12-08-2012, 03:39 PM | #21 |
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Re: कुरआन और विज्ञान |
परिपक्व ,भ्रूण:Foetus के लिगं का निर्धारण यानि उससे लड़का होगा या लड़की? स्खलित वीर्य शुक्रणुओं से होता है न कि अण्डाणुओं से। अर्थात मां के गर्भाशय में ठहरने वाले गर्भ से लड़का उत्पन्न होगा यह क्रोमोजो़म के 23 वें जोड़े में क्रमशःxx/xy वर्णसूत्रः Chromosome अवस्था पर होता है। प्रारिम्भक तौर पर लिगं का निर्धारण समागम के अवसर पर हो जाता है और वह स्खलित वीर्य शुक्राणुओं:Sperm के काम वर्णसूत्रः Sex Chromosome पर होता है जो अण्डाणुओं की उत्पत्ति करता है। अगर अण्डे को उत्पन्न करने वाले शुक्राणुओं में X वर्णसूत्र हैः तो ठहरने वाले गर्भ से लड़की पैदा होगी। इसके उलट अगर शुक्राणुओं में Y वर्णसूत्र है तो ठहरने वाले गर्भ से लड़का पैदा होगा । ‘‘और यह कि उसी ने नर और मादा का जोड़ा पैदा किया, एक बूंद से जब वह टपकाई जाती है‘‘।(अल-क़ुरआनः सूरः 53 आयात ..45 से 46 ) यहां अरबी शब्द नुत्फ़ा का अर्थ तो द्रव की बहुत कम मात्रा है जबकि ‘तुम्नी‘ का अर्थ तीव्र स्खलन या पौधे का बीजारोपण है। इस लिये नुतफ़ः वीर्य मुख्यता शुक्राणुओं की ओर संकेत कर रहा है क्योंकि यह तीव्रता से स्खलित होता है, पवित्र क़ुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता हैः ‘‘क्या वह एक तुच्छ पानी का जल वीर्य नहीं था जो माता के गर्भाशय में टपकाया जाता है? फिर वह एक थक्का । लोथड़ा बना फिर अल्लाह ने उसका शरीर बनाया और उसके अंगों को ठीक किया, फिर उससे दो प्रकार के (मानव) पुरूष और महिला बनाए ।(अल-कुरआन:सूर:75 आयत .37 से 39 ) ध्यान पूर्वक देखिए कि यहां एक बार फिर यह बताया गया है कि बहुत ही न्यूनतम मात्रा ( बूंदों ) पर आधारित प्रजनन द्रव जिसके लिये अरबी शब्द ‘‘नुत्फतम्मिन्नी‘‘ अवतरित हुआ है जो कि पुरूष की ओर से आता है और माता के गर्भाशय में बच्चें के लिंग निर्धारण का मूल आधार है। उपमहाद्वीप में यह अफ़सोस नाक रिवाज है कि आम तौर पर जो महिलाएं सास बन जाती हैं उन्हें पोतियों से अघिक पोतों का अरमान होता है अगर बहु के यहां बेटों के बजाए बेटियां पैदा हो रहीं हैं तो वह उन्हें ‘‘पुरूष संतान‘‘ पैदा न कर पाने के ताने देती हैं अगर उन्हें केवल यही पता चल जाता है कि संतान के लिंग निर्धारण में महिलाओं के अण्डाणुओं की कोई भूमिका नहीं और उसका तमाम उत्तरदायित्व पुरूष वीर्यः शुक्राणुओं पर निर्भर होता है और इसके बावजूद वह ताने दें तो उन्हें चाहिए कि वह ‘‘पुरूष संतान‘‘ न पैदा होने परः अपनी बहुओं के बजाए बपने बेटों को ताने दें या कोसें और उन्हें बुरा भला कहें। पवित्र क़ुरआन और आधुनिक विज्ञान दोनों ही इस विचार पर सहमत हैं के बच्चे के लिंग निर्धारण में पुरूष शुक्राणुओं की ही ज़िम्मेदारी है तथा महिलाओं का इसमें कोई दोष नहीं। |
12-08-2012, 03:39 PM | #22 |
