10-08-2020, 05:49 PM | #1 |
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गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण, जिन्हें हिंदी सिनेमा जगत गुरुदत्त के नाम से पुकारता है. उन्होंने सिनेमा को उस वक्त सार्थक पहचान दी, जब ज्यादातर फिल्म निर्देशक समाज के दुख और दुर्दशा को भुलकर मनोरंजन का तिलिस्म गढ़ने में व्यस्त थे. भारतीय सिनेमा के इतिहास में जब भी कल्ट फिल्मों की बात होती है तो उसमें गुरुदत्त की फिल्मों का नाम सबसे उपर होता है. गुरुदत्त की फिल्में ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’ और ‘साहब, बीवी और गुलाम’ आज कई फिल्में संस्थानों के कोर्स में पढ़ाई जाती हैं. इतना ही नहीं विश्वप्रसिद्ध टाइम मैगज़ीन ने अपनी 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची में गुरुदत्त की फिल्म ‘प्यासा’ और ‘काग़ज़ के फूल’ को जगह देकर इसे प्रामाणिक भी किया है. साल 1957 में रिलीज हुई गुरुदत्त की फिल्म ‘प्यासा’ में निभाए गए उनके किरदार ‘विजय’ को देखकर सभी हैरान रह गए थे. बेरोजगार शायर विजय सोसायटी और सिस्टम से निराश है, वह कहीं भी फिट नहीं पा रहा है. फिल्म में बोला गया विजय का एक संवाद इसकी तस्दीक कुछ ऐसे कर रहा है. ‘मुझे शिकायत है उस समाज के उस ढांचे से जो इंसान से उसकी इंसानियत छीन लेता है, मतलब के लिए अपने भाई को बेगाना बनाता है. दोस्त को दुश्मन बनाता है. बुतों को पूजा जाता है, जिन्दा इंसान को पैरों तले रौंदा जाता है. किसी के दुःख दर्द पर आंसू बहाना बुज़दिली समझी जाती है. छुप कर मिलना कमजोरी मानी जाती है.’ आज हम उसी फिल्म ‘प्यासा’ को आपके सामने लेखनी के जरिए रख रहे हैं.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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गुरुदत्त, प्यासा, gurdutt, pyasa |
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