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Old 26-09-2012, 12:48 PM   #1
Dark Saint Alaick
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Default 9वां विश्व हिंदी सम्मेलन

मित्रो, दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग में हाल ही 9वां विश्व हिंदी सम्मलेन संपन्न हुआ, जिसमें संसारभर के हिन्दी-प्रेमियों, भाषा विदों, रचनाकारों और अन्य विद्वानों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया ! मैं इस सूत्र में वहां हुए विचार-विमर्श एवं अन्य गतिविधियों की एक संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूं ! उम्मीद है, इससे सुधी पाठकों की जानकारी में वृद्धि तो होगी ही, हिन्दी जगत की नई हलचलें भी उनके सम्मुख उजागर होंगी !
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Old 26-09-2012, 12:50 PM   #2
Dark Saint Alaick
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Default Re: 9वां विश्व हिंदी सम्मेलन

आज भी झलकती है भारतीय संस्कृति की झलक
दक्षिण अफ्रीका में महिलाएं रखती हैं करवाचौथ का व्रत

दक्षिण अफ्रीका में 1860 में अपने कदम रखने के करीब 150 साल बाद भी यहां बसे भारतीय अपनी सभ्यता और संस्कृति को नहीं भूले हैं। दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग शहर में महिलाओं को भारतीयता की पहचान का प्रतीक पोशाक, साड़ी पहने देखा जा सकता है। इतना ही नहीं पति की दीर्घायु की कामना के लिए उत्तर भारत का लोकप्रिय पर्व करवाचौथ भी पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय की महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। इसी नगर में इन दिनों अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन हो रहा है। भारतीयों ने पहली बार 1860 में दक्षिण अफ्रीका की सरजमीं पर पैर रखा था और वे इस देश के क्वाजुलू नटाल प्रांत में गन्ने के खेतों में बतौर मजदूर काम करने के लिए ‘तिरोरो’ नामक जहाज पर सवार होकर यहां आए थे। दक्षिण अफ्रीका में मोहनदास कर्मचंद गांधी के संघर्ष के दिनों से लेकर उनके महात्मा बनने तक की गाथा को ‘पहला गिरमिटिया’ के जरिए पेश करने वाले और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित गिरिराज किशोर ने इस देश में भारतीयों की जीवनशैली के बारे में दिलचस्प जानकारी दी। उन्होंने बताया कि दक्षिण अफ्रीका में भारतीय महिलाएं आज भी करवाचौथ का व्रत रखती हैं तथा साड़ी पहनकर और पूरा साज शृंगार कर परंपरागत तरीके से पूजा करती हैं। उन्होंने बताया कि दक्षिण अफ्रीका में जा बसे भारतीय मूल के लोग हिंदी भाषा को भूलभाल गए हैं लेकिन गुजराती समुदाय के लोग गुजराती जरूर बोलते हैं। गिरिराज ने बताया कि हिंदुस्तानी समुदाय अपनी हिंदी भाषा को भले ही भूल गया हो लेकिन खानपान में आज भी भारतीयता की खुशबू बरकरार है। वर्ष 2010 में 12 लाख से अधिक भारतीय मूल के दक्षिण अफ्रीकी लोगों ने देश में अपने समुदाय की बसावहट की 150वीं वर्षगांठ मनाई थी। दक्षिण अफ्रीका और विशेषकर इसके जोहान्सबर्ग के फोर्ड्सबर्ग की सड़कों और बाजारों में साड़ी पहने महिलाएं खुद ही अपनी भारतीयता की पहचान कराती हैं। भारतीय भोजन देशभर में लोकप्रिय हैं और भारतीय रेस्त्रां यहां काफी लोकप्रिय हैं जहां सप्ताहांत में लोगों की अच्छी खासी भीड़ जुटती है। यह भी दिलचस्प बात है कि हिंदुस्तान के बाहर दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के लोगों की सर्वाधिक आबादी है और इस समुदाय के लोगों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत, भाषा और धार्मिक मान्यताओं को पूरी तरह सहेज कर रखा है फिर चाहे वे भारत से आए ईसाई हों या हिन्दू या मुस्लिम। दक्षिण अफ्रीका में बसे भारतीय समुदाय के लोग मुख्य रूप से अंग्रेजी बोलते हैं लेकिन तेलुगू, तमिल और गुजराती भाषा को अपनी दूसरी भाषा के रूप में संजोया हुआ है और अधिकतर घरों में यही भाषा बोली जाती है। उत्तर भारत से ताल्लुक रखने वाले कुछ परिवार हिंदी भी बोलते हैं।
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Last edited by Dark Saint Alaick; 26-09-2012 at 12:55 PM.
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Old 26-09-2012, 12:54 PM   #3
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Default Re: 9वां विश्व हिंदी सम्मेलन

