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Old 30-03-2012, 08:51 AM   #11
DevRaj80
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जिसका अर्थ है कि वेद में नीचे बताई 16 स्त्रियां मनुष्य के लिए माताएं हैं-

स्तन या दूध पिलाने वाली, गर्भधारण करने वाली, भोजन देने वाली, गुरुमाता, यानी गुरु की पत्नी, इष्टदेव की पत्नी, पिता की पत्नी यानी सौतेली मां, पितृकन्या यानी सौतेली बहिन, सगी बहन, पुत्रवधू या बहू, सासु, नानी, दादी, भाई की पत्नी, मौसी, बुआ और मामी।
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Old 30-03-2012, 09:11 AM   #12
Sikandar_Khan
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Default Re: जीवन मन्त्र

अत्यंत ज्ञानवर्धक सूत्र के लिए आप बधाई के पात्र हैँ
आशा करता हूँ आप इस सूत्र को निरंतर गतिमान रखेँगे |
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."

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Old 30-03-2012, 09:17 AM   #13
DevRaj80
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बिलकुल सिकंदर भाई
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Old 31-03-2012, 07:13 AM   #14
DevRaj80
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विवाह का उद्देश्य सिर्फ दैहिक सुख ना हो...













विवाह का उद्देश्य सिर्फ वासना की पूर्ति नहीं होना चाहिए। पति या पत्नी दोनों में से एक भी अगर वासना पर टिक जाते हैं, तो वे अपने जीवन साथी के सामने बौने हो जाते हैं। वासना को सृजन से जोडऩे वाले परिवार को महत्व देते हैं। जो लोग केवल दैहिक सुख की कामना से विवाह करते हैं, वे थोड़े ही दिनों में गृहस्थी को नर्क के मार्ग पर ले आते हैं।
गृहस्थी बसाना सभी को पसंद है भले ही मजबूरी हो या मौज। अधिकांश लोग इससे गुजरते जरूर हैं। जब-जब गृहस्थी में अशांति आती है तब आदमी इस बात को लेकर परेशान रहता है कि क्या किसी के दाम्पत्य में शांति भी होती है। समझदार लोग गृहस्थ जीवन में शांति तलाश लेते हैं।



आचार्य श्रीराम शर्मा ने अपने एक वक्तव्य में गृहस्थी में अशांति के कारण को वासना भी बताया है। उन्होंने कहा है वासना के कारण पुरुष स्त्री के प्रति और कभी-कभी स्त्री पुरुष के प्रति जैसा द्वेष भाव रख लेते हैं उससे परिवारों में उपद्रव होता है। एंजिलर मछली का उदाहरण उन्होंने दिया है।



यह मछली जब पकड़ी गई इसका आकार था 40 इंच। मामला बड़ा रोचक है लेकिन नर एंजिलर पकड़ में नहीं आ रहा था क्योंकि वह उपलब्ध नहीं था। एक बार तो यह मान लिया गया कि इसकी नर जाति होती ही नहीं होगी। लेकिन एक दिन एक वैज्ञानिक को मादा मछली की आंख के ऊपर एक बहुत ही छोटा मछली जैसा जीव नजर आया जो मादा मछली का रक्त चूस रहा था। यह नर मछली था। मादा का आकार 40 इंच था और नर का 4 इंच। पं. शर्मा ने इसकी सुंदर व्याख्या करते हुए कहा था कि नारी को भोग और शोषण की सामग्री मानने वाला पुरुष ऐसा ही बोना होता है। जो मातृशक्ति को रमणीय मानकर भोगने का ही उद्देश्य रखेंगे वे जीवन में एंजिलर नर मछली की तरह बोने रह जाएंगे।



हम इस में यह समझ लें कि जानवरों में उनकी अशांति का कारण वासनाएं होती हैं। केवल बिल्ली की बात करें बिल्ली का रुदन उसकी देह की पीड़ा नहीं उसकी उत्तेजित कामवासना का परिणाम है। ठीक इसी तरह मनुष्य भी इनके परिणाम भोगता है और उसका रुदन ही परिवार में अशांति का प्रतीक है।
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Old 31-03-2012, 07:14 AM   #15
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इस भावना से रहेंगे तो गृहस्थी स्वर्ग बन जाएगी...