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Re: कुरआन और विज्ञान |
तीन अंधेरे पर्दों में सुरक्षित ,‘उदर‘
‘‘उसी ने तुम को एक जान से पैदा किया। फिर वही है जिसने उस जान से उसका जोडा बनाया और उसी ने तुम्हारे लिये मवेशियों में से आठ नर और मादा पैदा किये और वह तुम्हारी मांओं के ‘उदरोंरः पेटो‘ ,में तीन तीन अंधेरे परदों के भीतर तुम्हें एक के बाद एक स्वरूप देता चला जाता है। यही अल्लाह (जिसके यह काम हैं )तुम्हारा रब है। बादशाही उसी की है कोई मांबूद (पूजनीय) उसके अतिरिक्त नहीं है‘‘।(अल-क़ुरआन सूर 39 आयत 6) प्रोफ़ेसर डॉ. कैथमूर के अनुसार पवित्र क़ुरआन में अंधेरे के जिन तीन परदों कीचर्चा की गई है वह निम्नलिखित हैं : 1- मां के गर्भाशय की अगली दीवार 2- गर्भाशय की मूल दीवार 3- भ्रूण का खोल या उसके ऊपर लिपटी झिल्ली |
12-08-2012, 03:41 PM | #23 |
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Re: कुरआन और विज्ञान |
भ्रूणीय अवस्थाएं
‘‘हम ने मानव को मिट्टी के, रस: ‘सत से बनाया फिर उसे एक सुरक्षित स्थल पर टपकी हुई बूंद में परिवर्तित किया, फिर उस बूंद को लोथडे़ का स्वरूप दिया, तत्पश्चात लोथड़े को बोटी बना दिया फिर बोटी की हडिडयां बनाई, फिर हड्रि़ड़यों पर मांस चढ़ाया फिर उसे एक दूसरा ही रचना बना कर खडा़ किया बस बड़ा ही बरकत वाला है अल्लाह: सब कारीगरों से अच्छा कारीगर‘‘ ।(अल-क़ुरआन: सूर:23 आयात .12 से 14 ) इन पवित्र आयतों में अल्लाह तआला फ़रमाते हैं कि मानव को द्रव की बहुत ही सूक्ष्म मात्रा से बनाया गया अथवा सृजित किया गया है, जिसे विश्राम:Rest स्थल में रख दिया जाता है यह द्रव उस स्थल पर मज़बूती से चिपटा रहता है। यानि स्थापित अवस्था में, और इसी अवस्था के लिये पवित्र क़ुरआन में ‘क़रार ए मकीन‘ का गद्यांश अवतरित हुआ है। माता के गर्भाशय के पिछले हिस्से को रीढ़ की हडड़ी और कमर के पटठों की बदौलत काफ़ी सुरक्षा प्राप्त होती हैं उस भ्रूण को अनन्य सुरक्षा‘‘ प्रजनन थैली:Amniotic Sac से प्राप्त होती है जिसमें प्रजनन द्रवः Amnioic Fluid भरा होता है अत: सिद्ध हुआ कि माता के गर्भ में एक ऐसा स्थल है जिसे सम्पूर्ण सुरक्षा दी गई है।द्रव की चर्चित न्यूनतम मात्रा ‘अलक़ह‘ के रूप में होती है यानि एक ऐसी वस्तु के स्वरूप में जो ‘‘चिमट जाने‘‘ में सक्षम है। इसका तात्पर्य जोंक जैसी कोई वस्तु भी है। यह दोनों व्याख्याएं विज्ञान के आधार पर स्वीकृति के योग्य हैं क्योंकि बिल्कुल प्रारम्भिक अवस्था में भ्रूण वास्तव में माता के गर्भाशय की भीतरी दीवार से चिमट जाता है जब कि उसका बाहरी स्वरूप भी किसी जोंक के समान होता है। इसकी कार्यप्रणाली जोंक की तरह ही होती है क्योंकि, यह ‘आवल नाल‘‘ के मार्ग से अपनी मां के शरीर से रक्त प्राप्त करता और उससे अपना आहार लेता है। ‘अलक़ह‘ का तीसरा अर्थ रक्त का थक्का है। इस अलक़ह वाले अवस्था से जो गर्भ ठहरने के तीसरे और चौथे सप्ताह पर आधारित होता है बंद धमनियों में रक्त जमने लगता है। अतः भ्रूण का स्वरूप केवल जोंक जैसा ही नहीं रहता बल्कि वह रक्त के थक्के जैसा भी दिखाई देने लगता है। अब हम पवित्र क़ुरआन द्वारा प्रदत्त ज्ञान और सदियों के संधंर्ष के बाद विज्ञान द्वारा प्राप्त आधुनिक जानकारियों की तुलना करेंगे। 