29-09-2011, 03:58 PM | #631 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
वरना इस हसरत -ऐ- दीदार की ऐसी तैसी|
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ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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29-09-2011, 05:20 PM | #632 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
घर से निकलो तो पता जेब में रखकर निकलो
हादसा चेहरे की पहचान मिटा देता है |
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ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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08-10-2011, 10:21 AM | #633 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
मैं
तुम्हे याद कर-कर के खुद को ही भुलाता जा रहा हूँ मैं .. लगता है की जैसे पगलाता जा रहा हूँ मैं .... ॥ ... वो हसीं सनम जिसे खुदा ने बस मेरे लिये बनाया है बादलों में इक धुंधला सा चेहरा नज़र आया है ... उस चेहरे से तुन्हारा चेहरा मिलाता जा रहा हूं मैं ... लगता है कि जैसे पगलाता जा रहा हूँ मैं ...॥ ... तुमसे इश्क है जी करता है सारे जहां को बता दूं मैं बडी मुश्किल से इस दिल को मनाता जा रहा हूँ मैं ... ... तेरी तस्वीर बन जाये शायद रेत में उंगलियां फिराता जा रहा हूँ मैं ... लगता है कि जैसे पगलाता जा रहा हूँ मैं ...॥ ... अक्सर सोचता हूँ ये क्या लिख रहा हूँ क्यों लिख रहा हूँ मैं .. क्या बताऊँ जब खुद को ही नहीं समझा पा रहा हूँ मैं ... ... यही सच है शायद ... कि पगलाता जा रहा हूं मैं ...॥
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12-10-2011, 07:39 AM | #634 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
जब से बेग़म ने मुझे मुर्गा बना रखा है
मैनें नज़रों की तरह सर भी झुका रखा है । बर्तनों, आज मेरे सर पे बरसते क्यों हो मैनें तो हमेशा से तुमको धुला रखा है । पहले बेलन ने बनाया था मेरे सर पे गुमड़ और अब चिमटे ने मेरा गाल सुजा रखा है । सारे कपड़े तो जला डाले हैं बेग़म ने तन छुपाने को बनियान फटा रखा है । वही दुनिया में मुक़द्दर का सिकंदर ठहरा जिसने खुद को अभी शादी से बचा रखा है । पी जा इस मार की तलख़ी को भी हँस कर “राज” मार खाने में भी क़ुदरत ने मज़ा रखा है । Last edited by Sikandar_Khan; 12-10-2011 at 07:58 AM. |
12-10-2011, 07:40 AM | #635 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
हमने अपने दर्द को
दूर किया जिनके सहारे आज वह चले गए हमसे ही दूर अनंत की यात्रा पर जाने वाले हम तुम्हे यूं न भुला पाएंगे जब-जब सुनेंगे आवाज तुम्हारी तब-तब बहुत रूलाओगे ‘जग जीत’ छोड़ गए जग को हर आँख नम है हर दिल रो रहा न जाने कहां तुम चले गए वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी सब कुछ याद आ गया महसूस किया हर दर्द आपने क्या होता है प्यार क्यों होता है बिछोह सरहदें भी न रोक सकीं जिसको आज वो परिंदे की मानिंद चला गया दूर गगन में न जाने कौन से देश हम तुम्हे यूं न भुला पाएंगे जब-जब सुनेंगे आवाज तुम्हारी तब-तब बहुत रूलाओगे. |
12-10-2011, 07:41 AM | #636 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
तुझे देखने को ये दिल बेताब है
पर खिड़की पे खड़ा तेरा बाप है। कभी इत्तेफ़ाक़ से जो नज़र मिल भी जाए तो समझो सारा दिन खराब है। कभी उसकी बहनें कबाब में हड्डी थीं मगर अब हड्डी में फँसा कबाब है। मुझे डरा धमका के सीधा कर लेंगे तेरे भाइयों को आया ये ख्वाब है। लाओ मेरे छुट्टे पैसे वापस कर दो अभी चुकाना तुम्हें बहुत हिसाब है। दिलबर क्या यही हैं तेरे प्यार की सौगातें? बिखरे बाल, घिसे जूते, फटी जुर्राब है। घर वाले गर पूछें कहाँ जा रही हो? कहना सहेली की तबीयत खराब है। आइ हो , दो चार घड़ियाँ बैठो तो सही रिक्शे का ड्राइवर कौन सा नवाब है। “राज” तुम खुद को समझते क्या हो? याद उसका, यही मेरा जवाब है॥ |
12-10-2011, 07:42 AM | #637 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
आशिक ने कहा माशुका से
