14-12-2012, 11:24 PM | #171 | |
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Re: छींटे और बौछार
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प्रिय मित्र जय भारद्वाज जी, आपने मेरी टिप्पणी में मेरी गलती की ओर ध्यान खींच कर मुझ पर बड़ा उपकार किया है. मैं मानता हूँ कि इसकी वजह से आपको पीड़ा पहुंची है. भले ही यह अनजाने में हो गयी त्रुटि है लेकिन ऐसा होना अत्यन्त दुखद घटना है. मैं अपनी गलती के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ. आशा है आप उदारता का परिचय देते हुये मुझे क्षमा करेंगे. आपके प्रति तथा आपकी रचनाओं के प्रति मेरे ह्रदय में बड़ा आदर का भाव है और रहेगा. धन्यवाद. |
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19-12-2012, 11:53 PM | #172 |
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Re: छींटे और बौछार
मनुज वही जो विकट समय को, धीरज धर कर पार करे
सुखद समय में वह सज्जन बन, दीनों पर उपकार करे किये हुए का फल मिलता है, सभी धर्म यह कहते हैं उचित किया या अनुचित ही था, ऐसा स्वयं विचार करे ।। जीवन में अभिलाषाएं हैं, जैसे हो पानी पर तैल आत्मनिग्रही बन जाएँ तो, मिट जाएगा यह भी मैल यह जीवन अति चंचल है, नित परिवर्तन आता है आज वहाँ है झील मनोरम, कल तक जहाँ थे उन्नत शैल ।। परिवर्तन है नियम प्रकृति का, सतत चला करता है परिवर्तन का अदृश्य नियंत्रण, समय किया करता है शत्रु बनें हो सुहृद, या भाई बन बैठे हो प्रबल विरोधी मनुज बना 'जय' साधन केवल, समय ही बदला करता है ।।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
20-12-2012, 12:00 AM | #173 | |
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Re: छींटे और बौछार
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21-12-2012, 11:22 PM | #174 |
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Re: छींटे और बौछार
अरे! रुको उपहास मत करो, उस नंगे तरुवर का
संरक्षण है प्राप्त उसे भी, धरा और अम्बर का ।। दिन उसने भी देखें हैं मस्ती और अंगड़ाई के पास नहीं आया है कोई, देख के दिन तन्हाई के पशु पक्षी कलरव करते थे, उसकी शीतल छाया में पथिक शान्ति अनुभव करते थे, घने वृक्ष की माया में जिसके फलों के कारण ही कोयल आनंदित रहती थी जिसके पुष्पों के कारण ही पवन सुगन्धित रहती थी थे मधुपों के बोल कभी थे, "है पराग तो मात्र यहीं है" नहीं शिकायत आज किसी से, जबकि पास कोई भी नहीं है हे बुद्धिमान नर! देखो संयम उस महान तरुवर का अरे! रुको उपहास मत करो, उस नंगे तरुवर का ।। पत्र -पूर्ति यदि कर न सके तो, पत्र-हीन पर हँसें नहीं विष की औषधि दे न सके तो, विषधर बन कर डसे नहीं बुरा समय है आया उस पर, यह अवसर है पतझड़ का समय चक्र तो कभी रुका ना, यही नियम चेतन जड़ का वही बहारें फिर आयेंगी, नए पत्र होंगे तन में पशु-पक्षी पथिक,पवन, भौंरे, होंगे फिर उसके जीवन में नवजीवन के लिए व्यग्र हैं, उसकी टहनी और शाखाएं आशीर्वाद उसे तुम दे दो, "पूरी हों तेरी आशाएँ" दो मधुर शब्द से ही कर दो, उपकार खड़े 'जय' तरुवर का अरे! रुको उपहास मत करो, उस नंगे तरुवर का ।।
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21-12-2012, 11:31 PM | #175 |
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Re: छींटे और बौछार
बन्धुओं, 24 वर्ष पूर्व 18 दिसंबर 1987 को रचित यह हिंदी ग़ज़ल आप सभी के सम्मुख प्रस्तुत है। कृपया आनंद लें। हार्दिक धन्यवाद।
नीरव एकाकी हृदय भवन में आज आ गया कोई। शुभ्र धवलतम पृष्ठ पे अपना चित्र बना गया कोई।। अब तक मेरा जीवन था एक बंजर धरती जैसा वारि भरा जलधर बनके,झड़ी लगा गया कोई ।। पतझड़ का था चिर निवास मेरे मन उपवन में बन आह्लादक आमोदक, ऋतुराज छा गया कोई ।। विरह वेदना बहती रहती, मेरे मन-अन्तर में हर्ष भरे गीतों के लेकिन आज गा गया कोई ।। खंडहर जैसा पडा हुआ था मेरा मनः पटल बहुरंगी सपनों को लाकर वहाँ सजा गया कोई ।। शव-सदृश व प्रवाहहीन थी सभी उमंगें मेरी नवजीवन की वर्षा करके उन्हें जगा गया कोई ।। विवशता के बंधन में आँसू ही बहाए हैं सुना सुना कर छंद हास्य के, आज हँसा गया कोई ।। बिखर गयी थी आशाएं, अनंत रात की चादर में नई सुबह की सुखद बात की आस दिला गया कोई ।। इच्छाओं के शुष्क पुष्प थे दुःख के आँचल में उन्हें दृष्टि स्पर्श मात्र से, पुनः खिला गया कोई ।। पूर्ण विराम प्राप्ति की इच्छा थी 'जय' प्राण पथिक की अति समीप उद्देश्य विन्दु को आज हटा गया कोई ।। नीरव एकाकी हृदय भवन में आज आ गया कोई। शुभ्र धवलतम पृष्ठ पे अपना चित्र बना गया कोई।।
