27-10-2012, 12:46 PM | #1 |
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मुक्तक
मुक्तक तेरे ग़म को मीत सजाया आँखों में. कितना सुन्दर सपन सजाया आँखों में. तेरा मिलना देखा है, तेरी जुदायी भी जानी, ग़रज तसव्वुर में तेरे दिन रात सजाया आँखों में. (२) तस्वीर तो है शीशे पे ये गर्द ही सही. मौसम भले हो ज़र्द तो ज़र्द ही सही. इस दिल को कुछ न कुछ तो बहरहाल चाहिए, खुशी मिले मिले ना मिले दर्द ही सही. (३) रवि रश्मि सी ये उष्ण और कोमल तुम्हारी याद है. संवेदना में एक दम मखमल तुम्हारी याद है. मृग तृष्णा के वृत में फंसे जैसे बटोही के, चिर पिपासु कंठ में ज्यों जल तुम्हारी याद है. (४) जब से देखा तुझे हमने, बहारों को नहीं देखा. ज़मी के ख़ाब देखे हैं, सितारों को नहीं देखा. तमन्ना मौज कि करते हैं तूफां से मुहब्बत में, हमें अरसा हुआ हमने किनारों को नहीं देखा. (५) हिंदी मेरी शाकुंतल है देश मेरा दुष्यंत . गहरा परिचय अमिट निशानी आकर्षण अत्यन्त. भुगत रहे हैं दोनों अपने शापजन्य परिणामों को जाने कब काली छाया का हो पायेगा अंत. (६) खुशियाँ गौने से पहले ही कैंसर से क्यों ग्रस्त हुयीं. विश्वासों की नौकाएं तूफानों में ध्वस्त हुयीं. जो भोर अबोध उगी थी काले अँधिआरे के खेत में, वो भोर लड़कपन की सीढ़ी तक आते आते अस्त हुयी. |
27-10-2012, 01:45 PM | #2 |
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Re: मुक्तक
अति श्रेष्ठ और मनभावन मुक्तक प्रस्तुत किए हैं, रजनीशजी ! पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया ! उम्मीद है आपके सृजन का यह सिलसिला जारी रहेगा ! धन्यवाद !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
27-10-2012, 02:16 PM | #3 |
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Re: मुक्तक
एक बेहतरीन रचना के लिए आपको धन्यवाद
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
27-10-2012, 03:19 PM | #4 |
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Re: मुक्तक
nice one....
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27-10-2012, 03:59 PM | #5 |
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Re: मुक्तक
प्रशंसा के लिये ह्रदय से आपका आभार व्यक्त करता हूँ. कृपया मार्ग दर्शन करते रहें.
Last edited by rajnish manga; 27-10-2012 at 04:09 PM. |
27-10-2012, 04:04 PM | #6 |
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Re: मुक्तक
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27-10-2012, 04:08 PM | #7 |
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Re: मुक्तक
प्रशंसा के लिये ह्रदय से आपका आभार व्यक्त करता हूँ. कृपया मार्गदर्शन करते रहें. Last edited by rajnish manga; 28-10-2012 at 05:59 PM. |
28-10-2012, 12:02 AM | #8 |
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Re: मुक्तक
बहुत खुबसूरत
और आपकी हिंदी भी कमाल की है आपने नयी उम्मीदें जगाई है
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
28-10-2012, 06:08 PM | #9 |
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Re: मुक्तक
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