06-11-2011, 11:18 AM | #11 |
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Re: रूसी काव्य जगत हिन्दी में
मां दिन हैं गहरे जाड़े के रात-रात भर स्तेपी में हिम तूफ़ान गरजते रहते हैं हर चीज़ पर बर्फ़ लदी है हिम अंधड़ों के उत्पात सब बेचैनी से सहते हैं बुराक हिम से अकड़ गए खेत घर-खलिहान कुनमुना रहे हैं पवन चोट करता खिड़की पर शीशे तक झनझना रहे हैं कभी-कभी घर में घुस हिमकण ऐसा नाच दिखाते हैं रात को जुगनू चमकें जगमग ज्यों सबका मन बहलाते हैं घर के भीतर जली है ढिबरी लौ कांपे है उसकी छाई हलकी पीली रोशनी रात ले रही है सिसकी मां का रतजगा हुआ है आज वह घर-भर में टहले जाती चिन्तित है बेहद, मौसम ख़राब है वह पलक तक झपक न पाती जब ढिबरी बुझने को होती किसी पुस्तक की आड़ लगाती और बच्चा जब रोने लगता उसे कांधे लगा लोरी गाती रात फैलती ही जाती है अनंत काल सी बढ़ती हिमतूफ़ान दुष्ट शोर मचाता ज्यों हिला रहा यह धरती मां बेहद घबराती है तब झपकी बेहाल करती उसे जब तभी अचानक हिम अंधड़ का तेज़ भयानक झोंका आया मां कांप उठी भीतर तक गहरे लगा उसे घर थरथराया चीख़ सुनी उसने हलकी-सी जैसे दूर कोई चिल्लाया स्तेपी में वह पड़ी अकेली कौन भला मदद को आए आंखें भरीं लबालब अश्रु-जल से होंठ लगातार फड़फड़ाएँ थकी नज़र चेहरा उदास है मन उसका बेहद घबराए चौंक-चौंक उठता बच्चा भी अपनी काली-बड़ी आंखें फैलाए... __________________________________________________ ____ (ध्यानार्थ- स्तेपी रूसी में सैकड़ों किलोमीटर तक फैले वृक्षविहीन मैदानों को कहा जाता है !) Last edited by GForce; 08-11-2011 at 11:14 PM. |
06-11-2011, 11:21 AM | #12 |
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Re: रूसी काव्य जगत हिन्दी में
तुम्हारा हाथ / इवान बूनिन
तुम्हारा हाथ अपने हाथ में लेता हूं और फिर देर तक उसे ध्यान से देखता रहता हूं मीठी अनुभूतियों से भरी तुम आंखें झुकाए बैठी हो इन हाथों में तुम्हारा सारा जीवन समाया हुआ है महसूस कर रहा हूं मैं तुम्हारे शरीर की अगन और डूब रहा हूं तुम्हारी आत्मा की गहराइयों में और भला क्या चाहिए ? सुखद हो सकता है क्या जीवन इससे अधिक ? पर ओ देवदूत विद्रोही हम परवानों पर झपटने वाला है वह तूफ़ान सनसना रहा है जो दुनिया के ऊपर मौत का संदेश लेकर Last edited by GForce; 08-11-2011 at 11:14 PM. |
06-11-2011, 11:28 AM | #13 |
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Re: रूसी काव्य जगत हिन्दी में
बिटिया/इवान बूनिन
बार-बार मुझे सपना यह आता है मेरे भी बिटिया है एक जिसके विवाह का इन्तज़ार डराता है नर्म हॄदय है, स्नेह की मन में भावना है नेक आख़िर को वह वधू बनी और फिर उसे सजाया गया भाव-विह्वल हो प्यार से मैं स्नेह-नदी में बह गया दुल्हन के नवरूप में उसे जब मेरे पास लाया गया अपनी सुन्दर बिटिया को मैं देखता ही रह गया घूंघट हटा उसके चेहरे से मैंने देखा उसे एक बार वह क्षण ऐसा था कि उसे देख मन भारी हो गया चेहरे पर उसके लाजभरी चमक थी आंखों में था प्यार पर मैं सफ़ेद पड़ गया था Last edited by GForce; 08-11-2011 at 11:15 PM. |
08-11-2011, 11:17 PM | #14 |
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Re: रूसी काव्य जगत हिन्दी में
मेरे वासन्ती सपने वो प्रेम के / इवान बूनिन
मेरे वासन्ती सपने वो प्रेम के जिनको देखूँ मैं हर सुबह नेम से हिरणों के झुंड से जमा थे सारे वहाँ उस वन में नदी के किनारे हरे-भरे वन में गूँजा हलका-सा स्वर उनकी सतर्कता थी इतनी प्रखर रेवड़ विकंपित-सा दौड़ गया सुखद क्षण-भर को चमकी ज्यों विद्युत की लहर |
09-11-2011, 12:14 AM | #15 |
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Re: रूसी काव्य जगत हिन्दी में
Mitr ! Apka wahi andaz dekhkar acha laga ...kripya alexendar block jaise logon ki aur bhi bhavpoorn or dil chune wali kavitayen pesh karne ka kasht karen.
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ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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09-11-2011, 08:25 PM | #16 |
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Re: रूसी काव्य जगत हिन्दी में
आपका हृदय से आभार बन्धु ! आप सच्चे मित्र हैं ! वहां भी अतिरंजित प्रशंसा करते थे, यहां भी ऐसा ही कर रहे हैं ! यह आपका स्नेह ही है, अन्यथा मेरा यह कार्य अत्यंत लघु है !
