29-10-2010, 02:08 AM | #1 |
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छींटे और बौछार
~:~:~छींटे और बौछार ~:~:~
महकती सी तुम आयीं थी एक दिन मेरे ख़्वाबों में मुझे लेकर गयी फिर तुम, शहर से दूर ढाबों में ढके मैं नाक दस्ती से, रहा मैं घूमता संग में तुम्हारी वह जो खुशबू थी वह रहती 'जय' जुराबों में ||
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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