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Old 12-11-2012, 08:20 PM   #1
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Default विश्व में नास्तिकता की स्थिति और संभावनाए

विश्व में नास्तिकता की स्थिति और संभावनाएँ

रणजीत

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Old 12-11-2012, 08:20 PM   #2
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विभिन्न देशों में धर्महीनों या नास्तिकों की जनसंख्या कितनी है, इसके अनुमान विभिन्न सर्वेक्षणों द्वारा जुटाये गये हैं - पर यह कार्य बड़ा जटिल है, जैसा कि अमेरिका के पिटजर कालेज में समाज विज्ञान के प्रोफेसर और ‘सोसाइटी विदाउट गॉड’ के लेखक फिल जुकरमेन ने ‘कैम्ब्रिज कम्पेनियन टू एथ़िज्म’ में संकलित अपने लेख में बताया है। अनेक देशों के अनेक नागरिक अधार्मिक होते हुए भी अपने आपको ‘अधार्मिक’ कहने में संकोच करते हैं, क्योंकि यह कहना ठीक नहीं लगता। ‘नास्तिक’ शब्द भी कई संस्कृतियों में एक गंदा शब्द माना जाता है और ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करने वाले लोग भी ‘नास्तिक’ कहलाना पसन्द नहीं करते। इसका एक दिलचस्प उदाहरण यह है कि ग्रीलेई ने 2003 के अपने एक सर्वेक्षण में पाया कि 41% नार्वेवासियों, 48% फ्रांसीसियों और 54% चेक लोगों ने बताया कि ईश्वर में उनका विश्वास नहीं है, पर उनमें से केवल 10% नार्वेजिनों, 19% फ्रांसीसियों और 20% चेकों ने अपने आप को नास्तिक कहा जाना स्वीकार किया। फिर ‘धर्म’ और ‘ईश्वर’ शब्द विभिन्न भाषाओं में एकदम एक जैसे अर्थ भी नहीं रखते। इसलिए विभिन्न देशों में नास्तिकों या धर्मरहित मानववादियों के प्रतिशत विभिन्न सर्वेक्षणों में काफी भिन्न-भिन्न है।
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Old 12-11-2012, 08:20 PM   #3
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अधार्मिकता की सबसे व्यापक परिभाषा गेलपवर्ड सर्वेक्षण ने की है। 14 सितम्बर, 1911 को प्रकाशित उसकी रपट में अधार्मिकों का प्रतिशत मुक्तविश्वकोश ‘विकिपीडिया’ द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों से काफी भिन्न और अधिक है, क्योंकि गेलप के सर्वेक्षण में प्रश्न यह पूछा गया कि क्या धर्म आपके जीवन का महत्वपूर्ण अंग है? और इसका उत्तर ‘नहीं’ में देने वालों को ‘अधार्मिक’ की श्रेणी में रख दिया गया, जबकि विकिपीडिया द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों में अधार्मिकों की परिभाषा में स्पष्ट रूप से नास्तिकों, धर्मनिरपेक्ष मानववादियों, धर्म-विरोधियों, ईश्वर-विरोधियों, पंडे-पुरोहित-पादरी-विरोधियों, अज्ञेयतावादियों और धार्मिक संदेहवादियों को सम्मिलित किया गया था।
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Old 12-11-2012, 08:23 PM   #4
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इस तरह मुक्त विश्वकोश विकिपीडिया के अनुसार इन दिनों विश्व की लगभग छह अरब तीस करोड़ आबादी का लगभग 16 प्रतिशत यानी कुल मिलाकर 1 अरब 1 करोड़ लोग अधार्मिक हैं। फिल जुकरमेन के अनुसार विश्व में 2007 में नास्तिकों की कुल संख्या 50 करोड़ से 75 करोड़ के बीच थी। यह संख्या संसार में सिखों की कुल आबादी से 35 गुनी, यहूदियों की कुल आबादी से 41 गुनी और बौद्धों की कुल आबादी से दुगुनी थी। कुल मिलाकर नास्तिकों का समूह ईसाइयों (2 अरब), मुसलमानों (1.2) अरब और हिन्दुओं (90 करोड़) के बाद विश्व में अपनी जनसंख्या के आधार पर चौथे स्थान पर आता है।
