21-10-2012, 12:37 PM | #1 |
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माया
माया आँख मिचौली अब मत खेलो अब मैं तुमको जान गया हूँ तुम दुनिया को चकमा देती मैं तुमको पहचान गया हूँ कभी इधर तो कभी उधर नहीं तुम्हारा कोई ठिकाना सब हैं तेरे पीछे पागल तुमने किसको अपना जाना धर के रूप रंग अनेक कर देती कैसा पागल सुध बुध खो देते सब हो जाते बेचारे घायल कैसा रचा अनोखा तुमने लालच का षड्यंत्र बिरले योगी हैं ऐसे जो साधे तेरा मंत्र ... |
21-10-2012, 12:53 PM | #2 |
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Re: माया
अति श्रेष्ठ मित्र ! साधुवाद !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
21-10-2012, 03:29 PM | #3 |
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Re: माया
बहुत बढ़िया अनिल जी
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
28-10-2012, 07:38 PM | #4 |
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Re: माया
[QUOTE=anilkriti;170343]
कैसा रचा अनोखा तुमने लालच का षड्यंत्र बिरले योगी हैं ऐसे जो साधे तेरा मंत्र ... बहुत सुन्दर. धन्यवाद और बधाई. आपकी आगामी रचनाओं का इन्तज़ार रहेगा. Last edited by rajnish manga; 28-10-2012 at 07:41 PM. |
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