05-12-2014, 07:52 PM | #1 |
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बालशेम तोव (हसीद दर्शन)> ओशो
ओशो के वचनामृत बालशेम तोव हसीदियों का सर्व प्रथम सदगुरू है। हसीद परंपरा में उसे बेशर्त कहा जाता है। इसका अर्थ है: दिव्य नामों वाला सदगुरू। बालशेम एक यहूदी रबाई था जिसके पास गुह्म शक्तियाँ थी। वह गांव-गांव घूमता था और अपनी स्वास्थ्य दायी आध्यात्मिक शक्तियों से लोगों का स्वस्थ करता था। हसीद फ़क़ीरों द्वारा कही गई किस्से से कहानियों ही कुल हसीद साहित्य है। हसीद मिज़ाज यहूदियों से बिलकुल विपरीत है। यहूदी लोग गंभीर और व्यावहारिक होते है। और हसीद मस्ती और उन्मादी आनंद में जीते है। बालशेम की जन्म की तारीख पक्की नहीं है। कुछ कहते है 1698 और कुछ कहते है 1700। तोव उसके शहर का नाम था। उसके नाम का मतलब इतना ही हुआ: तोव शहर का बालशेम। बालशेम तोव ने कोई शास्त्र नहीं लिखा। रहस्यवाद के जगत में शास्त्र एक वर्जित शब्द है। लेकिन उसने कई खुबसूरत कहानियां कही है। वह इतनी सुंदर है कि उनमें से एक मैं तुम्हें सुनाना चाहता हूं। यह उदाहरण सुनकर तुम उस आदमी की गुणवत्ता का संवाद ले सकते हो। बालशेम तोव के पास एक स्त्री आई, वह बांझ थी। उसे बच्चा चाहिए था। वह निरंतर बालशेम तोव के पीछे पड़ी रही। आप मुझे आशीर्वाद दें, तो सब कुछ हो सकता है। मुझे आशीर्वाद दें, मैं मां बनना चाहती हूं।‘’ आखिरकार तंग आकर—हां सतानें वाली स्त्री से बालशेम तोव भी तंग आ जाते है—वे बोले, बेटा चाहिए की बेटी। वह बोली— "निश्चय ही बेटा चाहिए’’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 05-12-2014 at 08:01 PM. |
05-12-2014, 08:08 PM | #2 |
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Re: बालशेम तोव (हसीद दर्शन)> ओशो
बालशेम तोव (हसीद दर्शन)
ओशो के वचनामृत बालशेम तोव ने कहा तो फिर तुम यह कहानी सुनो। मेरी मां का भी बच्चा नहीं था। और वह हमेशा गांव के रबाई के पीछे पड़ी रहती थी। आखिर रबाई बोला, एक सुदंर टोपी ले आ। मेरी मां ने सुदंर टोपी बनवाई और रबाई के पास ले गई। वह टोपी इतनी सुदंर बनी कि उसे बनाकर ही वह तृप्त हो गई। और उसने रबाई से कहा, ‘’मुझे बदले में कुछ नहीं चाहिए।‘’ आपको इस टोपी में देखना ही अच्छा लग रहा है। आप मुझे धन्यवाद दें, मैं भी आपको ही आपको धन्यवाद दे रही हूं।‘’ ‘’और मेरी मां चली गई, उसके बाद वह गर्भवती हो गई। और मेरा जन्म हुआ।“ बालशेम तोव ने कहानी पूरी की। इस स्*त्री ने कहा, बहुत खूब अब कल मैं भी एक सुंदर टोपी ले आती हूं, दूसरे दिन वह टोपी लेकर आई। बालशेम तोव ने उसे ले लिया। और धन्यवाद तक न दिया। स्त्री प्रतीक्षा करती रही। फिर उसने पूछा बच्चे के बारे में क्या। बालशेम ने कहा कि बच्चे के बारे में भूल जाओं। टोपी इतनी सुंदर है कि मैं आभारी हूं। मुझे धन्यवाद करना चाहिए।। वह कहानी याद है। उस स्त्री ने बदले में कुछ नहीं मांगा इस लिए उसके बच्चा हुआ। और वह भी मेरे जैसा बच्चा। लेकिन तुम कुछ लेने की चाहत से आई हो। इस छोटी सी टोपी के बदले में तू बालशेम जैसा बेटा चाहती है। कई बातें ऐसी है जो केवल कहानियों द्वारा कही जा सकती है। बालशेम तोव ने बुनियादी बात कह दी: ‘’माँगों मत और मिल जायेगा।‘’ मांग मत—यह मूल शर्त है। बालशेम की कहानियों से जिस हसीद पंथ का निर्माण हुआ वह एक बहुत सुंदर खिलावट है। जो आज तक हुई है। हसीदों की तुलना में यहूदियों ने कुछ भी नहीं किया है। हसीद पंथ एक छोटा सा झरना है—अभी भी जीवंत, अभी भी खिलता हुआ। **
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