1677 ई0 हेम और ल्यूनहॉक ऐसे दो प्रथम वैज्ञानिक थे जिन्होंने खुर्दबीन: Microscope से वीर्य शुक्राणुओं का अध्ययन किया था। उनका विचार था कि शुक्राणुओं की प्रत्येक कोशिका में एक छोटा सा मानव मौजूद होता है जो गर्भाशय में विकसित होता है और एक नवजात शिशु के रूप में पैदा होता है। इस दृष्टिकोण को ,छिद्रण सिद्धान्त:Perforation Theory भी कहा जाता है। कुछ दिनों के बाद जब वैज्ञानिकों ने यह खोज निकाला कि महिलाओं के अण्डाणु, शुक्राणु कोशिकाओं से कहीं अधिक बडे़ होते हैं तो प्रसिद्ध विशेषज्ञ डी ग्राफ़ सहित कई वैज्ञानिकों ने यह समझना शुरू कर दिया कि अण्डे के अंदर ही मानवीय अस्तित्व सूक्ष्म अवस्था में पाया जाता है। इसके कुछ और दिनों बाद, 18 वीं सदी ईसवी में मोपेशस:उंनचमपजपनेण् नामक वैज्ञानिक ने उपरोक्त दोनों विचारों के प्रतिकूल इस दृष्टिकोण का प्रचार शुरू किया कि, कोई बच्चा अपनी माता और पिता दोनों की ‘संयुक्त विरासत:Joint inheritance का प्रतिनिधि होता है । अलक़ह परिवर्तित होता है और ‘‘मज़ग़ता‘‘ के स्वरूप में आता है, जिसका अर्थ है कोई वस्तु जिसे चबाया गया हो यानि जिस पर दांतों के निशान हों और कोई ऐसी वस्तु हो जो चिपचिपी (लसदार) और सूक्ष्म हों, जैसे च्युंगम की तरह मुंह में रखा जा सकता हो। वैज्ञानिक आधार पर यह दोनों व्याख्याएं सटीक हैं। प्रोफ़ेसर कैथमूर ने प्लास्टो सेन: रबर और च्युंगम जैसे द्रव ,का एक टुकड़ा लेकर उसे प्रारम्भिक अवधि वाले भ्रूण का स्वरूप दिया और दांतों से चबाकर ‘मज़गा‘ में परिवर्तित कर दिया। फिर उन्होंने इस प्रायोगिक ‘मज़ग़ा‘ की संरचना की तुलना प्रारम्भिक भू्रण:Foetus के चित्रों से की इस पर मौजूद दांतों के निशान मानवीय ‘मज़ग़ा पर पड़े कायखण्ड:Somites के समान थे जो गर्भ में ‘मेरूदण्ड:Spinal Cord के प्रारिम्भक स्वरूप को दर्शाते हैं। अगले चरण में यह मज़ग़ा परिवर्तित होकर हड़डियों का रूप धारण कर लेता है। उन हड्रडियों के गिर्द नरम और बारीक मांस या पटठों का ग़िलाफ़ (खोल) होता है फ़िर अल्लाह तआला उसे एक बिल्कुल ही अलग जीव का रूप दे देता है। अमरीका में थॉमस जिफ़र्सन विश्वविद्यालय, फ़िलाडॅल्फ़िया के उदर विभाग में अध्यक्ष, दन्त संस्थान के निदेशक और अधिकृत वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर मारशल जौंस से कहा गया कि वह भू्रण विज्ञान के संदर्भ से पवित्र क़ुरआन की आयतों की समीक्षाकरें। पहले तो उन्होंने यह कहा कि कोई असंख्य प्रजनन चरणों की व्याख्या करने वाली क़ुरआनी आयतें किसी भी प्रकार से सहमति का आधार नहीं हो सकतीं और हो सकता है कि पैगम्बर मुहम्मद स.अ.