गांधी और मंडेला को समर्पित है इस बार का विश्व हिन्दी सम्मेलन

महात्मा गांधी एक बैरिस्टर बनकर दक्षिण अफ्रीका आये थे और यहां से महात्मा बनकर भारत गये । दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ने भी गांधी के अहिंसा एवं सत्याग्रह को व्यावहारिक रूप देकर यहां से रंगभेद समाप्त किया । ये उद्गार दक्षिण अफ्रीका के वित्त मंत्री प्रवीन गोरधन और भारतीय विदेश मंत्रालय में सचिव (पश्चिम) एम. गणपति ने नौवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के उद्घाटन के दौरान व्यक्त किये । दोनों ने इस बात का जिक्र किया कि गांधी एक बैरिस्टर बनकर दक्षिण अफ्रीका आये थे और दक्षिण अफ्रीका ने उन्हें एक महात्मा बनाकर भारत भेजा । उन्होंने कहा कि गांधी ने दक्षिण अफ्रीका आने के बाद यहां के भेदभाव के मुददे पर सबसे पहले संघर्ष किया और उस संघर्ष में अहिंसा और सत्याग्रह के बीज दक्षिण अफ्रीका में डाले गये । यहां के भेदभाव के खिलाफ गांधी ने जो संघर्ष किया वो बाद में पूरी दुनिया में फैल गया । गोरधन ने कहा, ‘दक्षिण अफ्रीका गांधी जी के महान योगदान के लिए हमेशा दिल से आभारी रहेगा ।’ गणपति ने कहा, ‘गांधी जी ने जो शुरूआत की थी, बाद में मंडेला ने उसे व्यावहारिक रूप देकर यहां से रंगभेद समाप्त किया ।’ इस बार का हिन्दी सम्मेलन महात्मा गांधी और मंडेला को समर्पित है । सम्मेलन स्थल ‘नेल्सन मंडेला चौराहे’ के पास आयोजित किया गया है । जिस सैंडटन सम्मेलन केन्द्र में कार्यक्रम हो रहा है, उसे ‘गांधी ग्राम’ नाम दिया गया है । सम्मेलन जिस सभागार में हो रहा है, उसे ‘नेल्सन मंडेला’ सभागार नाम दिया गया है । ‘ शांति, सत्य, अहिंसा, नीति और न्याय’ नामक अलग-अलग पांच सभागार बनाये गये हैं, जहां प्रदर्शनी और सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। महात्मा गांधी 1893 में अपने एक मुवक्किल की मदद करने के लिए दक्षिण अफ्रीका आये थे और 21 वर्ष तक यहां आते जाते रहे । 1906 के बाद वे राजनीति में सक्रिय हुए । 1904 में जोहानिसबर्ग में प्लेग फैला । महात्मा गांधी ने के एक डाक्टर की मदद से आपातकाल अस्पताल स्थापित किया । दक्षिण अफ्रीकी कहते हैं कि यह बैरिस्टर मोहनदास करमचंद के महात्मा गांधी बनने की दिशा में एक बडा कदम था । गांधी जी को इतिहास पुरूष बनाने में दक्षिण अफ्रीका में उनके साथ कई घटनाएं घटीं । पहली यह कि प्रिटोरिया जाते समय ट्रेन के डिब्बे से उन्हें बाहर फेंक दिया गया । उसके बाद बडी मुश्किल से एक होटल में जगह पाने के बाद भी उन्हें होटल के मुख्य भोजन कक्ष में भोजन करने से रोक दिया गया । इसके अलावा उस समय के राष्ट्रपति के घर के पास फुटपाथ पर चलने से भी उन्हें रोका गया ।
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Last edited by Dark Saint Alaick; 26-09-2012 at 12:56 PM.
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Old 26-09-2012, 03:29 PM   #4
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Default Re: 9वां विश्व हिंदी सम्मेलन

