01-12-2010, 05:44 PM | #461 | |
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Re: साक्षात्कार
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पहला ऐसा अनुभव मेरी आयु जब १२ साल के आसपास थी तो अपने एक दोस्त के चक्कर में पड़कर में अपनी पढाई पर ध्यान देना बंद कर दिया और इधर उधर की बातों में ही ध्यान रहता था. ये बात उस समय की है जब में क्लास ६ और ७ में पढता था. मेरे नंबर बहुत ही कम आते थे और में अंग्रेजी, गणित में फेल होकर भी अगली क्लास में प्रोन्नत किया जाता रहा. जब दो साल में मेरा बुरा हाल देखा गया तो मेरे उस दोस्त की संगत वाली बात बाबूजी को पता चल गयी और उन्होंने मुझे अपने विद्यालय में दाखिल कर लिया जो शहर से ४ किलोमीटर दूर था. वो वहां पर प्रिंसिपल थे और उनके रुतवे की वजह से सारे के सारे बच्चे मुझ से भी डरने लगे और में नए विद्यालय में भी उसी ढर्रे पर रहा पर मैं अपने आप को उस विद्यालय का युवराज ( प्रिंस) समझता था और सभी पर रोब झाड़ता रहता था. उस जगह के सभी लोग आज भी मुझे एक युवराज की तरह ही सम्मान देते हैं और मेरी आँखें नम हो जाती हैं अपने स्वर्गीय पिताजी के उस छोटे से प्रयास के लिए जो उन्होंने उस गाँव में अपने साथियों के साथ मिलकर विद्यालय स्थापित करने के लिए किये होंगे. उसी प्रयासों का प्रसाद था कि बाद में सरकारी हाथों में चले जाने के पश्चात वहां पर प्रिंसिपल भी बने. और वहीँ रहते हुए रिटायर भी हुए. मैं वहां पर सिर्फ तीन साल आठवीं, नौवीं और दसवीं क्लास में ही पढ़ा हूँ पर उन गाँव वालो से मिले बिना कभी भी हाथरस से वापस नहीं आता हूँ. तो अपने अनुभव की बात को आगे बढाया जाए. मैं आठवीं क्लास में ही बाबूजी के विद्यालय में लाया गया था और वो वहां पर केवल बड़ी कक्षाओं को ही पढ़ते थे इसलिए मैं उनकी नजरों से दूर अपनी शरारतों में व्यस्त था और पढाई से कोसो दूर. एक बार की बात हैं मैंने अपने बाबूजी के कमरे की अलमारी में कुछ कागज़ रखे मिले जो शायद आठवीं क्लास का छमाही का पेपर था और मैंने वो परचा निकल कर डरते डरते पूरा का पूरा कोपी कर लिया और वापस वहीँ पर रख दिया. उस पर्चे के हिसाब से मैंने वो सभी प्रश्नों के उत्तर तैयार किये और बड़ी ही मेहनत के साथ पूरी तैयारी की और एग्जाम में बैठा. उसके बाद जब रिजल्ट आया तो मुझे कालेज प्रशासन ने जांच के दायरे में ला दिया कि इसके इतने अच्छे नंबर आये कैसे ??? लेकिन तब तक हमें पढने का चस्का लग चुका था पर अभी भी बहुत ही कठिनाई थी. मैं अपने सभी अध्यापकों से मदद की भीख मांगी और कहा कि सालाना एग्जाम में परचा बोर्ड से आएगा और वहां मेरा डब्बा गोल हो जाएगा. मैं आगे से पूरी मेहनत का आश्वासन देकर कुछ टीचर्स की मदद से सालाना एग्जाम में बहुत ही अच्छे नंबर से पास हुआ. सारे जिले में मेरा पहला स्थान आया था और उत्तर प्रदेश में मेरा नंबर तीसरा था. मुझे बहुत से सम्मान समारोह में बुलाया गया, सरकार की तरफ से स्कालरशिप भी मिली पर मैं मन ही मन बड़ा ही अशांत रहने लगा कि मैं शायद इस सम्मान का हकदार नहीं हूँ और मैंने अपने अकेले के दम पर आगे के सभी एग्जाम्स में सफलता हासिल करने की ठान ली और उसके बाद मैंने पीछे मुड कर नहीं देखा. मेरे पिताजी द्वारा मुझे सजा के तौर पर अपने विद्यालय में लेकर जाना, मेरी क्षमताओं पर सवालिया निशान लगाना और बिना योग्य हुए जो सम्मान मिले उन सब घटना क्रम ने उस छोटी से उम्र में बहुत बड़ा चमत्कार कर दिया. मैं आज भी सोचता हूँ कि अगर बाबूजी ऐसा नहीं करते तो आज मैं शायद कोई छोटी मोटी नौकरी या दुकान कर रहा होता. दूसरा अनुभव हुआ जब बाबूजी द्वारा जन्मदिन से कुछ दिन पहले कपड़ों के लिए दिए गए पैसे ( लगभग ३०० रूपये ) मैं जुए में हार कर आ गया और बाबूजी के कपड़ों के बारे में रोज पूछने पर बहाने बना कर टालता रहा. ये सोच कर कि ये बात किसी दिन खुल जायेगी, मैंने अपने घर में पिताजी की रखी हुयी नमूने की किताबें मार्केट में किताब विक्रेता को बेच दीं और इस प्रकार बाबूजी के नाम पर बट्टा लगाया. जब उन किताबों को बेचने से पूरे पैसे नहीं मिले तो एक और अध्यापक के घर से भी ये कहकर किताबें ले आया कि बाबूजी ने किसी गरीब बच्चे के लिए मंगाईं हैं. उस घटना के होने के बाद जब मैं कपडे लेकर घर आया तो फूट फूट कर रोया और सारी बातें अपनी बहनों को बताईं. और कसम खाई कि आज के बाद जिंदगी में कभी भी जुआ नहीं खेलूँगा. क्योंकि जुए की हार आदमी का विवेक नष्ट कर सकती है और उससे और भी गलत कार्य करवा सकती है. जब ३०० रूपये के लिए चोरी कर ली तो क्या ३०००० रूपये के लिए डकैती भी डालनी पड़ सकती थी. ये घटना भी मेरे जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना साबित हुयी और मैं आज तक भी हर तरह के जुए से दूर रहता हूँ. यहाँ तक कि जो इन्वेस्टमेंट मुझे जुए जैसे नजर आते हैं मैं वहां भी इन्वेस्ट नहीं करता.
