17-08-2013, 10:39 PM | #131 |
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Re: इधर-उधर से
हाँ, हम इन कर्तव्य का पालन करते है, लेकिन क्या अपने मन से या शायद इसलिए कि नहीं करने पर दंड भरना पड़ेगा. जरा ईमानदारी से सोचे तो…. शायद दंड का डर हमसे इनका पालन करवाता है, जहां इसका डर नहीं वहां इसका पालन नहीं होता है. मेरे बहुत से साथी जिन्होंने विदेशों का भ्रमण किया है, वो हमेशा कहते है कि फलां देश में हर चीज बहुत अच्छी है, वहाँ सभी लोग बहुत कायदे से रहते है, सभी लोग नियमों का पालन करते है. कोई भी यातायात के नियमों का उल्लघन नहीं करता. सरकारी कार्यालयों में सभी काम समय पर हो जाते है. निजी संस्थानों में भी सारे काम सही से होते है…. इत्यादि इत्यादि. ये बातें सच है लेकिन सोचिये क्या वहाँ के लोग भी हमारी तरह नियम – कायदे हमारी तरह मानते है, या हमारे और उनके बीच कोई फर्क है. ये विचार करने का विषय है. हमारे मन में हमेशा शायद ये बात रहती ये है कि नियमों का पालन करवाना सरकार का कर्तव्य है. लेकिन क्या ये ही सच है, सोचे और फिर फैसला करें. किसी का अधिकार उसको तभी मिलेगा जब कोई दूसरा अपने कर्तव्यों को पूरी ईमानदारी से निभाएगा. किसी बच्चे को उसका शिक्षा का अधिकार तभी मिलेगा जब हम माता-पिता के रूप में, शिक्षक के रूप में या अधिकारी के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन पूरी ईमानदारी से करेंगे, और ये बात सभी अधिकारों के लिए सच है क्यूंकि बात तो वही कि जो चीज किसी एक का अधिकार है वो किसी दूसरे का कर्तव्य है. जय भारत, जय भारतीय…!!! ** |
19-08-2013, 12:02 AM | #132 |
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Re: इधर-उधर से
मुल्ला,पण्डित,संत,सयाने सब हमको समझाने आयेग़ज़ल सीधी, सच्ची राह दिखानेअलबत्ता दीवाने आये फिरा किया मैं धूप में दिन की बहके बहके कदमों से शाम हुई, दो घूँट पिए तो पी कर होश ठिकाने आये जग में सूने सूने पण का अंधियारा जब फ़ैल गया तुम न जाने किस नगरी में आशा दीप जलाने आये दश्ते-वहशतनाक से हमदम कल जो घर ले आये थे आज वही अहबाब हमें फिर जंगल तक पहुंचाने आये इश्क़ की मीठी आग में जल कर बुलबुल ने दम तोड़ दिया फूलों की बगिया में लेकिन भौंरे आग लगाने आये दिल्ली में दिल्ली वालों की बोली का फुद्कान हुआ जमना तट के मोती चुनने अहले-ज़बां हरयाने आये बात विकट असलूब निराला, पुरखों का मद्दाह ‘ज़मीर’ किसके कल्ले में है ताकत, तुझसे जीभ लड़ाने आये (दश्त = जंगल, मैदान / अहबाब = दोस्त / फुद्कान = कमीं / असलूब = ढंग / मद्दाह = प्रशंसक) (शायर: सैयद ‘ज़मीर’ हसन देहलवी) Last edited by rajnish manga; 01-09-2013 at 11:49 AM. |
19-08-2013, 12:06 AM | #133 |
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Re: इधर-उधर से
संकट में दूसरों का अनुभव भी कारगर