हिन्दी या अन्य मातृभाषा बोलने वाले तुच्छ समझे जाते हैं : इला गांधी

महात्मा गांधी की पोती और शांति कार्यकर्ता इला गांधी ने कहा कि उपनिवेशवादी शासकों द्वारा अंग्रेजी भाषा दुनिया भर पर जबर्दस्ती थोपने के कारण हिन्दी या अन्य मातृभाषा बोलने वाले लोग तुच्छ समझे जाने लगे हैं। नौंवे विश्व हिन्दी सम्मेलन के उद्घाटन के मौके पर यहां इला ने कहा, ‘गांधी जी ने खुद इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रों से कहा था कि वे हिन्दी सीखें । उस समय उनकी हूटिंग (मखौल उडाना) की गयी थी।’ इला के अनुसार बापू हमेशा कहते थे कि मातृभाषा बहुत महत्वपूर्ण होती है । ये दूसरों को सूचना देती है और भावना व्यक्त करती है । दर्शन संस्कृति के बारे में व्यक्ति और समाज की एक अभिव्यक्ति होती है । ‘अनुवाद में उसकी सुंदरता खो जाती है इसलिए कोई और भाषा बोलने की बजाय अपनी भाषा बोलना जरूरी है, लेकिन अपनी भाषा को दूसरों पर थोपना नहीं चाहिए ।’ उन्होंने कहा कि उपनिवेशवाद के कारण भाषा श्रेष्ठीजनों में फंस गयी है यानी कुछ खास भाषा को बोलने वाले श्रेष्ठ माने जाते हैं जबकि हिन्दी या अन्य मातृभाषा बोलने वाले तुच्छ समझे जाते हैं । ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उस समय के सबसे बडे साम्राज्यवादी देश ब्रिटेन ने अपनी अंग्रेजी भाषा दुनिया भर के देशों पर जबर्दस्ती थोपी । इला ने कहा कि सभी भाषाएं और संस्कृतियां फले फूलें, ये प्रयास होना चाहिए । जो अंग्रेजी ने किया, वह हिन्दी या किसी अन्य भाषा को नहीं करना चाहिए । किसी भाषा का प्रचार प्रसार करने के लिए इस बात का ध्यान रखा जाए कि उससे शांति और सौहार्द्र पर आंच नहीं आये । उन्होंने कहा, ‘आज मैं आपके सामने अंग्रेजी बोल रही हूं क्योंकि मैं हिन्दी में नहीं बोल सकती और इसके लिए आप चाहें तो मुझे हूट कर सकते हैं, जैसा बापू को किया गया था ।’ इला ने महात्मा गांधी का नारा दोहराते हुए कहा, ‘सभी संस्कृति फले फूलें । पर मैं किसी अन्य संस्कृति से अपने पैरों की जमीन न रौंदूं, इसका मैं ध्यान रखूंगा । अत: लोग अपने पैरों की जमीन खोकर दूसरों की श्रेष्ठता स्वीकार न करें ।’ उन्होंने कहा कि यह बहुत विध्वंसक सोच है कि कोई एक व्यक्ति अपने को या अपनी भाषा को दूसरे से श्रेष्ठ बताये, जैसा इंग्लैंड ने किया था ।
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Old 26-09-2012, 03:31 PM   #5
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Default Re: 9वां विश्व हिंदी सम्मेलन

हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के संकल्प
के साथ शरू हुआ नौवां विश्व हिन्दी सम्मेलन


