29-11-2010, 05:56 PM | #451 |
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Re: साक्षात्कार
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दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
30-11-2010, 05:32 PM | #452 |
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Re: साक्षात्कार
१. देश को आगे ले जाने के लिए हम सभी देशवासियों को ये प्रण लेना होगा कि हमें अपने अधिकारों की बात करने से पहले हमें अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा. इन कर्तव्यों में बरती गयी ढिलाई ही आपने अधिकारों के हनन में तब्दील हो जाती है.
२. हमें सुधारों की शुरुआत अपने आप से करनी होगी. सिर्फ ये कहने से काम नहीं चल सकता कि "कोई भी तो ये काम करता नहीं है तो फिर मैं ही क्यों करूँ ?". उदाहरण के लिए जब हमें किसी निजी कार्य जैसे कि किसी की लड़की के लिए लड़का देखना हो (शादी के लिए) तो हम आगे बढ़कर पहले से पहले इस काम को निपटा डालते हैं. पर जब कोई देश के प्रति किसी कर्त्तव्य का पालन करना हो तो कहते हैं "कोई भी नहीं कर रहा तो मैं ही क्यों करूँ?" इस आदत से मुक्ति पानी होगी और देश के लिए किये जाने वाले कार्यों को भी बढ़ चढ़ कर करना होगा. ३. सरकार के द्वारा निर्धारित नियमों जैसे कि रिहाइशी इलाके में सिर्फ रिहाइश ही हो. उद्योग धंधों वाली जगह सिर्फ उद्योग ही हों और दुकानों और दफ्तरों के लिए निर्धारित जगह पर ही ये खोले जाएँ तो हमारा देश स्वर्ग बन जाए. मैं देखता हूँ कि कुछ लोगों के लिए जैसे कि टेंट वाले और बिल्डिंग मेटिरिअल बेचने वाले कहीं भी सड़क के किनारे सड़क पर जहाँ पर भी जगह मिल जाए वहीँ पर अपना काम धंधा शुरू कर देते हैं. हम लोग कहते हैं कि पुलिस वाला भ्रष्ट है जो उससे पैसे लेकर ये काम करने देता हैं, या नगर निगम वाला भ्रष्ट है जो उसे ये काम करने से रोकता नहीं है. जबकि इन दोनों को भ्रष्ट बनाने में इस तरह का काम करने वाले लोगों का ज्यादा योगदान है. बिना किसी गोदाम और दफ्टर के काम चल रहा है तो रिश्वत हमको अच्चा सौदा लगने लगता है और हम पूरे सिस्टम को अपने फायदे के लिए खराब करने से बाज नहीं आते. ऐसा नहीं है कि पुलिस वाले और नगर निगम वाले ऐसा करके अच्छा काम कर रहे हैं पर उनको बिगड़ने में हम लोग ही कारण होते हैं. पुलिस वाला किसी को बुलाने नहीं जाता कि तुम यहाँ पर अपनी दुकान खोल लो. बल्कि दुकान दर ही पुलिस वाले के पास जाता है अपनी उस अवैध दुकान को बचने के लिए. हमें अगर अपने आगे आने वाली पीड़ियों को एक अच्छा भारत देना है तो हमें इन चीजों के बारे में आज ही सोचन होगा. वर्ना कल बहुत देर हो चुकी होगी. ४. सरकार में और प्रशासन में बैठे लोगों की ये जिम्मेदारी बनती है कि नियमों का उल्लंघन करने वाले लोग ना पनप सकें और उसके लिए अपने अधिकारीयों और कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय करनी होगी. इन नियमों और क़ानून के प्रथम उल्लंघन पर ही अगर सख्त कार्यवाही की जाए तो शायद ही किसी और कि हिम्मत होगी उस नियम और क़ानून को तोड़ने की. अगर नियमों में फेर बदल करके उनकी मान्यता को बढाया जा सके तो वो भी सरकार को समय समय पर करते रहना होगा. यह एक सतत प्रक्रिया है इसमें शिथिलता नही आनी चाहिए. ५. किसी भी इलाके में अगर नियमों की अनदेखी हो रही है तो उस इलाके के सबसे वरिष्ठ अधिकारी को सीधे सीधे कहा जाना चाहिए कि अगर इसमें सुधार नहीं हुआ और उसने अपने नीचे वाले लोगों पर निगरानी नहीं रखी तो तो उसके खिलाफ ही सीधे सीधे जिम्मेदारी तय की जायेगी और अगर उसके अधीन किसी कर्मचारी की गलती है तो भी उस सबसे वरिष्ठ अधिकारी की ही गलती मानी जायेगी क्योंकि अपने अधीनस्थ को देखना उसका ही काम था. आज इसका अभाव होने की वजह से प्रशासनिक सेवाओं में सभी जाना चाहते हैं क्योंकि वहां पर रुतबा ही रुतबा है जिम्मेदारी कुछ भी नहीं है. अगर सबसे बड़े अधिकारी के ऊपर जिम्मेदारी डाल कर कार्यवाही होने लगे तो सभी उच्च अधिकारी अपने काम पर ध्यान देंगे और ऐसे लोग इस सेवा में नहीं आयेंगे जो सिर्फ मेवा खाने के लिए इस सेवा में जाते हैं. ६. मुकदमों और शिकायतों का जल्द से जल्द निपटारा हो. धोशियों को जल्द से जल्द सजा मिले तभी कोई देश तरक्की का सपना देख सकता है. हमें ये स्थिति अपने देश में पैदा करनी होगी. हमें न्यायाय प्रक्रिया में आमूल चूल परिवर्तन करके इसको तेज, प्रभावी और निष्पक्ष बनाना पड़ेगा. आज जो भी न्याय प्रक्रिया हमारे देश में है उसमें बहुत सी खामियां हैं जिसकी वजह से क़ानून की पकड़ से दबंग और पैसे वाले हमेशा ही बचे रह जाते हैं और बेचारे गरीब और दबे कुचलों की कोई सुनता तक नहीं है. ७. नौकरियों में और दूसरी जगह आरक्षण को काम से काम करना होगा और जहाँ पर भी , जितना भी आरक्षण जरूरी हो उसे आर्थिक आधार पर होना होगा जाति के आधार पर नहीं. ८. क़ानून और व्यवस्था में और लोगों को लगाना होगा और ये सुनुश्चित करना होगा कि सभी नागरिक सुरक्षित महसूस करें क्योंकि अगर नागरिक सुरक्षित ही महसूस नहीं करेंगे तो तरक्की संभव नहीं हैं. और ये सुरक्षा की भावना सभी के अन्दर पैदा करना हमारी सरकार का सबसे प्रथम कदम होगा देश को तरक्की के रास्ते पर आगे लेकर जाने में. ९. हम सभी का ये कर्त्तव्य बनता है कि हम अपनी किसी भी बात को सरकार तक शांति प्रिय ढंग से पहुंचाएं ना कि अशांति फैला कर. बंद, रेल रोको, चक्का जाम जैसी चीजें हमको रोकनी होंगी क्योंकि इससे सरकारी संपत्ति का नुक्सान होता है और बेगुनाह लोग परेशान होते हैं. १०. अपने जन प्रतिनिधि को यथासंभव सही कार्य करने के लिए प्रेरित करें और अपना कोई भी ऐसा कार्य उसके पास लेकर ना जाएँ तो क़ानून सम्मत ना हो. हमें अगर तरक्की करनी है तो अपने प्रतिनिधि से सही कार्य करवाने होंगे जो कि एक सकारात्मक बदलाव लायें.