व. के पास बहुत ही शक्तिशाली खुर्दबीन Microscope रहा हो। जब उन्हें यह याद दिलाया गया कि पवित्र क़ुरआन का नज़ूलः अवतरण 1400 वर्ष पहले हुआ था और विश्व की पहली खु़र्दबीन Microscope भी हज़रत मुहम्मद स.अ.व. के सैंकडों वर्ष बाद अविष्कृत हुई थी तो प्रोफ़ेसर जौंस हंसे और यह स्वीकार किया कि पहली अविष्कृत ख़ुर्दबीन भी दस गुणा ज़्यादा बड़ा स्वरूप दिखाने में समक्ष नहीं थी और उसकी सहायता से सूक्ष्म दृश्य को स्पष्ट रूप में नहीं देखा जा सकता था। तत्पश्चात उन्होंने कहा: फ़िलहाल मुझे इस संकल्पना में कोई विवाद दिखाई नहीं देता कि जब पैग़म्बर मोहम्मद स0अ0व0 ने पवित्र क़ुरआन की अयतें पढ़ीं तो उस समय विश्वस्नीय तौर पर कोई आसमानी (इल्हामी )शक्ति भी साथ में काम कर रही थी। ड़ॉ. कैथमूर का कहना है कि प्रजनन विकास के चरणों का जो वर्गीकरण सारी दुनिया में प्रचलित है, आसानी से समझ में आने वाला नहीं है, क्योंकि उसमें प्रत्येक चरण को एक संख्या द्वारा पहचाना जाता है जैसे चरण संख्या,,1, चरण संख्या,,2 आदि। दूसरी ओर पवित्र क़ुरआन ने प्रजनन के चरणों का जो विभाजन किया है उसका आधार पृथक और आसानी से चिन्हित करने योग्य अवस्था या संरचना पर हैं यही वह चरण हैं, जिनसे कोई प्रजनन एक के बाद एक ग़ुजरता है इसके अलावा यह अवस्थाएं (संरचनाएं) जन्म से पूर्व, विकास के विभिन्न चरणों का नेतृत्व करतीं हैं और ऐसी वैज्ञानिक व्याख्याए उप्लब्ध करातीं हैं जो बहुत ही ऊंचे स्तर की तथा समझने योग्य होने के साथ साथ व्यवहारिक महत्व भी रखतीं हैं। मातृ गर्भाशय में मानवीय प्रजनन विकास के विभिन्न चरणों की चर्चा निम्नलिखित पवित्र आयतों में भी समझी जा सकती हैं: ‘‘क्या वह एक तुच्छ पानी का वीर्य न था जो (मातृ गर्भाशय में ) टपकाया जाता है ? फ़िर वह एक थक्का बना फिर अल्लाह ने उसका शरीर बनाया और उसके अंग ठीक किये फिर उससे मर्द और औरत की दो क़िसमें बनाई । अल-कुरआनः सूरे:75, आयत 37 से 39 ‘‘जिसने तुझे पैदा किया, तुझे आकार प्रकार (नक-सक) से ठीक किया , तुझे उचित अनुपात में बनाया और जिस स्वरूप में चाहा तुझे जोड़ कर तैयार किया।‘‘(अल-क़ुरआन: सूरः 82 आयात 7 से 8 ) |
12-08-2012, 03:42 PM | #24 |
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Re: कुरआन और विज्ञान |
अर्द्ध निर्मित एंव अर्द्ध अनिर्मित गर्भस्थ भ्रूण
अगर ‘मज़ग़ा‘ की अवस्था पर गर्भस्थ भ्रूण बीच से काटा जाए और उसके अंदरूनी भागों का अध्ययन किया जाए तो हमें स्पष्ट रूप से नज़र आएगा कि (मज़ग़ा के भीतरी अंगों में से ) अधिकतर पूरी तरह बन चुके हैं जब कि शेष अंग अपने निर्माण के चरणों से गुज़र रहे हैं। प्रोफ़ेसर जौंस का कहना है कि अगर हम पूरे गर्भस्थ भ्रूण को एक सम्पूर्ण अस्तित्व के रूप में बयान करें तो हम केवल उसी हिस्से की बात कर रहे होंगे जिसका निर्माण पूरा हो चुका है और अगर हम उसे अर्द्ध निर्मित अस्तित्व कहें तो फिर हम गर्भस्थ भ्रूण के उन भागों का उदाहरण दे रहे होंगे