16-02-2011, 09:15 AM | #41 |
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Re: जीके का महा संग्राम
१. मानव शरीर में कुल कितनी हड्डियाँ होती हैं - उत्तर-२०६ २. एक स्वस्थ मनुष्य एक मिनट में कितनी बार सांस लेता है- उत्तर- १६ बार ३.मानव शरीर की सबसे छोटी हड्डी कौन सी होती है- उत्तर- स्टेपिज जो की कान में पाई जाती है. ४. मानव चेहरा कितनी हड्डियों से मिल कर बना होता है- उत्तर- १४ |
16-02-2011, 09:16 AM | #42 |
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Re: जीके का महा संग्राम
५. मानव शरीर की सबसे मजबूत हड्डी कौन सी होती है-
उत्तर- फिमर जो जांघ में पाई जाती है ६. एक नवजात शिशु के शरीर में कितनी हड्डियाँ होती है- उत्तर-३०० ७. एक वयस्क मनुष्य के दिमाग का औसत वजन कितना होता है- उत्तर- ३ पौंड 1 pound = 453.५९२३७ ८. मनुष्य का दिमाग सामान्यतः किस गति से संदेशो का संचार करता है- उत्तर- २४० मील प्रति घंटा १ मील = १.६ किलोमीटर ९. एक मनुष्य के शरीर में लगभग कितनी कोशिकाए पाई जाती है- उत्तर- २६ अरब |
16-02-2011, 09:16 AM | #43 |
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Re: जीके का महा संग्राम
१०. किसी मनुष्य के द्वारा श्वसन में एक बार में खींची गयी हवा कितनी होती है-
उत्तर- ५०० मिमी ११.स्वस्थ मनुष्य के शरीर में श्वसन गति एवं नाड़ी की गति का अनुपात कितना होता है- उत्तर - १:४ १२. स्वस्थ मनुष्य के शरीर में उच्चतम एवं निम्नतम रक्तचाप कितना होना चाहिए- उत्तर- ८० मिमी hg - १२० मिमी hg या सिस्टोलिक/डायास्टोलिक = १२०/८० १३. मानव शरीर के जीभ में स्वादवेष्टित कलियों की संख्या कितनी होती है - उत्तर- ९००० १४. मानव के रक्त का pH मान कितना होता है- उत्तर- ७.३५-७.४५ |
16-02-2011, 09:19 AM | #44 |
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Re: जीके का महा संग्राम
सर्दियों में मुहँ से सांस के साथ धुंआ निकलता है वो क्या है? Why Breath Visible in Winter?
सर्दियों में मुहँ से सांस के साथ धुंआ सा क्यों निकलता है ये बात अक्सर पूछते है बच्चें, ऐसा क्यूँ होता है? ये मुहँ से निकलने वाला धुंआ क्या होता है? जब हमारी सांस लेने की क्रिया में वायु फेफड़ों द्वारा बहार निकाली जाती है तो उस में जो जलवाष्पे water vapours होती है | आओ पहले ये जाने कि ये जल वाष्पे सांस में कहाँ से आती है श्वशन क्रिया के दौरान शरीर में CO2 कार्बनडाईऑक्साइड और पानी H2O बनते है यही पानी जलवाष्प के रूप में फेफड़ों द्वारा वाष्पन के द्वारा मुहँ या नाक से बहार निकाल दी जाती है श्वशन/पाचन के दौरान बनने वाला जल और हमारे द्वारा पीया गया जल भी मूत्र,पसीना,वाष्पीकरण द्वारा ही बाहर आता है| अब देखें इसकी रासायनिक समीकरण, Glucose + Oxygen = Carbon Dioxide + Water + Energy C6H12O6+ 6O2=6CO2+ 6H2O + Energy |
16-02-2011, 09:24 AM | #45 |
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Re: जीके का महा संग्राम
आओ अब जाने आगे
सर्दियों में शरीर से बहार यानी कि वायु मंडल का तापमान बहुत कम होता है जैसे ही यह जलवाष्प सांस के साथ बाहर आती है तुरंत ही संघनित Condense कर पानी की छोटी छोटी बूंदों Water Dropletes में बदल जाती है और दिखाई देने लगती है जिसे धुंआ सा कहा जाता है| यह क्रिया हर समय हर मौसम में चलती है तो फिर गर्मियों में क्यूँ नहीं दिखाई देती है यह धुंआ? गर्मियों में बहार का तापमान अधिक होने के कारण ये जलवाष्प संघनित Condense नहीं होने पाती है और जल्दी से पुन्ह वाष्पीकरण हो जाता है | छोटे बच्चे अक्सर गावं में मजाक करते है देखो मै बीडी पी रहा हूँ इस धुवें को दिखा कर | |
16-02-2011, 09:26 AM | #46 |
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Re: जीके का महा संग्राम
जुगनू कैसे चमकता है ? How Firefly shines ?