अगर वैवाहिक जीवन सफल है तो जीवन सफल है। गृहस्थी, हमारी संस्कृति की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। अविवाहित रहना और विवाह के बाद के जीवन में जमीन आसमान का फर्क होता है। विवाह संतुलन का नाम है। जीवन में संतुलन तब तक नहीं आता जब तक इसके सुख-दु:ख बांटने वाला कोई आ ना जाए। सन्यास से भी बड़ी जिम्मेदारी होती है गृहस्थी। भगवान राम और कृष्ण ने भी इस जिम्मेदारी को निभाया, विवाह और उसके बाद जीवन के सुख-दु:ख और जिम्मेदारियों को उठाया है।
जीवन में श्रेष्ठ क्या है इसकी सबकी अपनी-अपनी परिभाषा होती है। किसी धार्मिक आदमी से पूछो तो वह कहेगा श्रद्धा के बिना धर्म बेकार है। किसी आध्यात्मिक आदमी से पूछो तो वह प्रेम पर टिक जाएगा। कोई योद्धा हो और लम्बे समय से रणक्षेत्र में हो तो उसके लिए घर से बढ़कर और कुछ नहीं होगा। व्यापारी व्यवसाय को उत्तम बताएगा।



ऐसे जीवन के अनेक क्षेत्र हैं जिनमें सबकी अपनी-अपनी राय होगी। कल्पना करिए ये सब एक जगह मिल जाएं तो जीवन का दृश्य क्या हो? और इसका नाम है दृष्टि। दाम्पत्य एक तरह का कोलाज है। यहां धर्म, प्रेम, श्रद्धा, शान्ति, अशान्ति, लोभ सब एक साथ मिल जाएगा। जोगी, यति, तपस्वी, फकीर, महात्मा, सफल व्यवसायी, उच्च शिक्षाविद् सबकुछ इस एक छत के नीचे घट सकता है।



इसलिए दाम्पत्य को संन्यास से भी कठिन माना है। इसमें धैर्य और दूसरे के लिए जीने की तमन्ना रखना पड़ती है। गृहस्थी से गुजरे हुए लोग स्वतंत्र जीवन जीने वाले लोगों के प्रति परिपक्व और गंभीर नजर आते हैं। परमात्मा की खोज में निकलने वाले लोग केवल पहाड़ों, जंगलों से निकलेंगे ऐसा नहीं है, चूल्हा, चौका, शयनकक्ष और आंगन परमात्मा ने इन्हें भी अपना स्थान बनाया है।



भगवान् ने अपने लिए एक नाम रखा है ब्रह्म। इसका अर्थ बड़ा सुन्दर है। इसका अर्थ है जो सदा विस्तार की ओर चले, हमेशा विराट होने की सम्भावना अपने अंदर रखे, जो अनन्त हो। और यह भाव गृहस्थी में बड़ा काम आता है क्योंकि भीतर से विशाल हुए बिना बाहर का विराट कैसे उपलब्ध होगा।
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Old 31-03-2012, 07:15 AM   #16
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जानिए, भगवान से प्रार्थना में क्या मांगा जाए...



