04-09-2011, 12:31 PM | #1 |
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!!नज्म!!
तुम मदहोशी की तरह
मेरे ख्यालोँ पे छाई हो ऐसे बादल पे घटा झुकी हो जैसे निगाहोँ के हिसार मेँ सुबहो शाम तुम्हे रखना अच्छा लगता है ख्यालोँ की अंजुमन मेँ तुम्हारे वजूद को सजा कर तुमसे बातेँ करना खुद से बेगाना होकर सोचोँ के साए मेँ तुम्हारे साथ चलना दूर बहुत दूर यादोँ की वादियोँ मे खो जाना और फिर अपनी इस कैफियत पे हंसना ये मेरा पागलपन नही तो और क्या है तुम सामने हो दिल के करीब हो तुम्हे पाना मेरा नसीब हो फिर भी मुझे लगता है तुम्हे पाना इतना आसां नही जितना मै समझता हूँ पर मैँ अपने इस मासूम दिल का करूँ जो तुम्हारी ही तमन्ना करता है........
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