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धर्मनिरपेक्ष बुद्धिवादियों और मानववादियों के लिए ये आंकड़े सांत्वनादायक है, पर यदि कट्टर धार्मिक देशों में मुक्त विचारकों, अधार्मिकों और नास्तिकों की सामाजिक स्थिति की सच्चाई पर दृष्टिपात किया जाय तो यह सारी सांत्वना हवा हो जाती है। उदाहरण के लिए हमारे मित्र और पड़ोसी द्वीप देश मालदीव की दो घटनाओं पर विचार किया जाय। पहले यह तथ्य बता देना आवश्यक है कि यह एक गणराज्य है और इसके संविधान के अनुसार इसके प्रत्येक नागरिक का सुन्नी मुसलमान होना जरूरी है। अब यह आप सोचिए कि उसे संविधान कहा जाय या असंविधान? मध्यकालीन मानसिकता वाले इस देश की पहली घटना 20 मई, 2010 को भारत के इस्लामी विद्वान जाकिर नायक के एक कार्यक्रम के प्रश्नोत्तर सत्र में घटी। मुहम्मद नाजिम नामक एक नागरिक द्वारा यह बताने पर कि वह इस्लाम में विश्वास नहीं करता है, न केवल श्रोताओं के एक वर्ग ने उसकी पिटाई की, बल्कि मालदीव की पुलिस भी उसे पकड़ ले गयी। पुलिस हिरासत में धर्मशास्त्रियों की दो दिन की काउंसिलिंग के बाद टीवी कैमरे के सामने उसने इस्लाम में विश्वास की घोषणा की, फिर भी उसे आरोप तय किये जाने की प्रतीक्षा में हिरासत में ही रखा गया।
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इसी तरह इस्माइल मुहम्मद दीदी के बारे में मालदीव के अखबारों में यह समाचार छपा कि माले अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के इस 25 वर्षीय एयर ट्रैफिक कंट्रोलर ने अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन को ई-मेल भेजा कि वह एक मुस्लिम परिवार से आने वाला नास्तिक है और वह इंग्लैण्ड में शरण लेना चाहता है, कृपया उसकी मदद करें, क्योंकि उसके परिजन और सहकर्मी उससे खफा हैं और उसे टेलीफोन से मौत की धमकियां दी जा रही हैं। पर इससे पहले कि उसे कहीं से कोई मदद मिलती, वह अपने ट्रैफिक कंट्रोल टावर पर लटका पाया गया। लगता है वह निराश हो कर आत्महत्या करने पर मजबूर हुआ। बीबीसी ने अपने 15 जुलाई 2010 के समाचारों में बताया था कि ई-मेल में उसने लिखा था कि मालदीव के समाज में उस जैसे अमुस्लिम के लिए कोई जगह नहीं है। यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि इस देश को अपने इस बर्बर कानून के बावजूद हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार समिति का सदस्य चुना गया है।
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जुकरमेन ने विभिन्न देशों में नास्तिकों की जनसंख्या और उनकी समाजार्थिक स्थितियों के बीच के संबंध का अच्छा विश्लेषण किया है। विश्व नास्तिकता को उन्होंने दो प्रकारों में विभाजित किया है - ऑरगेनिक या सहज-स्वाभाविक नास्तिकता और कोअर्सिव या लादी हुई नास्तिकता। पश्चिम योरोप और अन्य विकसित देशों, जैसे जापान, आस्ट्रेलिया आदि, की नास्तिकता को उन्होंने सहज-स्वाभाविक नास्तिकता कहा है और पूर्व साम्यवादी देशों की नास्तिकता को लादी हुई। पर लादी हुई नास्तिकता की यह अवधारणा सोवियत शिविर के ढहने के दिनों तक तो यानी बीसवीं शताब्दि के अन्तिम वर्षों तक तो संगत है, पर आज की तारीख में, जब उसे लादने वाली कोई सत्ता मौजूद नहीं है, उन देशों में नास्तिकों की जो बड़ी संख्या मौजूद है, उसे यह नाम देना संगत नहीं प्रतीत होता।
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Old 12-11-2012, 08:24 PM   #8