पहली कहानी: कुछ समय पूर्व मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में रहने वाले दिनेश मालवीय राजकोट से सोमनाथ-जबलपुर एक्सप्रेस में दूसरे दर्जे की बोगी में सवार हुए। राजकोट और वडोदरा की यात्रा लगभग पांच घंटे की है और इस दौरान ट्रेन के स्टॉपेज वाले स्टेशनों पर बोगी में किन्नर चढ़ आते हैं और यात्रियों से जबरन 20 से 50 रुपए तक वसूलते हैं। उस दिन दिनेश एकमात्र यात्री था, जिसके पास किन्नर नहीं पहुंचे। संभवत: किन्नरों को लग रहा था कि वह बजाय पैसे देने के बहस और करने लग जाएगा। यह घटनाक्रम हर स्टेशन पर दोहराया जाता रहा। यात्री दबाव में पैसे तो दे देते, लेकिन उसके बाद किन्नरों समेत गुजरात सरकार को कोसते। यह घटनाक्रम पिछले एक दशक से ट्रेन यात्रियों के साथ दोहराया जा रहा है, लेकिन कोई भी इस 'लूट' पर रोक नहीं लगा सका है। कई लोगों का कहना है कि यही किन्नर चुनाव में नेताओं के लिए वोट मांगते हैं। दूसरी कहानी: मुंबई से प्रकाशित एक स्थानीय अखबार के वरिष्ठ पत्रकार किशोर राठौर सपरिवार कार से लोनावला रवाना हुए। प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित इस हिल स्टेशन पर कार को कुछ उद्दंड लोगों ने घेर लिया। वे पॉल्यूशन टैक्स के नाम पर 5 से लेकर 25 रुपए प्रति व्यक्ति वसूल रहे थे। किशोर अपनी दस लाख रुपए की कार की सोचकर मन मसोसकर उन्हें 100 रुपए देकर वहां से आगे बढ़े। कुछ देर बाद कार पार्किंग के नाम पर फिर कुछ उद्दंड लोगों ने उनसे 100 रुपए वसूले। मामला यहीं खत्म नहीं हुआ, पिकनिक के लिए गया परिवार 5 रुपए के वड़ा पाव 15 रुपए में और 60 रुपए की कोल्ड ड्रिंक पीकर बेहद खराब मन से वापस लौट आया। Last edited by rajnish manga; 20-08-2013 at 01:52 PM. |
19-08-2013, 12:08 AM | #134 |
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Re: इधर-उधर से
तीसरी कहानी:
अम्मु कृष्णन कुट्टी केरल में 14 से 18 वय के 11 हजार स्कूल-कॉलेज स्टूडेंट्स में से एक है, जिन्हें अपने-अपने शहरों में पेश आने वाले छोटे-मोटे अपराधों पर रोक लगाने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। इस दस्ते को 'कुट्टी पुलिस' के नाम से जाना जाता है, जिसका मलयाली भाषा में अर्थ है छोटी पुलिस। कम्युनिटी पुलिस अधिकारी श्याम कुमार के मुताबिक इस दस्ते ने आम लोगों के साथ पेश आने वाले छोटे-मोटे अपराधों पर काफी हद तक रोक लगाने में सफलता हासिल की है। इस दस्ते के रूप में यह प्रयोग कोझीकोड में तत्कालीन पुलिस कमिश्नर पी. विजयन ने 2010 में शुरू किया था। ये 11 हजार स्टूडेंट्स निर्धारित स्थानों पर सुबह और शाम को गश्त करते हैं। छोटी-मोटी घटनाओं को तो ये खुद निपटा लेते हैं, लेकिन अगर मामला बड़ा है, तो स्थानीय पुलिस की मदद लेते हैं। इन्हें स्कूली स्तर पर ही इसके लिए प्रशिक्षित किया गया है। गौरतलब है कि हमारे देश की आबादी का काफी बड़ा भाग 25 साल से कम उम्र का है। ऐसे में इन लोगों के लिए छोटे-मोटे अपराध वाले स्थानों पर अपना प्रभाव दिखाना आसान होता है। इनके कारण स्थानीय लोगों में सुरक्षा का भाव भी आता है। इसका एक बड़ा फायदा यह भी है कि ये बच्चे वयस्क होने पर कहीं जिम्मेदार नागरिक बनकर उभरते हैं। केरल