jugnu प्रकृति में बहुत से जीव और वनस्पतियां स्व प्रकाश उत्पन्न करते है जीव जो प्रकाश (पीला, हरा, लाल) उत्पन्न करते है उसको जीवदीप्ति (Bio-luminescence) कहते है जीवदीप्ति बिना गर्मी का प्रकाश होता है ये प्रकाश शीतल होता है जीवों में मुख्यतः कुछ मोल्स्कन,स्पंज,जेली फिश,केकड़े व कुछ जाति की मछलियाँ,lightning bugs प्रकाश उत्पन्न करते है| पहले तक यह माना जाता रहा कि जीव फास्फोरस के कारण चमकते है लेकिन बाद में पता चल गया कि फास्फोरस के कारण ऐसा नहीं होता है| सन् 1794 में इटैलियन वैज्ञानिक स्पेलेंज़ानी ने सिद्ध किया कि जीवों में प्रकाश उनके शरीर में होने वाली रासायनिक क्रियाओं के कारण होता है ये रासायनिक क्रियाएँ मुख्यत पाचन से सम्बन्धित होती है| यह फोटोजेन या ल्युसिफेरिन रसायन होता है| इन रासायनिक क्रियाओं के कारण मुख्यत दो पदार्थ बनते है| ल्यूसिफेरिन और ल्युसिफेरेस आक्सीकरण क्रिया के फलस्वरूप ल्यूसिफेरिन नामक प्रोटीन आक्सीकृत हो कर चमक उत्पन्न करती है | जुगनू दो प्रकार के होते है, 1. लैपरिड 2. क्लिक बीटल ऐसी क्या जरूरत पडी कि जुगनू या अन्य जीवों के अंदर चमकने जैसी क्रिया विकसित हुई? अभी सही सही नहीं पता है, यह चमक जुगनूओं को अपना आहार बनाने और आहार बनने से बचने दोनों काम आता है नर मादा जोड़ा बनाने यानी मेंटीग के लिए आकर्षण उत्पन्न करते है या दूसरे जानवरों का शिकार करने के लिये इसका उपयोग करते हैं बार बार एक निश्चित अंतराल के बाद उत्पन्न लाईट फ्लश परभक्षियों को भ्रमित करती है ये ही सब चमकने के उपयोग है| वैज्ञानिक जुगनुओं की इस विशेष प्रोटीन से काफी नए शोध की उम्मीदे लगाएं बैठे है वैज्ञानिकों ने fireflies की चमकने वाली प्रोटीन का इस्तेमाल कैंसर, autoimmune रोग और कई अन्य बीमारियों का इलाज की दवाओं के लिए किया है| देखते है कवियों,साहित्यकारों और नग्मानिगारों को कितने ही ख्याल देने वाला जुगनू वैज्ञानिकों को क्या देता है| |
16-02-2011, 09:27 AM | #47 |
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Re: जीके का महा संग्राम
क्या होती चेयुइंगम ? What is Chewing Gum?
बचपन में किसी से सुना था की चेयुइंगम पशु चर्बी से बनती है परन्तु ये सच नहीं है | तो फिर होती क्या है चेयुइंगम ? चेयुइंगम संयोगवश खोजी गयी है वो कैसे उन्नसवी सदी के 1869 ई. में रबर के नए नए विकल्पों की खोज तेज़ी से की जा रही थी तभी थामस एडम्स नामक व्यवसायी सापोडीला(Manilkara zapota, Sapodilla) चीकू फल के पेड़ की गोंद को मुंह में डाल कर चबाया तो उन्हें यह गोंद बहुत ही स्वादिष्ट लगी और उन्होंने विचार किया क्यों न इसको और लोगो तक भी पहुंचाया जाए बस उन्होंने इस गोंद (गम) का पेटेंट(1871) करवाया और 'एडम्स न्युयोर्क गम' गम के नाम से मार्केट में उतरा और बेचना शुरू कर दिया | इसका चिपचिपा और लिसलिसा सा स्वाद सब को अच्छा लगा,मिठास होने और चबाते ही चले जाने के कारण यह छोटे बड़े सब में बहुत लोकप्रिय हुई | चीकू फल के पेड़ के तने के साथ एक वक्राकार कट बनाने से तने के अंदर से गाढ़ा सफेद रस निकलता है जिसे छोटे बैग में एकत्र करते हैं कारखाने में इस रस को कॉर्न सिरप, ग्लिसरीन, चीनी फ़ूड कलर और स्वादिष्ट बनाने का मसाला के साथ उबला जाता है तो यह मिक्सचर सूख जाता है इसको फैला कर मनचाहे आकार के टुकड़ों में काट कर चेयुइंगम बन जाती है| बाद में इस सापोडीला चेयुइंगम में बहुत सुधार हुए,डा. सी मैंन ने इस में पैपासीन नाम का एक सुगन्धित पदार्थ मिला कर इसको बाजार का राजा बना दिया सुगन्धित पैपासीन युक्त सापोडीला चेयुइंगम ने कीं सालों तक बाज़ार में राज़ किया | सापोडीला के राज़ के बाद अब चेयुइंगम गुडा सिपैक प्रजाति के पेडों के गोंद से बनते है |
16-02-2011, 09:30 AM | #48 |
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Re: जीके का महा संग्राम
क्या मछलियाँ भी सूँघ सकती है? Can fish smell?