जो अभी पूरी तरह से निर्मित नहीं हुए बल्कि निर्माण की प्रक्रिया पूरी कर रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि उस अवसर पर गर्भस्थ भ्रूण को क्या सम्बोधित करना चाहिये? सम्पूर्ण अस्तित्व या अर्द्ध निर्मित अस्तित्व गर्भस्थ, भु्रण के विकास की इस प्रक्रिया के बारे में जो व्याख्या हमें पवित्र क़ुरआन ने दी है उससे बेहतर कोई अन्य व्याख्या सम्भव नहीं है पवित्र क़ुरआन इस चरण को ‘अर्द्ध‘ निर्मित अर्द्ध अनिर्मित‘ की संज्ञा देता है। निम्न्लिखित आयतों का आशय देखिए: ‘‘लोगों! अगर तुम्हें जीवन के बाद मृत्यु के बारे में कुछ शक है तो तुम्हें मालूम हो कि हम ने तुमको मिट्ठी से पैदा किया है, फिर वीर्य से, फिर रक्त के थक्के से, फिर मांस की बोटी से जो स्वरूप वाली भी होती है और बेरूप भी, यह हम इसलिये बता रहे हैं ताकि तुम पर यर्थाथ स्पष्ट करें। हम जिस (वीर्य) को चाहते हैं एक विशेष अवधि तक गर्भाशय में ठहराए रखते हैं। फिर तुम को एक बच्चे के स्वरूप में निकाल लाते हैं (फिर तुम्हारी परवरिश करते हैं ) ताकि तुम अपनी जवानी को पहुंचो‘‘ ।(अल-क़ुरआन: सूर 22 आयत .5 ) वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हम जानते हैं कि गर्भस्थ भ्रूण विकास के इस प्रारम्भिक चरण में कुछ वीर्य ऐसे होते हैं जो एक पृथक स्वरूप धारण कर चुके हैं, जबकि कुछ स्खलित वीर्य, विशेष तुलनात्मक स्वरूप में आए नहीं होते । यानि कुछ अंग बन चुके होते हैं और कुछ अभी अनिर्मित अवस्था में होते हैं। |
12-08-2012, 03:42 PM | #25 |
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Re: कुरआन और विज्ञान |
सुनने और देखने की इंद्रिया
मां के गर्भाशय में विकसित हो रहे मानवीय अस्तित्व में सब से पहले जो इंद्रिय जन्म लेती है वह श्रवण इंद्रियां होती है। 24 सप्ताह के बाद परिपक्व भ्रूण Mature Foetus आवाजें सुनने के योग्य हो जाता है। फिर गर्भ के 28 वें सप्ताह तक दृष्टि इंद्रियां भी अस्तित्व में आ जाती हैं और दृष्टिपटलः Retina रौशनी के लिये अनुभूत हो जाता है। इस प्रक्रिया के बारे में पवित्र क़ुरआन यूं फ़रमाता है: ‘‘फिर उसको नक - सक से ठीक किया और उसके अंदर अपने प्राण डाल दिये और तुम को कान दिये, आंखें दी और दिल दिये, तुम लोग कम ही शुक्रगुज़ार होते हो।‘‘(अल-क़ुरआन: सूर: 32 आयत 9) ‘‘हम ने मानव को एक मिश्रित वीर्य से पैदा किया ताकि उसकी परीक्षा लें और इस उद्देश्य के लिये हम ने उसे सुनने और देखने वाला बनाया‘‘।(अल-क़ुरआन: सूर 76 आयत .2) ‘‘वह अल्लाह ही तो है जिसने तुम्हें देखने और सुनने की शक्तियां दीं और सोचने को दिल दिये मगर तुम लोग कम ही शुक्रगुज़ार होते हो।‘‘(अल-क़ुरआन:सूरः23 आयत 78 ) ध्यान दीजिये कि तमाम पवित्र आयतों में श्रवण-इंद्रिय की चर्चा दृष्टि-इंद्रिय से पहले आयी हुई है इससे सिद्व हुआ कि पवित्र क़ुरआन द्वारा प्रदत्त व्याख्याएं, आधुनिक प्रजनन विज्ञान में होने वाले शोध और खोजों से पूरी तरह मेल खाते हैं या समान है। |