के इस प्रयोग ने ऑल इंडिया पुलिस साइंस कांग्रेस का ध्यान भी आकर्षित किया है। कांग्रेस ने इस प्रयोग को हर राज्य से लागू करने की अनुशंसा की है। आंध्र प्रदेश और राजस्थान इस बारे में केरल से और जानकारी भी ले रहे हैं। कुछ समस्याओं का निदान अगर आपको नहीं सूझता, तो उससे दूसरे कैसे निपट रहे हैं, उससे सबक लें। अगर स्थिति नियंत्रण से बाहर जाती है, तो घबराएं नहीं। अपने आसपास देखें, हो सकता है कि वहां ऐसी ही स्थिति से दो-चार हो चुके लोग मौजूद हों। वे आपको सही समाधान सुझा सकेंगे। |
20-08-2013, 01:54 PM | #135 |
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Re: इधर-उधर से
कैसे कैसे शस्त्र आवेदन
(इन्टरनेट से साभार) पौराणिक युद्वों में सेनानियों को उत्साहित करने के लिये वीर रस के ओजपूर्ण कवियों का कविता पाठ प्रमुख भूमिका निभाता था यह विचार तो तर्क संगत हो सकता है परन्तु शस्त्र लाइसेंस को पाने के लिये कवितामय आवेदन की तर्कसंगता पर अवश्य विचार किया जाना चाहिये। महात्मा गांधी की भ्रमण स्थली रहे जनपद हरदोई के शस्त्र लाइसेंस आवेदको के प्रार्थना पत्र विभिन्न रूपों में प्राप्त होते रहते हैं जिनपर यथासंभव कार्यवाहियां भी सम्पन्न करायी जाती हैं। अभी हाल ही में एक शस्त्र लाइसेंस का एक कवितामय आवेदन प्राप्त हुआ जिसे आपके साथ साझा करने का मोह संवरण नहीं कर सका: जनपद का गौरव जिलाधीश / आशीष आपका पाने को।इस बेहतरीन तुकान्त कविता के लेखक का नाम सार्वजनिक नहीं कर सकते क्योंकि यह एक शस्त्र आवेदक की व्यक्तिगत सुरक्षा से संबंधित है। बहरहाल, आवेदक को इस सुन्दर तुकान्त कविता के लिये बधाई ! Last edited by rajnish manga; 20-08-2013 at 10:46 PM. |
21-08-2013, 09:58 PM | #136 | |
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Re: इधर-उधर से
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23-08-2013, 02:19 PM | #137 |
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Re: इधर-उधर से
चतुर व्यापारी और चोर
एक डरपोक लेकिन चतुर व्यापारी के घर में चोर घुसने पर वह अपनी पत्नी के कान में चोरों को चकमा देने की तरकीब बताने के बाद जोर से बोला- सुनती हो। आज मैं जो थैली भर राई लाया था, वह संभालकर तो रख दी है ना। दुनिया में राई की माँग बढ़ने से कल से इसके दाम आसमान छूने लगेंगे। एक थैली राई लाखों रुपए की होगी। अगर वह थैली किसी के हाथ लग गई तो अपने तो भाग्य ही फूटेसमझो। खैर छोड़ो, वैसे भी रात में कौन आएगा। पत्नी बोली- अरे तुम निश्चिन्त होकर सो जाओ। मैंनेथैली संभालकर टाँड पर रख दी है। उसके बाद दोनों चुप होकर खर्राटे भरने लगे, जैसे कि सो गए हों। उसकी तरकीब काम कर गई। चोर इधर-उधर हाथ मारने की बजाय राई की थैली लेकर चलते बने। वे अगले दिन थैली लेकर उसे बेचने बाजार पहुँचे, लेकिन राई के दाम तो बढ़े नहीं थे। चोरों को समझ में नहीं आ रहा था कि माजरा क्या है। भाव पूछते हुए वे उसी व्यापारी की दुकान पर पहुँच गए जिसके यहाँ उन्होंने चोरी की थी। एक चोर