संयुक्त राष्ट्र की छह आधिकारिक भाषाओं के अलावा हिन्दी को भी सातवीं भाषा के रूप में शामिल करने की दावेदारी मजबूती से पेश करने के संकल्प के साथ यहां नौंवा विश्व हिन्दी सम्मेलन शुरू हुआ । विदेश राज्य मंत्री परनीत कौर और दक्षिण अफ्रीका के वित्त मंत्री प्रवीन गोरधन ने किया । कौर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनने का हिन्दी का दावा बनता ही है । उन्होंने कहा, लेकिन इसके लिए भी काफी लंबी चौडी प्रक्रिया होती है । कौर ने कहा कि सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा के सदस्यों में आम सहमति बनानी पडेगी । सबके वोट चाहिए होते हैं । बाद में संवाददाताओं के सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि ये प्रयास जारी है और सरकार लगातार अपनी कोशिश कर रही है । यह कहे जाने पर कि 1975 से अब तक कई ऐसे प्रस्ताव आये लेकिन हिन्दी संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा नहीं बन सकी, कौर ने कहा कि आर्थिक पहलू सच्चाई है । इससे इंकार नहीं कर सकते । काफी बडा खर्च आएगा लेकिन ये मुख्य वजह नहीं है । मुख्य वजह यह है कि महासभा में आम राय बनाना जरूरी है । उन्होंने बताया कि मारिशस में विश्व हिन्दी सचिवालय स्थापित होने और वहां पूरी तरह काम शुरू होने के बाद इस दिशा में और जोर शोर से काम किया जाएगा । यह पूछे जाने पर कि इतना बडा खर्च है, तो हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने की उपयोगिता क्या है, विदेश राज्य मंत्री ने कहा कि यह एक सम्मान और गरिमा की बात है । हिन्दी को इतनी बडी संख्या में लोग बोलते समझते हैं । भारत आर्थिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक और प्रौद्योगिकीय महाशक्ति बन रहा है । भारत की आबादी की बडी संख्या में 80 करोड लोग हिन्दी बोलते समझते हैं । उद्घाटन समारोह में मारिशस के कला एवं संस्कृति मंत्री मुक्तेश्वर चुन्नी, नौंवे हिन्दी सम्मेलन की स्थायी समिति में शामिल सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी, महात्मा गांधी की पोती इला गांधी, दक्षिण अफ्रीका में भारतीय उच्चायुक्त वीरेन्द्र गुप्ता, विदेश मंत्रालय में सचिव (पश्चिम) एम गणपति, दिल्ली सरकार में मंत्री किरण वालिया, राजभाषा सचिव शरद गुप्ता, सांसद मणि शंकर अय्यर, राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह, कई नेता, साहित्यकार, कला और संस्कृति क्षेत्र की हस्तियां एवं दिग्गज विद्वान शामिल हुए । वीरेन्द्र गुप्ता ने कहा कि दो बडी चुनौतियां हैं । पहली यह कि हिन्दी को सम्मान दिलाने के लिए गुलामी की मानसिकता से कैसे छुटकारा पाया जाए और दूसरी यह कि इसे कैसे सूचना प्रौद्योगिकी से जोडा जाए । सत्यव्रत चतुर्वेदी ने कहा कि चीन की मंदारिन भाषा के बाद हिन्दी विश्व में सबसे अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है । यह धारणा गलत साबित हुई कि अंगे्रजी के बिना विकास और विज्ञान आगे नहीं बढ सकता । उन्होंने कहा कि विश्व में केवल पांच देशों में अंग्रेजी में कामकाज होता है । बाकी देशों में लोग अपनी मातृभाषा में काम करते हैं । फ्रांस, जर्मनी, जापान, चीन और इटली इन सबने अपनी भाषाओं में काम करके बडे बडे आविष्कार किये और विकास किया । चतुर्वेदी ने कहा कि अंग्रेजी जरूरी नहीं है । अपनी भाषा में भी विकास और विज्ञान आगे बढ सकता है । हम हिन्दी को विश्व भाषा बनाने का सपना देख रहे हैं लेकिन भारत के अंदर ही हिन्दी को चुनौती दी जा रही है । अत: ऐसा सपना देखने से पहले जरूरी है कि हम अपने देश में हिन्दी को सम्मान दिलायें और फिर इसे विश्व भाषा बनाने की सोचें ।
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Old 26-09-2012, 03:33 PM   #6
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Default Re: 9वां विश्व हिंदी सम्मेलन