हम मंदिर या किसी भी देव स्थान पर जब भी जाते हैं, हमारी मांगों की फेहरिस्त तैयार ही होती है। कभी बिना मांगे हम किसी दरवाजे से नहीं लौटते। परमात्मा से मांगने की भी एक सीमा और मर्यादा होती है। हमेशा भौतिक वस्तुओं या सांसारिक सुख की मांग ही ना की जाए। कभी-कभी कुछ ऐसा भी मांगें जो हमें भीतर से परमात्मा की ओर मोड़ दे। ईश्वर गुणों की खान होता है, उससे हम अपने लिए सद्गुण मांगें तो ज्यादा बेहतर होगा।
परमात्मा से जब भी की जाए गुण ग्रहण की ही प्रार्थना की जाए। प्रार्थना तो करें परन्तु उसे आचरण में भी लाएं। अन्यथा प्रार्थना फलीभूत नहीं हो पाएगी। गुण ग्रहण की प्रार्थना करने का अर्थ है कि हम सुबह उठकर एक अच्छा काम करने का संकल्प लें और रात सोने से पहले एक बुराई का त्याग करके सोएं।
जो ऐसा करते हैं वे गुणग्राही, जीवन को गुणों से सम्पन्न बना लेते हैं। धन से सम्पन्न होना तो सरल एवं सहज है लेकिन गुणों से सम्पन्न होना मुश्किल हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम बुराइयों को छोडऩे और अच्छाइयों एवं गुणों को ग्रहण करने में अपने आपको कमजोर पाते हैं।
इस कमजोरी के कारण हम गुणों को देखने के स्थान पर दोष देखने लगते हैं। अपने व्यक्तित्व में सृजन का भाव लगातार विकसित करें। मानव जीवन को कल्पवृक्ष बनाने का श्रेय इन्हीं रचनात्मक विचारों का होता है।
इस तथ्य को भली प्रकार समझते हुए चिन्तन को मात्र रचनात्मक एवं उच्च स्तरीय विचारों में ही संलग्न करना चाहिए। विचार मानव के जीवन में महान शक्ति है। वही कर्म के रूप में परिणत होती और परिस्थिति बनकर सामने आती है। जैसा बीज होगा वैसा पेड़ बनेगा। जैन मुनि प्रज्ञा सागरजी ने अपनी पुस्तक मेरी किताब में इस विषय पर बहुत अच्छे विचार दिए हैं।
उनका कहना है- कुछ लोग दूसरे की कमी क्यों देखते हैं? अपनी कमी को छिपाने के लिए। जैसे लोमड़ी अंगूर तक नहीं पहुँच पाती तो स्वयं को दोष देने की बजाय अंगूरों को दोष देने लगती है। खाने की वासना तो है लेकिन अपनी असमर्थता छुपाने के लिए अंगूर को ही खट्टा बता दिया। ऐसे ही हम भी अपनी कमी छुपाते-छुपाते दूसरों की कमी देखने के आदी हो गए हैं।
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Old 31-03-2012, 10:09 AM   #17
Dark Saint Alaick
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एक श्रेष्ठ और मूल्यपरक सूत्र के लिए बधाई स्वीकार करें मित्र मानसर ! आपके द्वारा प्रस्तुत यह अनमोल विचार-बिंदु निश्चय ही फोरम के सदस्यों के ज्ञान में वृद्धि करेंगे ! यह अमृत-वर्षा ऐसे ही निरंतर रहेगी, ऎसी आशा है ! धन्यवाद !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Old 31-03-2012, 01:44 PM   #18
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Originally Posted by dark saint alaick View Post
एक श्रेष्ठ और मूल्यपरक सूत्र के लिए बधाई स्वीकार करें मित्र मानसर ! आपके द्वारा प्रस्तुत यह अनमोल विचार-बिंदु निश्चय ही फोरम के सदस्यों के ज्ञान में वृद्धि करेंगे ! यह अमृत-वर्षा ऐसे ही निरंतर रहेगी, ऎसी आशा है ! धन्यवाद !
मै आपकी आशा पर खरा उतरने की कोशिश करूँगा मित्र ....
मै पोस्ट की संख्या या सूत्र संख्या बढ़ा कर रेपो बढ़ाने की इच्छा नहीं रखता ....
मेरी पोस्ट और सूत्र बहुत कम होंगे .... परन्तु कोशिश करूँगा की मूल्यपरक और सार्थक हो ....

धन्यवाद मित्र अलिक
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Old 31-03-2012, 01:48 PM   #19
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Originally Posted by sikandar_khan View Post
अत्यंत ज्ञानवर्धक सूत्र के लिए आप बधाई के पात्र हैँ
आशा करता हूँ आप इस सूत्र को निरंतर गतिमान रखेँगे |
मेरी नई पोस्ट कैसी लगी सिकंदर भाई .....
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Old 09-04-2012, 07:46 PM   #20
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बहुत हीं अच्छी और एक नए किस्म का सुत्र बनाया है आपने। इस काम के लिए मैं आपको दिल से बधाई देता हूँ, और आशा करता हू~म कि आप अपने इस सुत्र को आगे बढ़ाते रहेंगे।
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