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Old 01-06-2012, 08:15 PM   #1
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सूर्यास्त


अभी कल ही L K आडवानी जी का नया ब्लॉग पढ़ा. http://blog.lkadvani.in/blog-in-engl...-a-hub-of-hope

इस ब्लॉग में उन्होंने लिखा है.

"I had said at the Core Group meeting that if people are today angry with the UPA government, they are also disappointed with us. The situation, I said, calls for introspection,"

इस लेख को पढ़कर साफ़ लग रहा है की आडवाणी जी मोदी और गडकरी से नाराज़ है और अन्दर ही अन्दर मोदी के राष्ट्रीय पटल पर उभरने के कारण उन्हें अपनी प्रधानमन्त्री बनने की हशरत धुल में मिलती हुई दिख रही है.

मोरारजी देसाई जब १९७७ में प्रधानमंत्री बने तो वो ८१ साल के थे और तब भी लोगो के कहा था इतनी उम्र में प्रधानमन्त्री बनना सही नहीं है. लेकिन तब जनता पार्टी सरकार के पास और अच्छे विकल्प मौजूद नहीं थे. आज BJP में काफी अच्छे नेता हैं और ऐसे में आडवाणी जी का कोई चांस नज़र नहीं आता.

आडवाणी जी २०१४ में ८६ साल के होंगे और ऐसे में वो प्रधानमंत्री पद के दायित्व को अच्छे से निभा पायेंगे, इसपर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है. अब वक़्त आ गया है की वो अपने जूते खूटी पर लटकाए और मोदी को विजयी भव का आशीर्वाद दे कर एक मेंटर और गुरु की भूमिका में आ जाए.

आडवाणी जी को २००४ और २००९ में २ मौके मिले लेकिन वो इसको भुना नहीं पाए और अब २०१४ में उन्हें तीसरा मौका देना कही से भी सही नहीं होगा.

कई लोग कह रहे है वो मोदी, गडकरी और RSS से नाराज़ हैं और मोदी को किसी भी हालत में सबसे बड़ा नेता नहीं बनना देना चाहते. लेकिन शायद वो भूल रहे हैं की नेता कोई पार्टी नहीं बनाती, उन्हें बड़ा जनता बनाती है और इसमें कोई शक नहीं आज की डेट में मोदी ही BJP के सबसे बड़े नेता हैं.

उन्होंने यह भी लिखा है.

“The mood within the party these days is not upbeat. The results in Uttar Pradesh, the manner in which the party welcomed BSP Ministers who were removed by Mayawati ji on charges of corruption, the party's handling of Jharkhand and Karnataka - all these events have undermined the party's campaign against corruption."

यह बात आडवाणी जी को तब करनी चाहिए थी जब गडकरी यह सब फैसले ले रहे थे, अब गड़े हुए मुर्दे उखाड़ने से क्या फायदा. इससे तो हर जगह यही सन्देश जाएगा को आडवाणी जी प्रधानमन्त्री पद हाथ से जाता देखकर अधीर हो गए हैं और आखिरी प्रयास कर रहे हैं.

और इस तरह के विवादों से नुकसान केवल BJP का ही होगा, आडवाणी जी को इसपर मंथन करना चाहिए, आखिरकार कोई अपने ही द्वारा सीचें गए पेड़ को तो नहीं काटता. २०१४ में BJP के पास सत्ता में वापिस आने का सुनहरा अवसर है ऐसे में वक़्त आ गया है की सबसे लोकप्रिय नेता को प्रधानमन्त्री के उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट करे और पूरी शक्ति के साथ जनता का भरोसा फिर से हासिल करने की कोशिश करे.



वैसे इन विवादों से BJP के शुभचिंतको को बहुत ज्यादा घबराने की जरुरत नहीं है. स्वपन दासगुप्ता ने इन विवादों पर अपने बहुत ही सकारात्मक विचार रखे हैं.

“That everyone in the BJP is not on the same page is a truism. No political party in India, not even the CPI(M), possesses an army where every member of the officer corps thinks alike. This is democratic normalcy, and it is only in India that the media projects the ideal of politics crafted on the North Korean model.”

जाते जाते यही कहूँगा यह तो यही बात हो गयी, सूर्यास्त हो जाए और आप आखें बंद कर ले और बोले की अभी अँधेरा नहीं हुआ है, क्योंकि मैंने आखें बंद कर रखी है इसलिए कुछ नहीं दिख रहा है, अभी सांझ होने में कुछ वक़्त बाकी है.
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