29-08-2012, 01:31 AM | #1 |
Diligent Member
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ना कुरेद अब जख्मों को मेरे .....
मैं तुझ में ही समाया हूँ , पीछा छुडाना है मुस्किल मैं तेरा ही साया हूँ ! गम जुदाई वाला ना सह पाउँगा .... अब तेरी यादों का ही रुलाया हूँ , ना मार ठोकरें ऐ साथी ...... रेत का इक घर मैं बसाया हूँ ! ना कुरेद अब जख्मों को मेरे ..... तुझे क्या मालूम इस दिल में दर्द कितना मैं दबाया हूँ , मैं कटी पतंग की भांति डोर खो कर तेरे शहर में जाने कहाँ से आया हूँ ! भूलकर जख्मों आज यु ही...... थोडा बहूत मुस्कराया हु मैं ना कर तू और सितम मुझपे ऐ '''नामदेव ''' चोट ज़माने से ही बहूत खाया हूँ लेखक सोमबीर नामदेव गाँव डाया जिला हिस्सार हरियाणा 125001 Last edited by sombirnaamdev; 29-08-2012 at 01:40 AM. |
29-08-2012, 11:46 PM | #2 | |
Special Member
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Re: ना कुरेद अब जख्मों को मेरे .....
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06-09-2012, 12:04 AM | #3 |
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Re: ना कुरेद अब जख्मों को मेरे .....
भावना जी धन्यवाद कविता पढ़ने और पसंद करने लिए
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28-09-2012, 12:23 PM | #4 |
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Re: ना कुरेद अब जख्मों को मेरे .....
बहोत सुन्दर नामदेव जी /
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29-09-2012, 12:36 AM | #5 |
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Re: ना कुरेद अब जख्मों को मेरे .....
एस . बी . सरोया जी ; आजकल भाव तो खूब अच्छे आ रहे हैं आपकी रचना में . आपको यश मिले .
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30-09-2012, 07:24 PM | #6 | |
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Re: ना कुरेद अब जख्मों को मेरे .....
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30-09-2012, 07:25 PM | #7 |
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Re: ना कुरेद अब जख्मों को मेरे .....
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