18-06-2014, 08:30 AM | #131 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
गणिका रोडोपिस यह एक गणिका की सच्ची कथा है, जिसे मिस्रवासियों ने लिपिबद्ध करके रख लिया। गणिका रोडोपिस को लेकर पुरातन यूनानी साहित्य में बहुत-से प्रेम-गीत लिखे गये, जो आज भी पाये जाते हैं। प्रेम-व्यापार और प्रेमपिपासा के द्वन्द्वात्मक सन्तुलन का यह सम्भवतः सर्वप्रथम विवरण 1000 ई. पूर्व का है। रोडोपिस ने अपना जीवन दासी के रूप में शुरू किया था। वह समोस के इआडमोन के यहाँ नौकरानी थी। रोडोपिस को उसके मालिक ने एक मिस्री धनिक के हाथों बेच दिया। वह उसे मिस्र ले आया। रोडोपिस अनिन्द्य सुन्दरी थी। नये मालिक ने चारों तरफ खबर फैला दी कि उसके पास एक अप्सरा है, जो कामकला में भी निपुण है। यह खबर फैलते ही रोडोपिस के सौन्दर्य का पान करने वालों का ताँता लग गया। मालिक ने रोडोपिस के यौवन का व्यापार करके बहुत धन कमाया। सुन्दरी गणिका रोडोपिस के हजारों चाहने वालों में एक चारारक्सुस नाम का यूनानी युवक जहाजी भी था। वह रोडोपिस के प्रेम में बुरी तरह बिंध गया था। उसने रोडोपिस के मालिक को मुँह-माँगा धन देकर उसे मुक्त करा लिया। चारारक्सुस ने नौक्रेटिस में अपनी प्रेमिका के लिए निवास-स्थान की व्यवस्था की। सुन्दरी रोडोपिस वहाँ निश्चिन्त होकर रहने लगी। >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
18-06-2014, 08:35 AM | #132 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
जब भी युवक जहाजी यूनान से मिस्र आता, तो रोडोपिस के साथ सारा समय गुजारता। वे उन्मत्त होकर एक-दूसरे को प्यार करते। जब तक यूनानी जहाजी वहाँ रहता, रोडोपिस किसी भी और प्रेमी से कोई सम्बन्ध न रखती। यूनानी प्रेमी के जाने के बाद वह अपना प्रेम-व्यापार चालू कर देती थी।
हुआ यह कि एक बार जब यूनानी प्रेमी चला गया, तो सुन्दरी रोडोपिस नील नदी में नहाने गयी। उसने सब वस्त्र उतारकर नील नदी के तट पर रख दिये थे। तभी एक चील आयी और उसकी कंचुकी पंजों में दबाकर मेंफिस नगर की ओर उड़ गयी। मेंफिस का राजा उस समय दरबारियों से घिरा बैठा था। जब चील उड़ती-उड़ती वहाँ पहुँची, वह कंचुकी उसके पंजों से छूटकर राजा के दरबार में गिर पड़ी। कंचुकी को देखकर राजा वासना से पीड़ित हो उठा। बस, फिर क्या था। दूत-दूतियाँ चारों तरफ दौड़ा दिये गये कि कंचुकीवाली को खोजकर लाया जाए । रोडोपिस को लगा कि यह क्षण उसके भाग्योदय का है। वह दूतों के साथ राजा से मिलने राजधानी पहुँची। उसे देखते ही राजा अपना होश खो बैठा। सुन्दरी रोडोपिस ने चतुराई से काम लिया और विवाह की शर्त रख दी। उसकी यह शर्त राजा ने मान ली। रोडोपिस महारानी बन गयी। तब भी वह अपने प्रेमी को दिल से नहीं निकाल पायी। वह हमेशा उससे भी मिलती रही और इस तरह प्रेम और कर्तव्य की यह कठिन भूमिका उसने अन्त तक निभायी। यूनानी लौकिक काव्य में रोडोपिस की यह प्रेमगाथा अमर हो गयी... सदियों बाद तक कवि उसके इस कठिन प्रेम-प्रसंग को लेकर रसभीगे गीत लिखते रहे। **
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
18-06-2014, 08:44 AM | #133 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
मिस्र की पौराणिक कथा
