04-06-2011, 09:19 PM | #161 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
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04-06-2011, 10:33 PM | #162 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
इस पर गवर्नर जनरल बन्ने सिंह को समय पर किश्ते भुगतान करने के लिए आदेश दिया तथा परगने दिलाने से इनकार कर दिया। उसके पश्चात् उसे नियमित रुप से प्रतिमाह किश्तों का भुगतान करना पड़ा।
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04-06-2011, 10:35 PM | #163 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
अलवर व भरतपुर के बीच सीमा विवाद (१९ मई, १८३३)
इस समय भरतपु और अलवर के बीच जीलालपुर और छुमरवाला गाँवों के प्रश्न को लेकर सीमा विवाद हुआ। १३ सितम्बर १८३३ को एक पत्र के द्वारा अंग्रेज गवर्नर जनरल के निर्णय के विरुद्ध अपना असंतोष प्रकट किया। अन्त में बन्ने सिंह को बाध्य होकर अंग्रेज गवर्नर जनरल के निर्णय को स्वीकार करना पड़ा। उसने २३ सितम्बर, १८३३ को ब्रिटिश रेजीडेन्ट अजमेर के वहाँ ८ हजार रुपया जुर्माने के जमा करवा दिये।
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04-06-2011, 10:36 PM | #164 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
तोरावटी की समस्या - तोरावटी के भीने अंग्रेज सरकार को आदेशों का पालन नहीं करते थे और वहाँ की फसल चुराकर ले जाते थे, इसलिए अंग्रेज सरकार ने उनकी डकैतियों को समाप्त करने के लिए तथा फसल पकने तक कुछ अंग्रेज सेना को वहाँ रखने का निश्चय किया।
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04-06-2011, 10:37 PM | #165 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
बन्ने सिंह की लोहारु और फिरोजपुर परगने के प्रति नीति - लासवाड़ी के युद्ध (१ नवम्बर, १८०३) में बख्तावर सिंह ने अंग्रेज गवर्नर जनलर लेक को सहायता पहुँचायी थी, तो लेक ने २८ नवम्बर, १८०३ को उसको १३ परगने उपहार स्वरुप दिए थे, जिनमें से लोहारु भी एक था। उसके वकील अहमद बख्श खाँ को उत्तम सेवा के बदले फिरोजपुर का नवाब व लोहारु का नवाब बख्तावर सिंह को बनाया। अलवर राज्य की तिजारा प्रान्त के वेश्या से अहमद बख्श खाँ को दो पुत्र शम्मुद्दीन व इब्राहिम अली दो लड़के व विवाहिता पत्नी से अमीनुद्दीन व जियाउद्दीन अहमद थे। बन्ने सिंह ने उसके फिरोजपुर व लोहारु वार सनद दे दी। किन्तु १८३५ में शम्मुद्दीन के सम्मिलित होने के कारण अंग्रेजों ने उसे मृत्यु दण्ड दिया, व साम्राज्य पर
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04-06-2011, 10:39 PM | #166 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
पर अधिकार कर लिया। अंग्रेजों ने वह अलवर के राव राजा के द्वारा दिया हुआ था तो लौटा दिया। उसके बाद शम्मुद्दीन के भाई अमीनुद्दीन ने लोहारु पर अधिकार किया। बन्ने सिंह ने लोहारु के बजाय फिरोजपुर का परगना दिलाने की माँग की।
बन्ने सिंह ने दोनों सनद की प्रतियाँ भेजी। अंग्रेज गवर्नर ने दोनों प्रतियों का अवलोकन करने के बाद लोहारु के परगने का अधिकार अमीनुद्दीन को दे दिया।
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04-06-2011, 10:40 PM | #167 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
उच्च सरकारी पदों का वितरण - बन्ने सिंह के उत्तराधिकारी संघर्ष के कारण राज्य प्रबन्ध की ओर पूरा ध्यान नहीं दे सका था। इसका परिणाम यह हुआ कि उसने कई पद पर नियुक्त लोगों को हटाया व नई नियुक्तियाँ की। नए दिवान के कार्य उसने नियुक्त किए, जैसे राज्य में फारसी भाषा का प्रचार करना व हिजरी का प्रयोग करना। अत: न्याय व्यवस्था करना ताकि जनता को पूरा न्याय मिल स तथा राज व्यवस्था में सुधार भी किया। १८३८ में किसानों को भूमि काश्त करने के लिए निश्चित समय के लिए दी जाती थी व लगान की दर भी निर्धारित की गई।
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04-06-2011, 10:42 PM | #168 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
१८४२ में बन्ने सिंह के समय में अलवर राज्य में पहला आधुनिक स्कूल खोला गया।
१८५७ का विप्लव और बन्ने सिंह की नीति जिस समय सन् १८५७ में भारत वर्ष में अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए उनके विरुद्ध विद्रोह किया, उस समय उत्तरी भारत में अंग्रेजों की स्थिति निरन्तर बिगड़ती जा रही थी। यद्यपि उस समय बन्ने सिंह सख्त बीमार था फिर भी उसने इस विद्रोह को दबाने में अंग्रेज सरकार को मदद पहुँचायी।
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04-06-2011, 10:45 PM | #169 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
सन् १८५७ के विद्रोह के समय बन्ने सिंह ने चिमन सिंह के नेतृत्व में ८०० पैदल सैनिक, ४०० घुड़सवार सैनिक तथा ४ तोपों को आगरा में घिरी हुई अंग्रेज सेना की सहायता के लिए अलवर से रवाना किया। ११ जुलाई, १८५७ को उछनेरा गाँव में इस अलवर राज्य की सेना पर नीमच तथा नसीराबाद के विद्रोही सैनिको ने अचानक आक्रमण कर दिया।
चिमन सिंह की अंग्रेजों के प्रति स्वामी भक्ति नहीं थी और विद्रोही सेना में बहुत से ऐसे सैनिक थे जो चिम्मन लाल के सम्बन्धी थे। इसका परिणाम यह हुआ कि अलवर राज्य की सेना ने इस युद्ध में अपनी पूरी बहादुरी का परिचय दिया ही नहीं।
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04-06-2011, 10:48 PM | #170 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
इस युद्ध में अलवर के ५५ सैनिक मारे गए, जिसमें से १० बड़े पदाधिकारी थे। बन्ने सिंह की सेना मैदान छोड़कर बाग गई। बन्ने सिंह को यह सूचना प्राप्त हुई उस समय वह मृत्यु शैय्या पर अंतिम घड़ियाँ गिन रहा था, तब भी बन्ने सिंह ने यह आदेश जारी किया कि अंग्रेजों को एक लाख रुपये की सहायता अविलम्ब भेज दी जाए।
जब वह बीमारी की हालत में चल रहा था तब मैदा चेला ने इस्फिन्दयार बेग के बहकावे पर मम्मान चाबुक सवार, गणेश चेला तथा बलदेव आदि तीन बेकसूर व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया और उन पर झूँठा आरोप लगा दिया गया कि महाराव राजा बन्ने सिंह को मारना चाहते थे और बन्ने सिंह के ऊपर कुछ जादू करवा दिया था। इतना ही नहीं मैदा ने
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