ने पूछा- क्यों सेठ, राई का क्या भाव है? व्यापारी अपनी थैली पहचान गया। वह मुस्कुरा कर बोला- भैया, राई के भाव तो रात की रात में ही गए। चोर उसकी बात समझ गए और सिर धुनते हुए चुपचाप वहाँ से खिसक लिए। दोस्तो, उस व्यापारी ने राई का पर्वत बनाकर घर को लुटने से बचा लिया यानी छोटी-सी चीज को बातों के लब्बोलुबाब से उसने इतना बढ़ा-चढ़ाकर बताया कि अच्छे-अच्छे उसके झाँसे में आ जाएँ, फिर वे तो चोर थे। इसी कारण कहते हैं कि कभी भी किसी की बात पर विश्वास करने से पहले देख लो, सोच-विचारकर लो कि कहीं उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर तो नहीं बताया जा रहा। ** Last edited by rajnish manga; 23-08-2013 at 02:22 PM. |
29-08-2013, 02:41 PM | #138 |
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Re: इधर-उधर से
चूसी हुई नारंगी और कौवे
एक बार ईश्वर चंद विद्यासागरके एक मित्र उनसे मिलने आए। उस समय विद्यासागर नारंगी खा रहे थे। कुशल क्षेम पूछने के बाद ईश्वर चंद ने अपने मित्र से भी नारंगी खाने का आग्रह किया। विद्यासागर नारंगी छील कर उसकी फांके चूस-चूस कर अपने पास रख लेते थे मगर उनके मित्र नारंगी की फांकें चूस कर फेंकने लगे। यह देख कर विद्यासागर ने कहा, 'भाई इन्हें फेंको मत। ये किसी के काम आ जाएंगी।' यह सुनकर मित्र हैरत में पड़ गए। उन्होंने पूछा, 'अब ये किसके काम आएंगी? ये तो बेकार हो चुकी हैं।' विद्यासागर ने हंस कर कहा, 'यदि आप यह जानना चाहते हैं कि ये फांके किसके काम आएंगी तो इन्हें आप बाहर चबूतरे में रख दें फिर देखें कि ये बेकार की हैं या काम की।' मित्र ने वैसा ही किया। जैसे ही वे चूसी हुई फांके रख कर वहां से हटे, वैसे ही कौवों का झुंड उन्हें लेने आ गया। देखते ही देखते सारी फांकें लेकर कौवे चले गए। विद्यासागर ने कहा, 'देख लिया न कि ये बेकार की फांकें कितने काम की हैं। कोई भी वस्तु बेकार नहीं है। हम जिसे बेकार समझकर फेंक देते हैं वह भी किसी न किसी प्राणी के काम आती हैं। अगर हमारे मन में प्राणिमात्र के प्रति थोड़ी भी करुणा है तो हमें उनके लिए सोचना चाहिए। यदि हमारे भीतर इस प्रवृत्ति का विकास हो सका तो हम देश में अनाज या दूसरी वस्तुओं की बर्बादी को आसानी से रोक सकते हैं।' यह सुन कर विद्यासागर के मित्र झेंप गए और बोले, 'छोटी-छोटी बातों के पीछे भी बड़ी बात छिपी होती है। लेकिन प्राय: लोग इसे समझ नहीं पाते। भविष्य में मैं आपकी इस सीख को याद रखूंगा।' विद्यासागर बोले, ' आप इसे अपने तक ही सीमित न रखें। अगर अपने साथियों को भी इसकी प्रेरणा देंगे तो देश का कोई भी प्राणी भूखा नहीं सोएगा।' मित्र ने ऐसा करने का वचन दिया। |
29-08-2013, 06:43 PM | #139 |
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Re: इधर-उधर से
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29-08-2013, 10:23 PM | #140 |
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Re: इधर-उधर से
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