स्वर्ण सूर्य पुरातन मिस्र के राजा रेमसेज पाँचवें के समय की मिली हुई पाण्डुलिपियों में यह कथा भी मिली थी। इसका काल 1150 ई. पू. है। बेबीलोन और इजरायली सभ्यताओं में अप्राकृतिक सम्बन्धों को प्रकृत माना जाता था। पर मिस्री सभ्यता इसे हीन दृष्टि से देखने लगी थी-यानी, शायद यहाँ से सभ्य नैतिक विधान का प्रारम्भ होता है। होरस और सेत भाई-भाई थे। दोनों देव-सन्तानें थीं। ओसिरिस और इरिस ने इन्हें जन्म दिया था। होरस छोटा और कमजोर था। सेत बड़ा और बरजोर था। दोनों भाइयों में बड़ी भयंकर लड़ाइयाँ हुईं। अन्त में दोनों ने सुलह कर ली और शान्ति से रहने लगे। तब एक बार सेत ने होरस से कहा, ‘‘आओ, हमारे महल में आओ। और एक दिन मौज से बिताया जाए!’’ होरस ने कहा, ‘‘जरूर... मैं आऊँगा।’’ जब दिन ढल गया, तो बिस्तर लगा दिया गया। सेत और होरस आराम करने लगे। जब रात हो गयी, तो सेत चंचल होने लगा। उसने होरस के अंगों को छूना शुरू किया। उसकी चंचलता बढ़ती गयी। अन्त में वह अधीर होने लगा। तब होरस ने अंजुलि बनाकर उसका वीर्य ग्रहण कर लिया। तत्काल होरस भागता हुआ अपनी माँ इरिस के पास पहुँचा और घबराकर बोला, ‘‘माँ, देख! सेत ने क्या किया है?’’ >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
18-06-2014, 08:45 AM | #134 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
कहकर उसने अपनी अंजुलि खोली, तो माँ इरिस ने उन वीर्यकणों को देखा। देखते ही वह क्रोधित हो गयी। उसने छुरा उठाया और होरस के हाथ काट डाले। कटे हाथों को उसने गहरे पानी में फेंक दिया। फिर माँ इरिस ने होरस की कटी हुई कलाइयों से नये हाथ उत्पन्न कर दिये।
इसके बाद देवी माँ इरिस ने होरस को चंचल करके अधीर किया और एक बरतन में उसका वीर्य इकट्ठा कर लिया। होरस का वीर्य लेकर देवी माँ इरिस सेत के उद्यान में गयी। वहाँ उसे सेत का माली मिला। देवी इरिस ने माली से पूछा, ‘‘तुझसे माँगकर सेत किस झाड़ी की पत्तियाँ खाता है?’’ माली बोला, ‘‘वह सिर्फ चुकन्दर के पत्ते खाते हैं।’’ देवी माँ इरिस ने होरस का वीर्य उसी चुकन्दर पर डाल दिया और चली गयी। रोज की तरह दूसरी सुबह सेत आया और उसने चुकन्दर के पत्ते तोड़कर खा लिये। पत्ते खाकर उठते ही वह गर्भवान हो गया। एकदम सेत नौ देवताओं के दरबार में पहुँचा। वहाँ उसने देवताओं से फरियाद की। नौ देवताओं के दरबार ने सेत और होरस, दोनों की पूरी बातें सुनीं। सेत की फरियाद सुनकर नौ देवताओं के दरबार ने होरस के मुँह पर थूका। पर होरस हँसता रहा और बोला, ‘‘देवताओ, सेत ने जो कुछ कहा है, वह झूठ है। मैं सौगन्ध से कहता हूँ! सेत के वीर्य को बुलाया जाए और सच्चाई जान ली जाए!’’ >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
18-06-2014, 08:46 AM | #135 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
इतना सुनते ही नौ देवताओं में से सबसे महान देवता थोथ ने होरस की बाँह पकड़ी और सेत के वीर्य का आवाहन किया।
सेत के वीर्य ने जल के देवता थोथ के प्रश्न के उत्तर दिये। इसके बाद देवता थोथ ने सेत की बाँह पकड़ी और होरस के वीर्य का आवाहन किया। होरस के वीर्य ने उत्तर दिया, ‘‘मैं किस रन्ध्र से बाहर आऊँ?’’ थोथ ने कहा, ‘‘तुम कान से बाहर आओ!’’ होरस के वीर्य ने कहा, ‘‘पर मैं पवित्र वीर्य हूँ, कान से कैसे आऊँ?’’ तब थोथ ने कहा ‘‘पवित्र वीर्य! तुम मस्तक से बाहर आओ।’’ और तब होरस का पवित्र वीर्य सेत के मस्तक से स्वर्णसूर्य की तरह उदित हुआ। यह देखकर सेत बहुत क्रुद्ध हुआ और उसने स्वर्ण सूर्य को नोच फेंकने के लिए जैसे ही हाथ उठाया कि देवता थोथ ने उस स्वर्ण सूर्य को उठाकर अपने मस्तक पर धारण कर लिया। और तब नौ देवताओं के दरबार ने कहा, ‘‘होरस पवित्र है। और सेत पापी है!’’ **
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
18-06-2014, 05:37 PM | #136 |
Exclusive Member
Join Date: Jul 2013
Location: Pune (Maharashtra)
Posts: 9,467
Rep Power: 117 |
Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
सुंदर छोटे छोटे ज्ञानवर्धक प्रसंग बहुत कुछ कहतें हें.........