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30-11-2010, 06:47 PM | #453 |
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Re: साक्षात्कार
आप खेल मेँ क्या पसन्द हैँ
खेल से जुडा कोई अच्छी और बुरी यादेँ
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दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
01-12-2010, 12:42 PM | #454 |
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Re: साक्षात्कार
कभी आप लव के चक्कर मेँ पडे हैँ
बता दिजीए भाभी को नहीँ बताऐगेँ कोई भी हा हा हा
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दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
01-12-2010, 01:02 PM | #455 | |
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Re: साक्षात्कार
Quote:
क्रिकेट भी पसंद है पर सिर्फ सुनना और देखना. अच्छी और बुरी यादें तो बस इतनी हैं कि मैं किसी से भी हारना पसंद नहीं करता था. ( खेल भावना का अभाव ). एक बार हाथरस के sdm हमारे क्लब में खेलने के लिए आये और पहले गेम में उन्होंने मेरे बाबूजी को हरा दिया था. मैंने तुरंत ही रैकेट अपने हाथ में ले लिया और उनसे एक गेम खेलने की गुजारिश कर डाली. मैंने उनको काफी अच्छी तरह से धो डाला और बाबूजी की हार का बदला ले लिया. पर उनके जाने के बाद मेरे बाबूजी के सभी दोस्तों ने जो उस क्लब के पुराने सदस्य थे मुझे इस बात के लिए बहुत लताड़ा कि एक बड़े अधिकारी को मैंने इतनी बुरी तरह हरा कर भेजा. पर मैं खुश था कि मैंने बाबूजी जी की हार का बदला तुरंत ही ले लिया था. मुझे आज भी याद है उन वरिष्ठ अधिकारी का उतरा हुआ चेहरा. अगर कोई मुझे हरा देता था तो अगले दिन मैं उसे बायें हाथ से खेलते हुए हराता था तब कहीं जाकर मुझे चैन मिलता था. सामान्यतः में सीधे हाथ से खेलता था. मैंने बहुत कोशिश की है कि अपनी इस आदत पर काबू पाया जाए पर किसी से हारने के बाद मुझे पता नहीं क्या हो जाता था कि मैं अपने आप पर काबू बहुत ही मुश्किल से रख पाता था. अब तो लगभग २० साल से दोनों ही खेल छूते हुए हैं. कुछ भी खेल नहीं पाते हैं सिवाय इस फोरम पर पड़े हुए गेम्स के. जीवन की आप धापी में ये खेलों का छूटना एक नुक्सान की तरह है.
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Last edited by aksh; 01-12-2010 at 01:13 PM. |
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01-12-2010, 01:16 PM | #456 |
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Re: साक्षात्कार
कभी आपको किसीने किसी वजह से इस्तेमाल क्या हैँ
यानी आपको बुद्धु बनाया हैँ
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01-12-2010, 01:17 PM | #457 |
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Re: साक्षात्कार
जो कुछ भी हुआ है ये मेरी जिंदगी का निजी अध्याय है. अनुज आपको ये काम करने की जहमत नहीं उठानी पड़ेगी क्योकि उसके सामने मेरी जिंदगी एक खुली किताब है और जो भी सम्बन्ध किसी से भी रहे वो बड़े ही भावुक और पवित्र थे इसलिए मेरे द्वारा अपनी पत्नी को सभी कुछ बताया हुआ है. धन्यवाद अनुज.
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01-12-2010, 01:34 PM | #458 |
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Re: साक्षात्कार
जैसे आप घर से बाहर हैँ क्या आप घर के काम मेँ भी दिलचस्पी लेते हैँ
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01-12-2010, 05:25 PM | #459 | |
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Re: साक्षात्कार
Quote:
आप तो सेलेब्रिटी हैं इस फोरम में !! मगर मेरे जैसे तुच्छ प्राणी को याद रखे हैं और पसंद भी करते हैं, ये तो आपका बड़प्पन है !!
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"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!" |
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01-12-2010, 05:28 PM | #460 |
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Re: साक्षात्कार
सर, अगर आज आपका जीवन के आखरी दिन हो तो इसे कैसे जीना चाहेंगे ???
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