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अब प्रश्न उठता है कि विभिन्न देशों की आबादी में नास्तिकों के अच्छे-खासे और बहुत कम प्रतिशत की व्याख्या कैसे की जा सकती है? क्या कारण है कि यूरोप के तथा अन्य विकसित देशों में नास्तिकों की बहुतायत है, जबकि एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के विकासशील देशों में उनकी न्यूनता है? एक सिद्धांत नौरिस और इंगलहार्ट ने वर्ष 2004 में प्रस्तुत किया, जिसे अन्य विश्लेषकों ने भी मान्यता दी है। वह सिद्धांत यह है कि जिन समाजों में भोजन, स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास की भरपूर सुविधाएं प्राप्त हैं, उनमें धार्मिकता क्षीणतर और नास्तिकता प्रबलतर है, इसके विपरीत जिन देशों में ये सुविधाएं न्यून हैं, जहां जीवन कम सुरक्षित है, वहां धार्मिकता प्रबल है। स्पष्ट ही सामाजिक सुरक्षा और वैयक्तिक सुख-सुविधा तथा नास्तिकता के बीच, अपवादों को छोड़कर, समानुपाती संबंध है, और गरीबी, आर्थिक विषमता तथा कष्टपूर्ण जीवन धार्मिकता को प्रश्रय देते हैं।
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Old 12-11-2012, 08:24 PM   #9
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उदाहरण के लिए वर्ष 2004 की संयुक्त राष्ट्र संघ की मानव विकास रपट देखिए, जो जन्म के समय जीवनावधि की संभाव्यता, वयस्क साक्षरता, प्रति व्यक्ति आय और शैक्षणिक उपलब्धता आदि के आधार पर किसी देश के सामाजिक स्वास्थ्य का परिमापन करती है। इस रपट के अनुसार जो पांच देश सबसे स्वस्थ और सुखी पाये गये - नार्वे, स्वीडन, आस्ट्रेलिया, कनाडा और नीदरलैंड्स, वे सभी नास्तिकता के प्रतिशत की दृष्टि से भी अग्रगण्य हैं। इसी तरह गरीबी, आर्थिक-सामाजिक विषमता, शिशु-मरणशीलता, लैंगिक विषमता, नरसंहार आदि के सूचकांकों का धार्मिकता की प्रबलता से सीधा संबंध पाया गया है।
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Old 12-11-2012, 08:24 PM   #10
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इस सारे विमर्श का निष्कर्ष क्या निकलता है? क्या संसार में नास्तिकता बढ़ रही है? या घट रही है? इसका सही उत्तर यह है कि यद्यपि सुशिक्षित देशों में आज से पांच या दस साल पहले की अपेक्षा नास्तिक अधिक संख्या और प्रतिशत में हैं, तथापि धार्मिक अंधविश्वासों में जकड़े हुए पिछड़े देशों में क्योंकि जनसंख्या वृद्धि की दर अधिक है, कुल संसार की जनसंख्या में उनका अनुपात घट रहा है। उदाहरण के लिए वैज्ञानिक शिक्षा संपन्न देश ब्रिटेन के संबंध में ब्रूस और ग्रिल के सर्वेक्षणों ने पाया था कि 1960 में उसके 74 प्रतिशत लोग ईश्वर में विश्वास करते थे, पर 1990 में यह प्रतिशत 68 ही रह गया। नोरिस और इंगलहार्ट के अनुसार पिछले 50 बरस के दौरान आस्तिकों का प्रतिशत स्वीडन की जनसंख्या में 33%, नीदरलैंड्स में 22%, आस्ट्नेलिया में 20%, नार्वे में 19% और डेनमार्क में 18% घटा है। यह संसार के जाग्रत-विवेक नास्तिकों के लिए एक प्रेरक सूचना है। लेकिन यहां इस विडम्बना पर भी ध्यान देना चाहिए कि संगठित धर्मों की जनसंख्या सीधे किसी देश की जनसंख्या वृद्धि के साथ ही बढ़ जाती है, जब कि नास्तिकों की जनसंख्या उस देश में ज्ञान-विज्ञान और शिक्षा के प्रसार और उस देश के जाग्रत-विवेक नास्तिकों के प्रयत्नों पर, उनके द्वारा धार्मिक अंधविश्वासों के विरुद्ध प्रचार-प्रसार पर सीधी निर्भर है। एक हिन्दू या मुस्लिम परिवार का बच्चा पैदा होते ही उस धर्म की संख्या बढ़ा देता है, जबकि नास्तिक पैदा नहीं होते, पढ़-लिख कर बनते या पढ़ा-लिखा कर बनाये जाते हैं। इसलिए नास्तिकों को भी ईसाई मिशनरियों की तरह एक मिशन बना कर अपनी ‘सम्बोधि’ के प्रसार के प्रयत्न निरन्तर करने चाहिए ताकि इस संसार से अज्ञान और अंधविश्वास का अंधेरा दूर हो और ज्ञान का प्रकाश फैले। केवल अपनी मुक्ति से सन्तुष्ट नहीं होना चाहिए, अन्य लोगों की मुक्ति की भी चिन्ता करनी चाहिए - यही मनुष्यता है। यही मानव धर्म है।
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