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24-12-2012, 10:26 PM | #176 |
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Re: छींटे और बौछार
तुम रमणी हो, रमणीक भी हो
अभिसारित हो, अभिनीत भी हो प्रणय-गंध सम्पूर्ण सुवासित मोहक, 'जय' परिणीत भी हो
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24-12-2012, 10:32 PM | #177 |
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Re: छींटे और बौछार
यौवन-पथ पर पथिक अकेले,
कहाँ दूर तक जाओगे । मन-अंतर में कसक समेटे, कहीं भटक भी जाओगे ।। भटके पथ पर पथिक मिलेंगे, अनजाने, अनचाहे से । प्रणय-बद्ध सर्वस्व मिलन अब, कर लो 'जय' मनचाहे से ।।
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24-12-2012, 10:43 PM | #178 |
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Re: छींटे और बौछार
यद्यपि जीवन ठहरा सा है
हृदय शांत और गहरा सा है जब एकाकी पल आते हैं कौतुक-प्रिय मन चपला सा है (1) जब लगता कुछ टूटा सा है हृदयन्तर कुछ बिखरा सा है घनी निराशा छा जाती तब घोर अन्धेरा उतरा सा है (2) तुम कहते कुछ हुआ नहीं है मुझे अनंग ने छुआ नहीं है मुख पर लाऊँ हँसी लाख, पर 'जय' चेहरा क्यों धुआँ धुआँ है (3)
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24-12-2012, 11:03 PM | #179 |
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Re: छींटे और बौछार
बिन तुम्हारे ढल रही है, आज फिर संध्या सुहानी ।
बिन तुम्हारे बन रही है, आज फिर अनगढ़ कहानी ।। हर निशा के बाद प्रातः से तुम्हारी राह देखूँ यूँ कदम चलते नहीं पर आहटों पर दौड़ देखूँ जब नहीं दिखते हो तुम तो मैं मलिन होती रही दिवस के अवसान पर फिर से तुम्हारी आस देखूँ बंधनों को तोड़ निकला है, मेरे नयनों से पानी । बिन तुम्हारे ढल रही है, आज फिर संध्या सुहानी ।। साँझ के आते लगे कि, आज तो तुम आओगे नन्ही बूँदों के जलद बन, तुम धरा सहलाओगे मन-उमंगें उमड़ चलती, ज्वार बन कर चन्द्र तक आस थी बन कर बवंडर, तुम उदधि पर छाओगे कंठ से चाहे निकलना, 'पी-कहाँ' की मधुर वाणी । बिन तुम्हारे ढल रही है, आज फिर संध्या सुहानी ।। हर निशा नागिन लगे, मुझे प्रिय बिना मधुमास में स्वप्न में ऐसे लगे कि, तुम हो मेरे पास में अब तुम्हारे कर-युगल ने कर दिया है मदन-वश अधर में जिव्हा तरल है, और 'जय' भुजपाश में अग्नि बिन मैं जल गयी और बुझ गयी मैं बिना पानी । बिन तुम्हारे ढल रही है, आज फिर संध्या सुहानी ।। बिन तुम्हारे बन रही है, आज फिर अनगढ़ कहानी ।।
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26-12-2012, 12:54 PM | #180 |
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Re: छींटे और बौछार
स्मृति गुरु की अगली पुस्तक प्रेरणा-बुड्ढा होगा तेरा बाप पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप……
तब नौकर था अब मालिक हूँ, तब तेरा था अब मेरा है। अँधियार हटा आया प्रकाश, अब साँझ नहीं सबेरा है॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… आयु काल व अंत हीन, यह अचेतन मेरा चेतन है। श्वेत केश अनुभवी साठ, यह अनुभव ही मेरा वेतन है॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… दुनिया के जितने बड़े काम, सबने साठ के बाद किये। न्यूटन, सुक़रात, विनोबा, गाँधी , तभी तो हैं आज जिये॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… जीवन वर्षों की उड़ान नहीं, लहराये जवानी सरसों में। तुम जोड़ो वर्षों को जीवन में, हम जीवन को जोड़े वर्षों में॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… अनंत जीवन के हम बच्चे, जो अंतकाल को न जाने। अमरत्व नित्यता मुझ में है, हम डरना मरना क्या जाने॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… स्वागत है आगत वर्षों का, दुनिया को मेरी जरूरत है। खोजोगे तुम भी रोज मुझे ऐसी ही मेरी सूरत है॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… माना कि हम कल ना होंगे, पर गीत हमारा गायेंगे। हम खायें या ना खायें , पर फल वृक्ष लगाकर जायेंगे॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… हम आश्चर्यजनक हैं लाठी छूटेगी, पर गाँठ न टूटेगी। हम खास ही हैं टूट जायेगी साँस पर आस न छूटेगी॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… घर बैठ निराश हताश अगर, अपना जीवन खो देगा। तैरती है लाश सतह पर जो जिन्दा है वह डूबेगा।। पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… जीवन में रुची बढ़ेगी जब स्मृति गुरु पट खोलेगा। मिल