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Super Moderator
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() Join Date: Aug 2012
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नवाब वाजिद अली शाह (1822-1887) की प्रसिद्ध ठुमरी :
बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाये, बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाये… चार कहर मिल मोरी डोलिया सजावें, मोरा अपना बेगाना छूटो जाये। बाबुल मोरा नैहर छूटो जाये… अंगना तो पर्बत भयो और देहरी भयी बिदेस, ले बाबुल घर आपनो मैं चली पिया के देस, बाबुल मोरा नैहर छूटो जाये... पंडित भीमसेन जोशी, बेगम अख्तर, गिरिजा देवी और शोभा गुर्टु, किशोरी अमोनकर से लेकर कुन्दन लाल सहगल, जगजीत सिंह- चित्रा सिंह ने राग भैरवी की इस ठुमरी को अपने स्वर दिए | कहते हैं .. ठुमरी और कत्थक के जन्मदाता नवाब वाज़िद अली शाह इसी को गाते हुए अवध रियासत से निर्वासित हुए थे | वही दर्द और पीड़ा इन पंक्तियों में है ...
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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