12-08-2012, 03:43 PM | #26 |
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Re: कुरआन और विज्ञान |
सार्वजनिक विज्ञान
General Science उंगल-चिन्ह के निशानः ; (Finger Prints) ‘‘क्या मानव यह समझ रहा है कि हम उसकी हड़डियों को एकत्रित न कर सकेंगे ? क्यों नहीं ? हम तो उसकी उंगलियों के पोर รต पोर तक ठीक बना देने का प्रभुत्व रखते हैं।‘‘(अल-क़ुरआन: सूर:75 आयत. 3 से 4) काफ़िर या गै़र मुस्लिम आपत्ति करते हैं कि जब कोई व्यक्ति मृत्यु के बाद मिटटी में मिल जाता है और उसकी हड़डियां तक ख़ाक में मिल जाती हैं तो यह कैसे सम्भव है कि ‘‘क़यामत के दिन उसके शरीर का एक - एक अंश पूनः एकत्रित हो कर पहले वाली जीवित अवस्था में वापिस आजाए ? और अगर ऐसा हो भी गया तो क़यामत के दिन उस व्याक्ति की ठीक-ठीक पहचान किस प्रकार होगी ? अल्लाह तआला ने उपर्युक्त पवित्र आयत में इस आपत्ति का बहुत ही स्पष्ट उत्तर देते हुए कहा है कि वह (अल्लाह) सिर्फ इसी पर प्रभुत्व (कुदरत)नहीं रखता की चूर -चूर हड़डियों को वापिस एकत्रित कर दे बल्कि इस पर भी प्रभुत्व रखता है कि हमारी उंगलियों की पोरों तक को दुबारा से पहले वाली अवस्था में ठीक - ठीक परिवर्तित कर दे। सवाल यह है कि जब पवित्र क़ुरआन मानवीय मौलिकता के पहचान की बात कर रहा है तो ‘उंगलियों के पोरों, की विशेष चर्चा क्यों कर रहा है? सर फ्रांस गॉल्ट की तहक़ीक़ के बाद 1880 ई0 में उंगल - चिन्ह Finger Prints को पहचान के वैज्ञानिक विधि का दर्जा प्राप्त हुआ आज हम यह जानते हैं कि इस संसार में किसी दो व्यक्ति के उंगल - चिन्ह का नमूना समान नहीं हो सकता। यहां तक कि हमशक्ल जुड़ुवां भाई बहनों का भी नहीं, यही कारण है कि आज तमाम विश्व में अपराधियों की पहचान के लिये उनके उंगल चिन्ह का ही उपयोग किया जाता है। क्या कोई बता सकता है कि आज से 1400 वर्ष पहले किसको उंगल चिन्हों की विशेषता और उसकी मौलिकता के बारे में मालूम था? यक़ीनन ऐसा ज्ञान रखने वाली ज़ात अल्लाह तआला के सिवा किसी और की नहीं हो सकती। |
12-08-2012, 03:44 PM | #27 |
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Re: कुरआन और विज्ञान |
त्वचा में दर्द के अभिग्राहकः Receptors
पहले यह समझा जाता था कि अनुभूतियां और दर्द केवल दिमाग़ पर निर्भर होती है। अलबत्ता हाल के शोध से यह जानकारी मिली है कि त्वचा में दर्द को अनुभूत करने वाले ‘‘अभिग्राहक: Receptors होते हैं। अगर ऐसी कोशिकाएं न हों तो मनुष्य दर्द की अनुभूति (महसूस) करने योग्य नहीं रहता । जब कोई ड़ॉ. किसी रोगी में जलने के कारण पड़ने वाले घावों को इलाज के लिये, परखता है तो वह जलने का तापमान मालूम करने के लिये: जले हुए स्थल पर सूई चुभोकर देखता है अगर सुई चुभने से प्रभावित व्यक्ति को दर्द महसूस होता है, तो चिकित्सक या डॉक्टर को इस पर प्रसन्नता होती है। इसका अर्थ यह होता है कि जलने का घाव