__________________
*** Dr.Shri Vijay Ji *** ऑनलाईन या ऑफलाइन हिंदी में लिखने के लिए क्लिक करे: .........: सूत्र पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे :......... Disclaimer:All these my post have been collected from the internet and none is my own property. By chance,any of this is copyright, please feel free to contact me for its removal from the thread. |
28-06-2014, 10:30 AM | #137 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
यहूदी पौराणिक कथा
आदर्श चोर यदूदी धर्मग्रन्थ तालमूद (प्रथम शताब्दी) कथाओं का भी एक महाग्रन्थ है। ये कथाएँ स्पष्ट रूप से बताती हैं कि यहोवा के अनुयायी भी पर्याप्त रूप से संशयवादी थे और उन्होंने अपनी स्वाभाविक जिज्ञासाओं और मानवीय गुणों को दबा नहीं दिया था। महात्मा ईसाके समकालीन यहूदी धर्मशास्त्रों के महापण्डित तथा प्रजा और राजा, दोनों की श्रद्धा के पात्र गमलीएल नामक एक धर्मगुरु थे। वह यहूदी नियमशास्त्र (तोरह) के आचार्य थे। एक बार वह यहूदी राजा को यहोवा (यहूदी ईश्वर का नाम) की दस आज्ञाओं की व्याख्या समझा रहे थे। आठवीं आज्ञा यह थी : तू चोरी न करना। राजा ने मुसकराकर कहा, ‘‘रब्बी (गुरु) गमलीएल, पर उपदेश कुशल बहुतेरे!’’ गमलीएल ने राजा से आश्चर्य से कहा, ‘‘महाराज, मैं आपकी बात नहीं समझा।’’ ‘‘आप तो जानते ही हैं कि हमारी आदि माता हव्वा की रचना किस प्रकार हुई थी। जब आदि पुरुष आदम सो रहा था, तब यहोवा ने उसकी एक पसली चुरा ली, और उस चुराई हुई पसली से हव्वा का निर्माण किया।’’ ‘‘महाराज, यह ईश-निन्दा है,’’ गुरु बोले। ‘‘मैं यहोवा की निन्दा नहीं कर रहा हूँ। पर क्या मैंने गलत कहा?’’ >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
28-06-2014, 10:31 AM | #138 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
यहूदी धर्म शास्त्रों के महापण्डित गमलीएल निरुत्तर थे। वह घर लौट आए। उन्होंने यहूदी धर्म महासभा के सत्तर सदस्यों की आपात्कालीन बैठक बुलायी। ये सत्तर महापुरुष भी शास्त्रों के पण्डित थे। पर वे भी नहीं जानते थे कि राजा के कथन का किस प्रकार उत्तर दिया जाए।
जब गुरु गमलीएल की पुत्री को पिता की चिन्ता का कारण ज्ञात हुआ, वह महल में राजा के पास पहुँची। उसने राजा से कहा, ‘‘महाराज, मुझे न्याय चाहिए।’’ ‘‘न्याय!’’ ‘‘जी हाँ। कल रात मेरे घर में एक चोर घुस आया। उसने मेरा चाँदी का दीया चुरा लिया। लेकिन वह उसके स्थान पर सोने का दीया छोड़कर चलता बना।’’ राजा ने गगनभेदी अट्टहास किया। गुरु गमलीएल की पुत्री राजा की हँसी के बन्द होने की प्रतीक्षा करती रही। उसने अपनी माँग दुहरायी, ‘‘महाराज, मुझे न्याय चाहिए।’’ राजा ने मुसकराकर कहा, ‘‘काश कि मेरे महल में प्रतिदिन ऐसा आदर्श चोर आए!’’ गुरु गमलीएल की पुत्री ने गम्भीर स्वर में कहा, ‘‘महाराज, आपका कथन शत-प्रतिशत उचित है। हमारे परमेश्वर यहोवा ने यही तो किया था। उसने आदिपुरुष आदम से एक पसली ले ली। पर बदले में उसको एक सुन्दर नारी दे दी!’’ राजा के पास इसका कोई उत्तर नहीं था. **
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
28-06-2014, 01:05 PM | #139 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
बौद्ध भिक्षु और वैश्या
