसी हमें न बतलाओ, हमको है दुनिया ज़ुबानी सी । [31.5.16]
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