जैसे हम गंध को नाक से सूंघ लेते है क्या मछलियाँ भी सूँघ सकती है? ये प्रश्न अक्सर सोचने पर मजबूर कर देता होगा मछलियाँ तो पानी के अंदर रहती है और गिल्ज़(गल्फडो) से सांस लेती है और पानी में तो हवा भी नहीं चल रही होती फिर मछलियाँ पानी के भीतर गंध का अनुभव कैसे कर लेती होंगी? इस प्रश्न जानने के लिए पहले ये जानना जरूरी है कि मछली की शारीरिक बनावट कैसी होती है और क्या उस की नाक भी होती है? nostrils मछली के नथुने होते है मछली की नाक ऊपर सिर पर दो खुलने वाले नथुने से बनी है प्रत्येक नथुने में छिद्र होते है दो जोड़ी नथुने के बीच में एक फ्लैप होता है जो इन छिद्रों को अलग अलग करता है वैसे अलग अलग प्रजाति की अलग अलग बनावट होती है यानी अंतर,नाक के भीतर अनगिनत कोशिकाएं होती है पानी एक नथुने से भीतर जाता है और इन कोशिकाओं को छूता है इन कोशिकाओं के संवेदी रिसेप्टर्स गंध को पहचान कर मस्तिष्क को सूचना प्रदान करते है| यहाँ एक बात काबिले गौर है कि मछली के नथुने यानी नाक उसके श्वशन तन्त्र Respiratory System के हिस्से नहीं है|मछली का श्वशन तन्त्र भी जटिल व्यवस्था है चलो जान ही लेते है ये भी fish_system पानी मुख से अंदर जाता है और गिल्ज़ से होता हुआ बाहर आ जाता है gills_2 गिल्ज़ में पानी में घुलनशील आक्सीजन पतली झीळली वाली रक्त नलिकाओं में से रक्त के साथ जा मिलती है और ह्रदय की कार्य प्रणाली से सारे शरीर में पहुँच जाता है | मछलियों को सूघने के लाभ: 1- इनको भोजन की तलाश में मदद मिलती है| 2- इस से इनको खतरे भापने में मदद मिलती है | 3- इनको अपने आश्रय या कह लो घर तक पहुचने में मदद मिलती है | 4- ये इस गुण से दो पानियों का अंतर तक पहचान जाती है | 5- खतरे की चेतावनी देने के काम भी आता है यह गुण| |
16-02-2011, 09:33 AM | #49 |
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Re: जीके का महा संग्राम
क्या होता है इंटरनेट ? What is Internet ?
