05-11-2017, 12:03 AM | #31 |
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Re: मुहावरों की कहानी
वही किस्सा एक नए रूप में
हिसाब ज्यों का त्यों, कुनबा डूबा क्यों? औसत की बात चली तो एक साहूकार की कहानी याद आ गई। साहूकार महोदय अपनी बीवी और तीन बच्चों के साथ पास के शहर को जा रहे थे। रास्ते में एक नदी पड़ी। नांव का इंतजार किया। वो नहीं आयी तो साहूकार ने सोचा कि ये नदी तो घुसकर पार की जा सकती है। उन्होंने किनारे से लेकर बीच तक नदी की गहराई नापी – 1 फुट, 3 फुट, 7 फुट, 3 फुट और 1 फुट यानी नदी की औसत गहराई निकली 15/3=3 फुट। अब साहूकार ने अपने कुनबे में सभी की ऊंचाई नापी। वो खुद 5 फुट 10 इंच के, बीवी 5 फुट 2 इंच की, पहला बेटा 4 फुट 8 इंच का, छोटी बेटी 3 फुट 4 इंच की और गोद का बेटा 2 फुट का। उन्होंने गिना कि इस तरह कुनबे की औसत लंबाई हुई करीब 4 फुट ढाई इंच। यानी, कुनबे की औसत लंबाई नदी की औसत गहराई से पूरे 1 फुट ढाई इंच ज्यादा है। इसलिए कुनबा तो आसानी से नदी पार कर जाएगा। साहूकार बीबी-बच्चे समेत नदी में उतर गए। उन्हें तैरना आता था, सो नदी के उस पार पहुंच गए। बाकी सारा कुनबा बीच नदी में बह गया। साहूकार फेर में पड़कर कहने लगे – हिसाब ज्यों का त्यों, कुनबा डूबा क्यों...
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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