(ओशो) एक बार एक बौद्ध भिक्षु एक गांव से गुजर रहा था। चार कदम चलने के बाद वह ठिठका। क्योंकि भगवान ने भिक्षु संध को कह रखा था। दस कदम दूर से ज्यादा मत देखना। जितने से तुम्हारा काम चल जाये। अचानक उसे लगा ये गली कुछ अलग है। यहां की सजावट, रहन सहन अलग है। लोगों का यूं राह चलते उपर देखना। इशारे करना। कही कोई किसी को बुला रहा है। इशारा कर के। कोई किसी स्त्री को प्रश्न करने के लिए मिन्नत मनुहार कर रहा है। जगह-जगह भीड़ इकट्ठी है। आम गांवों और गलियों में ये दृश्य देखने को नहीं मिलते है। पर भिक्षु विचित्र सेन, थोड़ा चकित जरूर हुआ पर, निर्भय आगे बढ़ा, वह समझ गया की ये वेश्याओं की वीथी है। यहां भिक्षा की उम्मीद कम ही है। वैसे तो भगवान ने कुछ वर्जित नहीं किया था कि किस घर जाओ किस घर न जाओ। पर जीवन में ऐसा उहा-पोह पहले नहीं हुआ था। वह कुछ आगे बढ़ा। >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 28-06-2014 at 01:14 PM. |
28-06-2014, 01:08 PM | #140 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
>>> बौद्ध भिक्षु और वैश्या
ऊपर खिड़की से एक वैश्या ने भिक्षु विचित्र सेन को देखा और देखती रह गई। कितने ही लोगों का उसने देखा था। एक से एक सुंदर धनवान, बलवान, पर इस भिक्षु के मेले कुचैले कपड़े हैं, हाथ में भिक्षा पात्र है, पर इसकी चाल में कुछ ऐसा था मानों आनंद झर रहा हो। उसके चेहरे की आभा और शांति, अभूतपूर्व थी। राजे महाराजों की चाल भी उस युवक भिक्षु के सामने घसर-पसर लगती थी। मानों उसके कदम जमीन पर न पड़ हवा में बादलों पर पड़ रहे है। चलना-चलना न हो उसे पंख लग गये थे उसके पैरो में। बिना किसी सिंगार के वह राजा महाराजा को भी मात दे रहा था। अब ये विरोधाभास देखा आपने देखा ये आपने चमत्कार, हजारों लोगों ने उस भिक्षु को चलते हुए देखा। पर किसी और को उसकी चाल में कोई गुण गौरव क्यों नहीं नजर आ रहा था। ऐसा नहीं है हम जो देखते है वो सत्य है। देखने के लिए भी आंखें चाहिए, अन्दर भरा होश चाहिए। बुद्ध आते और हमी लोगों के बीच से होकर चले जाते है और हम नहीं देख पाते। देख पाते है उनके जाने के भी हजारों सालों बाद। वह वैश्या नीचे उतर आई और सन्यासी का रास्ता रोक कर खड़ी हो गई। सन्यासी अपूर्व रूप से सुंदर हो जाता है। सन्यासी जैसा सौदर्य मनुष्य को देता है और कोई चीज नहीं देती। सन्यासी होकर तुम सुंदर न हो जाओ, तो समझना की कही भूलचूक हो रही है। और सन्यासी का कोई शृंगार नहीं है। सन्यासी इतना बड़ा शृंगार है कि फिर और शृंगार की कोई जरूरत नहीं होती। क्योंकि सन्यासी अपने में थिर हो जाता है। उसकी वासनाएं उसे घेरे नहीं होती। वह उस कोमल पुष्प की तरह हो जाता है। जो अभी-अभी प्रात: की बेला में खिला है। अभी उसकी पंखुड़ियों पर ओस की नाजुक बूँदें चमक रही है। उस पर कोई धूल धमास नहीं ज़मीं है। कोर निष्कलुष है। उसकी सारी उद्विग्नता खो गयी है। उसके सारे ज्वर, तनाव, आसक्ति, कामनाए गिर गई है। शून्य विराग का गीत गूंजता उसके अंतस से। उसके आस पास एक लयबद्धता, एक मधुर झंकार अभिभूत कर जाती है, उसके संग साथ मात्र से। आनंद का समुन्दर हिलोरे मारने लग रहा है उसके ह्रदय में। पर आपने देखा इस अनछुए निष्कलुष सौन्दर्य पर स्त्रियाँ कितनी जल्दी मोहित हो जाती है। स्त्री में एक अद्भुत शक्ति है। वह आपकी आंखे, आपके शरीर के हाव भाव, आपकी छुअन या देखने भर से आपके अंतस की गहराइयों तक की वासनाओं को जान जाती है एक पल में। >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 28-06-2014 at 02:14 PM. |
Bookmarks |
Tags |
पौराणिक आख्यान, पौराणिक मिथक, greek mythology, indian mythology, myth, mythology, roman mythology |
Thread Tools | |
Display Modes | |
|
|