केवल त्वचा के बाहरी हद तक है और दर्द महसूस करने वाली केशिकाएं जीवित और सुरक्षित हैं। इसके प्रतिकूल अगर प्रभावित व्यक्ति को सुई चुभने पर दर्द अनुभूत नहीं हो तो यह चिंताजनक स्थिति होती है क्योंकि इसका अर्थ यह है कि जलने के कारण बनने वाले घाव: ज़ख़्म की गहराई अधिक है और दर्द महसूस करने वाली कोशिकाएं भी मर चुकी हैं। ‘‘जिन लोगों ने हमारी आयतों को मानने से इन्कार कर दिया उन्हें निस्संदेह, हम आग में झोंकेंगे और जब उनके शरीर की‘ त्वचा: खाल गल जाएगी तो, उसकी जगह दूसरी त्वचा पैदा कर देंगे ताकि वह खू़ब यातना: अज़ाब का स्वाद चखें अल्लाह बड़ी ‘कु़दरत: प्रभुता‘‘ रखता है और अपने फै़सलों को व्यवहार में लाने का ‘विज्ञान: हिक्मत‘ भली भांति जानता है।(अल-क़ुरआन:सूर: 4 आयत .56 ) थाईलैण्ड में – चियांग माई युनीवर्सिटी के उदर विभागः Department of Anatomy के संचालक प्रोफ़ेसर तीगातात तेजासान ने दर्द कोशिकाओं के संदर्भ में शोध पर बहुत समय खर्च किया पहले तो उन्हे विश्वास ही नहीं हुआ कि पवित्र कु़रआन ने 1400 वर्ष पहले इस वैज्ञानिक यथार्थ का रहस्य उदघाटित कर दिया था। फिर इसके बाद जब उन्होंने उपरोक्त पवित्र आयतों के अनुवाद की बाज़ाब्ता पुष्टि करली तो वह पवित्र क़ुरआन की वैज्ञानिक सम्पूर्णता से बहुत ज़्यादा प्रभावित हुए। तभी यहां सऊदी अरब के रियाज़ नगर में एक सम्मेलन आयोजित हुआ जिसका विषय था ‘‘पविन्न क़ुरआन और सुन्नत में वैज्ञानिक निशानियां‘‘ प्रोफ़ेसर तेजासान भी उस सम्मेलन में पहुंचे और सऊदी अरब के शहर रियाज़ में आयोजित ‘‘आठवें सऊदी चिकित्सा सम्मेलन‘‘ के अवसर पर उन्होंने भारी सभा में गर्व और समर्पण के साथ सबसे पहले कहा: ‘‘ अल्लाह के सिवा कोई माबूद पूजनीय नहीं, और (मुहम्मद स.अ.व.)उसके रसूल हैं।‘‘ |
12-08-2012, 03:45 PM | #28 |
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Re: कुरआन और विज्ञान |
अंतिमाक्षर
Final Verdict पवित्र क़ुरआन में वैज्ञानिक यथार्थ की उपस्थिति को संयोग क़रार देना दर अस्ल एक ही समय में वास्तविक बौद्धिकता और सही वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बिल्कुल विरूद्व है। वास्ताव में क़ुरआन की पवित्र आयतों में शाश्वत वैज्ञानिकता, पवित्र क़ुरआन की स्पष्ट घोषणाओं की ओर संकेत करती है: ‘‘शीध्र ही हम उनको अपनी निशानियां सृष्टि में भी दिखाएंगे और उनके अपने ‘‘नफ़्स: मनस्थिति‘ में भी यहां तक कि उन पर यह बात खुल जाएगी कि यह पवित्र क़ुरआन बरहक़: शाश्वत-सत्य है। क्या यह पर्याप्त नहीं कि तेरा रब प्रत्येक वस्तु का गवाह है। (अल-क़ुरआन:सूर: 41 आयत .53 ) पवित्र क़ुरआन तमाम मानवजाति को निमंत्रण देता है कि वे सब कायनात: सृष्टि‘‘ की संरचना और उत्पत्ति पर चिंतन मनन करें: ‘‘ ज़मीन और आसमानों के जन्म में और रात और दिन की बारी बारी से आने में उन होशमंदों के लिये बहुत निशानियां हैं।