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28-11-2011, 06:16 AM | #17 |
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Re: रूसी काव्य जगत हिन्दी में
रूसी साहित्य की प्रतिष्ठित कवयित्री हैं मरीना स्वितायेवा ! उनका जन्म 8 सितंबर 1892 को मॉस्को में हुआ ! 'सांझ का अल्बम' (1912), 'जादुई मशाल' (1913), 'फ़ासले' (1920), 'ज़ार-कन्या' (1921), 'वियोग', 'आत्मा' और 'रूस के बाद' उनके लोकप्रिय कविता संग्रह हैं ! रूसी साहित्य की इस अनुपम कवयित्री ने 1941 में अज्ञात कारणों से आत्महत्या कर स्वयं अपनी इहलीला समाप्त कर ली ! यहां पढ़ें उनकी कुछ उत्कृष्ट रचनाएं !
घर जिन लोगों ने घर नहीं बनाए वे अयोग्य हैं इस धरती के जिन लोगों ने घर नहीं बनाए इस धरती पर नहीं लौट कर आ सकते वे भूसे या भस्मी हित शायद कभी न धरती पर आ सकते मैंने भी घर नहीं बनाए |
28-11-2011, 06:21 AM | #18 |
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Re: रूसी काव्य जगत हिन्दी में
ईर्ष्या / मरीना स्वितायेवा
बीत रहा है जीवन कैसा अब उस औरत के साथ तुम्हारा क्या पहले से अच्छा पहले चप्पू के लगते ही पत्तन की सीमा-रेखा की भाँति याद है मेरा टापू (नहीं सिन्धु में वरन* गगन में) पीछे छोड़ दिया है अरे प्राणियो तुम बन सकते केवल भाई और बहिन ही प्रेमी कभी नहीं उस मामूली औरत के संग जिसमें नहीं दिव्य गुण कोई बीत रहा है जीवन कैसा जो साम्राज्ञी रही तुम्हारी छोड़ गई है मन्दिर अपना तुमने भी सिंहासन त्यागा बीत रहा है जीवन कैसा क्या तुम हरदम बहुत व्यस्त हो या दुर्बल होते जाते हो बिस्तर से उठने में भी क्या अपने को निर्बल पाते हो सतत निर्रथक बातों की ऐ याचक तुम क्या कीमत दोगे इतना क्षोभ परेशानी व्याकुलताएँ हैं घर एक किराए पर ले लूँगी अब मैं ओ मेरे अपने ओ मेरे वरण किए बतला दो इतना उस औरत के संग में जीवन बीत रहा है कैसा क्या तुमको भोजन स्वादिष्ट मिला करता है अगर अरुचि हो जाए उससे तो रोना मत तुम जिसने रौंदा सिनाई को उसका जीवन उस सुनहरी मूर्ति के संग में बीत रहा है कैसा कैसा लगता है अब जीवन उस दुनियावी अनजानी औरत संग सच बतलाना उसे प्यार करते हो तुम क्या लज्जा क्या जीयस के क्रोध सरीखी भाल तुम्हारे पर है चाबुक नहीं मारती देती क्या धिक्कार नहीं है जैसा तुमने चाहा क्या जीवन वैसा है क्या तुमने अपने को ख़ुश महसूस किया है क्या गाते हो गा सकते हो ओ दीन पुरुष तुम अमर-आत्मा की पीड़ा कैसे सहते हो इतना अधिक मूल्य देकर के जो है बेजा उस नुमायशी टीम-टाम संग बीत रहा है जीवन कैसा केर्रार संगमरमर के पश्चात प्लास्टर-पैरिस अब लगता है कैसा (अनगढ़ पत्थर को तराश कर मूर्ति बनाई गई देव की लेकिन खण्ड-खण्ड हो टूटी तुम जिसने पिया लिलिथ अधरामृत उस असभ्य के साथ बिताते जीवन कैसे पेट अभी तक नहीं भरा क्या उससे बाज़ारू जो एक खिलौना पास तुम्हारे जादू अब तक क्या बाक़ी है उसका उस दुनियावी औरत के संग नहीं छठी इन्द्रिय है जिसमें जीवन बीत रहा है कैसा अपने दिल पर क्रॉस बनाओ और बताओ क्या तुम उसके साथ सुखी हो अगर नहीं क्या विफल हुए हो क्या छिछलेपन की तरंग-सा क्या भयावना या वैसा ही जैसा मेरा किसी और के साथ चल रहा प्रिय बता दो जीवन बीत रहा है कैसा ____________________________________ जीयस : यूनान के इंद्र देवता, केर्रार : उत्तर-पश्चिम इटली का एक नगर, लिलिथ : हव्वा के पैदा होने से पहले आदम की पत्नी |
28-11-2011, 06:35 AM | #19 |
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Re: रूसी काव्य जगत हिन्दी में
मरीना की अति श्रेष्ठ कविताएं प्रस्तुत करने के लिए आपका धन्यवाद ! मरीना ने अपने समकालीन रूसी साहित्यकारों को याद करते हुए कुछ शानदार कविताएं लिखी हैं ! आप उन्हें भी प्रस्तुत कर सकें, तो मुझ जैसे साहित्य-प्रेमी पाठक आपके कृतग्य रहेंगे !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
28-11-2011, 09:21 PM | #20 |
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Re: रूसी काव्य जगत हिन्दी में
अवश्य ! शीघ्र प्रस्तुत कर दूंगा !
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