आज इन्टरनेट का नाम सभी जानते है, ये नाम हमारे लिए नया नहीं रह गया है! आज ये हमारे जीवन का एक हिस्सा बन चुका है! इन्टरनेट से हमारा जीवन कितना सरल हो गया है! लेकिन सवाल ये उठता है कि इन्टरनेट कहते किसे है? सूचनाओ और दस्तावेजों के आदान-प्रदान के लिए टी सी पी /आई पी प्रोटोकॉल का उपयोग कर के बनाया गया नेटवर्क जो वर्ल्ड वाइड नेटवर्क के सिद्धांत पर कार्य करता है उसे इन्टरनेट कहते है! टी सी पी का अर्थ है ट्रांस्मिस्अन कण्ट्रोल प्रोटोकॉल आई पी का अर्थ है इन्टरनेट प्रोटोकॉल इन्टरनेट कनेक्शन के प्रकार............ १. अनालोग/ डायल उप २. आई एस डी एन ३. बी आई एस डी एन ४. डी एस एल ५. केबल ६. वायरलेस इन्टरनेट कनेक्शन/ ब्रोड्बैंड ७. टी १ लाइन ८. टी ३ लाइन जिस तरह हर सिक्के के दो पहलु होते है उसी तरह इन्टरनेट के भी है! इसके कई फायदे और नुकसान भी है! अब ये निर्भर करता है इसका उपयोग करने वाले पर की वो अपने अंदर के इंसान को जगाता है या फिर शैतान को.................सबसे पहले हम इन्टरनेट से होने वाले फायदे के बारे में बात करते है! इन्टरनेट से फायदे: * कमुनिकेशन - इन्टरनेट के द्वारा हम काफी दूर बैठे व्यक्ति से बिना किसी अतिरिक शुल्क के घंटो तक बात कर सकते है! सूचनाओ के आदान प्रदान के लिए इ-मेल कर सकते है! * जानकारी - किसी भी तरह की जानकारी हम सर्च इंजन के द्वारा कुछ पल में प्राप्त कर सकते है! * मनोरंजन - ये हमारी बोरियत खतम करने का सबसे अच्छा माध्यम बनकर उभरा है! संगीत प्रेमियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, संगीत, गेम्स,फिल्म इत्यादि बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के डाऊनलोड कर सकते है! * सर्विसिंग – इन्टरनेट पर कई तरह की सुविधाए है जैसे कि आनलाइन बैंकिंग, नौकरी खोज, रेलवे टिकट बुकिंग, होटल रिजर्वेशन इत्यादि सुविधायें घर बैठे मिल जाती है! * इ-कामर्स- ये सुविधा बिसिनेस डील और सूचनाओं के आदान-प्रदान से सम्बंधित है! * शोसल नेटवर्किंग साईट- आजकल इसका चलन बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है! सेलिब्रिटीस तक इसका अपनी बातों को सभी तक पहुचने के लिए जमकर उपयोग कर रहे है! इसके कई फायदे है! अलग अलग विचारों वाले दोस्त बनते है, जिनसे काफी कुछ सीखने को मिलता है! ये साईट काफी मात्रा में पठनीय सामग्री तक रखे हैं! आज ये अपनी बात दूसरों के सामने रखने का सबसे अच्छा साधन बन रहा है! इन्टरनेट से नुक्सान: * व्यक्तिगत जानकारी की चोरी- व्यक्तिगत इन्फर्मेशन की चोरी के कई मामले सामने आये है जैसे की क्रेडिट कार्ड नम्बर, बैंक कार्ड नम्बर इत्यादि की चोरी! इसका उपयोग देश की सुरक्ष्हा व्यवस्था को भेदने के लिए भी किया जाता है * स्पामिंग- ये अवांछनीय ई-मेल होती है जिनका मकसद गोपनीय दस्तावेजों की चोरी करना होता है! |
16-02-2011, 09:36 AM | #50 |
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Re: जीके का महा संग्राम
* वायरस- इनका उपयोग कंप्यूटर की कार्य प्रणाली को नुक्सान पहुचाने के लिए किया जाता है!
* पोरोनोग्रफी- ये इन्टरनेट मे जहर की तरह है! जिसमे कई लोग समाते चले जाते है! इस तरह की साईट पर ढेरो अश्लील सामग्री रहती है,जिनको देखकर लोग बर्बादी की तरफ अग्रसर हो रहे है और इस तरह का व्यपार चलाने वाले अच्छी आमदनी कर रहे है! ये हमारे समाज में जहर की तरह घुल रहा है! बच्चे इसको देखकर बर्बाद हो रहे है जिससे वो कई तरह के अपराध कर डालते है छोटी सी उम्र में ही जिसका परिणाम बेहद ही खतरनाक होता है! इसे रोकने के लिए सख्त नियम बनने चाहिए! * पाइरेसी- इससे काफी नुकसान हो रहा है आई.टी. जगत और फिल्म नगरी को! कोई भी सॉफ्टवेर या मूवी हो इस पर बिना कोई कीमत दिए मुफ्त में मिल जाता है, तो फिर कोई पैसे क्यों लगाये, ये तभी रुक सकता है जब सरकारें ऐसी वेबसाइटस पर ही पाबन्दी लगा दे अन्यथा ये कभी रुकने वाली नहीं है! " जिस प्रकार सागर मंथन से विष और अमृत दोनों निकले थे, ठीक उसी प्रकार इन्टरनेट पर भी ये दोनों ही है, अब ये उपयोगकर्ता पर निर्भर करता है की वो क्या लेता है विष या अमृत! इन्टरनेट से अगर आप बन सकते है तो बिगड भी सकते है! जिस तरह एक सिक्के के दो पहलु होते है उसी तरह इन्टरनेट के भी है इसलिए अच्छा वाला ग्रहण किया जाये और बुरा वाला त्याग किया जाये, ये हमारे और हमारे देश दोनों के लिए अच्छा है! ’’ लेख: महिंद्र गौर,दर्शन लाल बवेजा चित्र गूगल इमेज से साभार |
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