“तुम जल्दी से विवाह की तारीख तय कर लो, मेरा अभी तक दिल बहलाया है अब खाली घर भी भर दो, वरना तुम्हारे घर के बाहर आमरण अनशन पर बैठ जाऊंगा, भूखा प्यासा मरकर अमर आशिक का दर्जा पाऊँगा, दुनिया मेरी याद में आँसू बहाएगी।” सुनकर माशुका झल्लाई और गरजते हुए बोली “मुझे मालूम है नौकरी से तुम्हारी होने वाली है छटनी, बन जाएगी तुम्हारी जेब की चटनी, अब तुम मेरे खर्चे नहीं उठा पाओगे, |
12-10-2011, 07:44 AM | #638 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
कब्जी की आम शिकायत हो, या बदहज़मी के हो शिकार,
नाड़ी जो ढीली चलती हो, अथवा गमगीन बने रहते हो मत फ़िरो डॉक्टर के पीछे, राम ने राह बताई ऊपर के रोगों की खातिर, जरदा पेटेंट दवाई है. हमको कड़वा लगता है, खाने वाले को शरबत है, राणा जी को जो जहर लगे वो मीरा बाई को अमृत है, आख़िर जरदा ही मांगा है जेवर चाहा दान नहीं इन्सल्ट प्रूफ जरदेवाले इनका होता अपमान नहीं वह गौरी है यह कैसरिया सो रंग वाला बाना ज़ी जोरू बिन महीना काट सको, जरदे बिन बहुत कठिन जी तुम मर्द नहीं बन सकते, तलवार चलाने से मर्दानगी का सर्टिफिकेट मिलता है, जरदा खाने से. |
12-10-2011, 07:45 AM | #639 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
आपके जीवन में वो आई नहीं, पर फील गुड
आपने कोई खुशी देखी नहीं, पर फील गुड डिग्रियाँ हैं पास में देने को पर रिश्वत नहीं नौकरी ढूँढ़ें से भी मिलती नहीं, पर फील गुड घर का राशन ख़त्म है तो क्या हुआ उपवास रख जेब में फूटी भी इक कौड़ी नहीं, पर फील गुड घूस लेकर भी पुलिस का छोड़ देना कम है क्या ? तेरी नज़रों में पुलिस अच्छी नहीं, पर फील गुड कल थे जो उस पार्टी में आज इसमें आ गए कुछ समझ में बात ये आई नहीं, पर फील गुड देश क़र्जों में धँसा है, भ्रष्टता है चरम पर बात तुमने ये कभी सोची नहीं, पर फील गुड आप जनता हैं समय की आपको परवाह क्या ट्रेन टाइम से कभी आती नहीं, पर फील गुड एक ने मंडल बनाए, एक ने बंडल किए बात दोनों की हमें भाई नहीं, पर फील गुड नाम इक दिन आएगा इतिहास में ‘अनमोल’ का आज इसको जानता कोई नहीं, पर फील गुड |
12-10-2011, 07:46 AM | #640 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
जय बोलो बेईमान की
मन, मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार, ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार। झूटों के घर पंडित बाँचें, कथा सत्य भगवान की, जय बोलो बेईमान की ! प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल, टेप-रिकार्डर में भरे, चमगादड़ के बोल। नित्य नई योजना बन रहीं, जन-जन के कल्याण की, जय बोल बेईमान की ! महँगाई ने कर दिए, राशन-कारड फेस पंख लगाकर उड़ गए, चीनी-मिट्टी तेल। ‘क्यू’ में धक्का मार किवाड़ें बंद हुई दूकान की, जय बोल बेईमान की ! डाक-तार संचार का ‘प्रगति’ कर रहा काम, कछुआ की गति चल रहे, लैटर-टेलीग्राम। धीरे काम करो, तब होगी उन्नति हिंदुस्तान की, जय बोलो बेईमान की ! दिन-दिन बढ़ता जा रहा काले घन का जोर, डार-डार सरकार है, पात-पात करचोर। नहीं सफल होने दें कोई युक्ति चचा ईमान की, जय बोलो बेईमान की ! चैक केश कर बैंक से, लाया ठेकेदार, आज बनाया पुल नया, कल पड़ गई दरार। बाँकी झाँकी कर लो काकी, फाइव ईयर प्लान की, जय बोलो बईमान की ! वेतन लेने को खड़े प्रोफेसर जगदीश, छहसौ पर दस्तखत किए, मिले चार सौ बीस। मन ही मन कर रहे कल्पना शेष रकम के दान की, जय बोलो बईमान की ! खड़े ट्रेन में चल रहे, कक्का धक्का खायँ, दस रुपए की भेंट में, थ्री टायर मिल जायँ। हर स्टेशन पर हो पूजा श्री टी.टी. भगवान की, जय बोलो बईमान की ! बेकारी औ’ भुखमरी, महँगाई घनघोर, घिसे-पिटे ये शब्द हैं, बंद कीजिए शोर। अभी जरूरत है जनता के त्याग और बलिदान की, जय बोलो बईमान की ! मिल-मालिक से मिल गए नेता नमकहलाल, मंत्र पढ़ दिया कान में, खत्म हुई हड़ताल। पत्र-पुष्प से पाकिट भर दी, श्रमिकों के शैतान की, जय बोलो बईमान की ! न्याय और अन्याय का, नोट करो जिफरेंस, जिसकी लाठी बलवती, हाँक ले गया भैंस। निर्बल धक्के खाएँ, तूती होल रही बलवान की, जय बोलो बईमान की ! पर-उपकारी भावना, पेशकार से सीख, दस रुपए के नोट में बदल गई तारीख। खाल खिंच रही न्यायालय में, सत्य-धर्म-ईमान की, जय बोलो बईमान की ! नेता जी की कार से, कुचल गया मजदूर, बीच सड़कर पर मर गया, हुई गरीबी दूर। गाड़ी को ले गए भगाकर, जय हो कृपानिधान की, जय बोलो बईमान की ! |
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