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#1 |
अति विशिष्ट कवि
![]() ![]() ![]() ![]() Join Date: Jun 2011
Location: Vinay khand-2,Gomti Nagar,Lucknow.
Posts: 553
Rep Power: 36 ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
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अब वो कुछ आवारा है , भटक रहा बंजारा है ;
जाल फेंकता , जगह - जगह पर , सागर का मछुवारा है . गुलशन में छुट्टा घूमें , जिसका चाहे मुंह चूमे ; भंवरा बनकर डोल रहा है , फूल - फूल को प्यारा है . कली -कली की चाहत है , हसीं दिलों की राहत है; उसने उसकी कद्र न जानी , वो समझी नक्कारा है. कूचे - कूचे जाता है , सबमें आस जगाता है; बादल बनकर घूम रहा है , मौसम का हरकारा है . सावन का वो झोंका है , चाहे जिसे भिगोता है ; विरह - व्यथा से सुलग रहीं जो , उनके लिये फव्वारा है . आसानी से आता है , सबके हाथ सध जाता है ; जी चाहे जो राग छेड़ ले , ऐसा वो इकतारा है . हसीं चोट से घायल है , किसी का उतरा पायल है ; जैसा बेबस उसने समझा , वैसा नहीं बेचारा है . गैरत उसकी जाग उठी , आशिक अब विद्रोही है ; खब्त उतारे पूरी जात पे , किसी के इश्क का मारा है . रचनाकार ~~डॉ. राकेश श्रीवास्तव लखनऊ ,इंडिया . (शब्दार्थ ~~ हरकारा = संदेशवाहक , इकतारा = एक प्रकार का सरल सुलभ वाद्य यन्त्र , खब्त = झक्क ,उन्माद .) Last edited by Dr. Rakesh Srivastava; 07-08-2011 at 05:17 PM. |
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