दुनिया में उभरते भारत और हिन्दी की भूमिका होगी बहुत बडी : दक्षिण अफ्रीका

दक्षिण अफ्रीका ने कहा कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि दुनिया में उभरते भारत और हिन्दी की बहुत बडी भूमिका होने वाली है । दक्षिण अफ्रीका के वित्त मंत्री प्रवीन गोरधन ने विदेश राज्य मंत्री परनीत कौर के साथ नौवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा, ‘इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि दुनिया में उभरते भारत और हिन्दी की भूमिका बहुत बडी होने वाली है । अमेरिका के वित्तीय संकट ने उसकी सारी पोल खेलकर रख दी है और पुरानी बातों और मान्यताओं को चुनौती मिलने लगी है ।’ उन्होंने कहा कि अब दुनिया में किसी एक देश का प्रभुत्व नहीं रहने वाला है । ये बहुधु्रवीय, बहु संस्कृति और कई देशों की भूमिका वाला विश्व होगा । गोरधन ने कहा, ‘ये इत्तफाक की बात है कि आज से 150 साल पहले 1860 में भारत से दास के रूप में पहली बार मजदूरों को दक्षिण अफ्रीका लाया गया था । उसी की वर्षगांठ पर ये सम्मेलन आयोजित हो रहा है ।’ उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति जैकब जूमा डूमा ने दक्षिण अफ्रीका की हिन्दू महासभा की बैठक में कहा था कि आज की पीढी के हिन्दुओं को अंग्रेजी की बजाय हिन्दी में बातचीत करनी चाहिए, ताकि वे अपनी जडों और संस्कृति से जुडे रहें । गोरधन के मुताबिक जूमा ने अफ्रीका के जुलू सहित सभी समुदायों से कहा था कि वे अपनी भाषाओं का इस्तेमाल करें, अंग्रेजी का नहीं । इस मौके पर मारिशस के कला एवं संस्कृति मंत्री मुक्तेश्वर चुन्नी ने कहा कि उनके यहां अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सचिवालय के मुख्यालय का काम तेजी से हो रहा है और ये उनके लिए बहुत सम्मान की बात है । विश्व में 70 फीसदी लोग हिन्दी बोलते हैं ।
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Old 26-09-2012, 03:37 PM   #7
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Default Re: 9वां विश्व हिंदी सम्मेलन

पंडित नरदेव नरोत्तम वेदालंकार की प्रतिमा का अनावरण



प्रख्यात विद्वान और दक्षिण अफ्रीका में हिंदी की अलख जगाने वाले हिंदी के कीर्ति स्तंभ पंडित नरदेव नरोत्तम वेदालंकार की प्रतिमा का यहां ‘गांधीग्राम’ के नेल्सन मंडेला सभागार में अनावरण किया गया। प्रतिमा का अनावरण विदेश राज्य मंत्री परनीत कौर और दक्षिण अफ्रीका के वित्त मंत्री प्रवीण गोवर्धन ने किया। इस अवसर पर विश्वभर से आए हजारो हिंदी प्रेमी और विद्वान मौजूद थे । नौंवे विश्व हिंदी सम्मेलन के अवसर पर वेदालंकार को यह सम्मान देने के अवसर पर मारिशस के कला और संस्कृति मंत्री मुकेश्वर चुनी , भारत के उच्चायुक्त वीरेन्द्र गुप्ता , महात्मा गांधी की पौत्री इला गांधी , सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी और रघुवंश प्रसाद सिंह , महात्मा गांधी अंतरराष्ट्री हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपित विभूति नारायण राय आदि उपस्थित थे । प्रतिमा के अनावरण के बाद दक्षिण अफ्रीका के विख्यात हिंदी शिक्षा संघ की अध्यक्ष मालती रामबली ने कहा कि भारत के आचार्यो की परंपरा का निर्वाह करते हुए पंडित जी ने अपने मधुर स्वभाव, वचन और कर्म से सबको अभिभूत कर लिया था। उन्होंने कहा कि उनकी धार्मिक , सांस्कृतिक चेतना और जागरूकता अंतरमन से होकर उनकी वाणी से व्यक्त होती थी।
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