‘‘(अल-क़ुरआन: सूर 3 आयत 190 ) पवित्र क़ुरआन में उपस्थित वैज्ञानिक साक्ष्य और अवस्थाएं सिद्ध करते हैं कि यह वाकई ‘‘इल्हामी‘‘ माध्यम से अवतरित हुआ है। आज से 1400 वर्ष पहले कोई व्यक्ति ऐसा नहीं था जो इस तरह महत्वपूर्ण और सटीक वैज्ञानिक यथार्थो पर अधारित कोई किताब लिख सकता। यद्यपि पवित्र क़ुरआन कोई वैज्ञानिक ग्रंथ नहीं है बल्कि यह ‘निशानियों - Signs की पुस्तक है। यह निशानियां सम्पूर्ण मानव समुह को निमन्त्रणः दावत देती हैं कि वह पृथ्वी पर अपने अस्तित्व के प्रयोजन और उद्देश्य की अनुभूति करें और प्रकृति से समानता अपनाए हुए रहें। इसमें कोई संदेह नहीं कि पवित्र क़ुरआन अल्लाह ताला द्वारा अवतरित ‘वाणीः कलाम है रब्बुल आलमीनः सृष्टि के ईश्वर की वाणी है, जो सृष्टि का सृजन करने वाला रचनाकार और मालिक भी है और इसका संचालन भी कर रहा है। इसमें अल्लाह तआ़ला की एकात्मता वहदानियत के होने का वही संदेश है जिसका, प्रचारः तबलीग़ हज़रत आदम अलैहिस्सलाम, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और हुजू़र नबी ए करीम हज़रत मुहम्मद स.अ.व. तक तमाम पैग़म्बरों ने किया है। पवित्र क़ुरआन और आधुनिक विज्ञान के विषय पर अब तक बहुत कुछ विस्तार से लिखा जा चुका है और इस क्षेत्र में प्रत्येक क्षण निरंतर शोध जारी है। इन्शाअल्लाह यह शोध भी मानवीय समूह को अल्लाह तआला की वाणी के निकट लाने में सहायक सिद्ध होगा इस संक्षिप्त सी किताब में पवित्र क़ुरआन द्वारा प्रस्तुत केवल कुछेक वैज्ञानिक यथार्थ संग्रहित किये गये है मै यह दावा नहीं कर सकता कि मैंने इस विषय के साथ पूरा पूरा इंसाफ़ किया है। जापानी प्रोफ़ेसर तेजासान ने पवित्र कुरआन में बताई हुई केवल एक वैज्ञानिक निशानी के अटल यथार्थ होने के कारण,, इस्लाम मज़हब धारण किया बहुत सम्भव है कि कुछ लोगों को दस और कुछेक को 100 वैज्ञानिक निशानियों की आवश्यकता हो ताकि वे सब यह मान लें कि पवित्र क़ुरआन अल्लाह द्वारा अवतरित है। कुछ लोग शायद ऐसे भी हों जो हज़ार निशानियां देख लेने और उसकी पुष्टि के बावजूद सच्चाई। सत्य को स्वीकार न करना चाहते हों।पवित्र कुरआन ने निम्नलिखित आयतों में, ऐसे अनुदार दृष्टिकोण वालों की ‘भर्त्सनाः मुज़म्मत की है। ‘‘बहरे हैं, गूंगे हैं ,अंधे हैं यह अब नहीं पलटेंगे‘‘‘(अल-क़ुरआन: सूर 2 आयत 18 ) पवित्र क़ुरआन वैयक्तिक जीवन और सामूहिक समाज ,तमाम लोगों के लिये ही सम्पूर्ण जीवन आचारण है। अलहम्दुलिल्लाह पवित्र क़ुरआन हमें ज़िन्दगी गुज़ारने का जो तरीका़ बताता है वे इस सारे, वादों Isms से बहुत ऊपर है, जिसे आधुनिक मानव ने केवल अपनी नासमझी और अज्ञानता के आधार पर अविष्कृत: ईजाद किये हैं। क्या यह सम्भव है कि स्वंय सृजक और रचनाकार मालिक से ज़्यादा बेहतर नेतृत्व कोई और दे सके? मेरी ‘प्रार्थना दुआ‘ है कि अल्लाह तआ़ला मेरी इस मामूली सी कोशिश को स्वीकार करे हम पर ‘दया‘ रहम‘ करे और हमें सन्मार्गः सही रास्ता दिखाए |
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