जाये मुरदा एक बार वह भी उठ कर बोलेगा ॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… द्रोणाचार्य दधीचि है हम, हमने तुम्हें सिखाया चलना। क्या कहते हो कौन है हम, जब सीख चुके पलना बढ़ना॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… गुरु हैं हम आचार्य हैं हम, तुम तो निबल निरक्षर थे। भूल गये वह दिन जब, हमने सिखाए अक्षर थे॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… क ख ग घ न जानो , अक्षर भैंस बराबर काला था। पाटी बस्ता पोथी लेकर हमने ही भेजा शाला था॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… तुम्हें समय का ज्ञान नहीं, समय कभी नहीं रुकेगा। आज जहाँ पर हम हैं खड़े, तेरा सिर यहीं झुकेगा॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… प्रेम, हर्ष, धैर्य, शान्ति, इन सबकी महिमा क्या जानो। उच्च शिखर पर मेरा आसन तुम भद्रपुरुष को क्या जानों। पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… तुम क्या जानों मुझ में क्या हैं , शिष्य कभी तो बने नहीं। अभी जान लो धन, छल, रूप यौवन अधिकार टिके नहीं। पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… सब तीरथों का तीरथ अनुभव, हमने सीखा कहाँ कहाँ। मद है विद्या का हम मदमस्त हैं , ये सारा मेरा जहाँ॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… तू क्या समझे इस जिह्वा में किस शास्त्र धर्म की वाणी है। कण कण में मेरे अनुभव है ना समझो ये कि अनाड़ी है॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… ये देख मेरे अनुभवी हाथ , कृपाण लेखनी बनते हैं। छू लू मैं जिस कागज को , पारस बन स्वर्ण उगलते हैं॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… माली बन तुझको सींचा है, ये हरियाली उपजी हमसे है। डाल दृष्टि चहुँ ओर हरा मैं तुझसे नहीं तू हमसे है॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… मैं बुड्ढा तो तू जवान नहीं, मैं तेरे लिये तो जीता हूँ। प्यास लगे तो कुआँ खोदकर, पानी अभी मैं पीता हूँ।। पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… तू कड़ुवा मैं मीठा हूँ , विष अमृत का अंतर क्या जानों। आ जाये बब्बर शेर अगर वह भी काँपेगा ये मानो॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… तुम नीरस और हताश दिखे, हम में अब भी विश्वास दिखे। तुम लगते निर्जीव निबल, हम में अब भी आस दिखे॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… तुम अतीत की बात करो, वह दिन तो बीते हैं। तुम भूतकाल की बात करो हम वर्तमान में जीते हैं॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… तुम भूतपूर्व कह कर हमसे रोब जमाना क्या जानों । नाम न लूँगा क्या था मैं ,क्या आज हूँ मैं ये तुम जानों॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… तुम कहते किया बहुत काम, घर बैठ ऐश अब करते हैं। समझो ऐसो को मरा हुआ, मुर्दे न दुबारा मरते हैं॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… मर्यादा पद पदवी गौरव है पाने की चीज नहीं। क्या अधिकारी हो तुम इसके, बिना वृक्ष के बीज कहीं॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… योग्य न हो सम्मानों का फिर भी इसको पा जायें। इससे अच्छा योग्य अनुभवी, इस सम्मान को न पाये॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… हम नहीं हैं बंद घड़ी, जो समय बताये एक बार। अनवरत निरन्तर चलते हैं, जैसी सरिता की बहे धार॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… दीवानी तो थी मीरा, तुम दीवाने तो बने नहीं। क्षण भर दीवाने हुये कभी तो पल भर भी टिके नहीं॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… न गुरू किया न गुरु बने जीवन तो तेरा शुरू नहीं। जीने के वर्ष ही गिनते हैं , कटने के वर्ष तो बने नहीं॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… घटा उमर तू वरस के उतने, कुएँ में जितने दिन सोया है। अब बता बची क्या उमर है तेरी क्या खोया क्या पाया है॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… तू बुढ़ापे का बने सहारा मात पिता ने पाला था जाकर बसा विदेश प्रिया संग, भेजा रुपये का माला था॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… बावन अक्षरों का महाभारत, सबसे वृहद कहानी है। तूने सीखे कितने अक्षर, लिखी कौन कहानी है॥ पहले आप पहले आप, बुड्ढा होगा तेरा बाप…… प्रेरक कविता " भूलना भूल जाओगे" से संदर्भ: http://unlimitedmemory.tripod.com |
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