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01-12-2010, 05:49 PM | #462 |
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Re: साक्षात्कार
ऐसा भी कभी कभी होता रहता है. पर मैं एक बार खुद को बुद्धू बनाने वाले को दोबारा ये मौका नहीं देता. पर वैसे कभी भी ऐसे लोगों से बदला लेने की नहीं सोची बल्कि सोचा चलो बुद्धू बनकर ही सही किसी के काम तो आये.
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01-12-2010, 06:01 PM | #463 |
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Re: साक्षात्कार
आप भगवान् को किस बात के लिए धन्यवाद देना चाहेंगे ????
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01-12-2010, 06:08 PM | #464 |
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Re: साक्षात्कार
अनिल भैय्या
आप फोरम के हित मे क्या सोचते हैँ ? अगर आपको फोरम का प्रशासक बना दिया जाए तो आप क्या बदलाब करना चाहेँगे ?
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01-12-2010, 06:14 PM | #465 |
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Re: साक्षात्कार
आप ने अपने जीवन मे क्या सीखा है ?
क्या आपने जो लक्ष्य बनाया था उसे पूरा कर पाए है ? आपको जीवन का सबसे अधिक खुशी कब मिली ? कोई ऐसा हादसा जो कभी नही भूल सकते ?
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01-12-2010, 06:45 PM | #466 |
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Re: साक्षात्कार
अनिल जी ,दोस्त बनाते समय आपकी प्राथमिकताएं क्या होती हैं ?
किस प्रकार के व्यक्ति आपको पसंद है और किस प्रकार के व्यक्ति नापसंद हैं ? आपको किस प्रकार का संगीत पसंद हैं ?
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01-12-2010, 06:52 PM | #467 |
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Re: साक्षात्कार
मैं जैसा भी हूँ, जो भी हूँ, जहाँ पर भी हूँ और जिन लोगों से जुड़ा हुआ हूँ ये सब वही तय करता है. इसके लिए भगवान् को बहुत बहुत धन्यवाद. मैं संसार के करोड़ों लोगों से अच्छी स्थिति में हूँ, इसके लिए भी मैं भगवान का धन्यवाद करना चाहता हूँ. मुझे भारत जैसे देश में पैदा किया जहाँ पर मेरे इतने अच्छे दोस्त, सगे सम्बन्धी और परिवारी जन हैं इसके लिए भी मैं भगवान् को धन्यवाद देना चाहता हूँ. हमेशा सकारात्मक सोचते रहने की शक्ति देने के लिए भी मैं भगवान् का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ. और अंत में मेरी पत्नी के रूप में मुझे एक समझदार जीवन साथी और दो बहुत ही प्यारे प्यारे बच्चे देने के लिए तथा सबसे अहम् अपने माता और पिता के रूप में जो आदर्श रूप मेरे सामने रखे उसके लिए भी मैं भगवान् का धन्यवाद कहता हूँ.
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01-12-2010, 07:11 PM | #468 | |
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Re: साक्षात्कार
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1. ये फोरम दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करे. 2. दुनिया की सबसे चर्चित फोरम्स में शामिल हो जाए और एक दिन सबसे बड़ी फोरम भी बने. 3. हमारे परिवार से जुड़ने वाला हर सदस्य एक परिवार के सदस्य की तरह फील करे. जहाँ तक बात है कि मुझे फोरम का प्रशासक बना दिया जाए तो मैं क्या करूंगा, तो इसका जवाब ये है कि वर्तमान में सभी सदस्य इस फोरम के प्रशासक ही हैं सभी के सुझाव माने जाते हैं और सभी की बात को अहमियत से लिया जाता है. कोई भी सदस्य ये महसूस नहीं कर सकता कि वो इस फोरम का प्रशासक नहीं है. फिर भी आपने सवाल किया है तो मैं भी एडम स्मिथ की तरह ही जवाब दूंगा " मैं वो हर कार्य और बदलाव करूंगा जो फोरम के और इसके सदस्यों के सर्वोच्च हित में होंगे और जो फोरम के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होंगे. " धन्यवाद.
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01-12-2010, 07:35 PM | #469 | |
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Re: साक्षात्कार
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जीवन से सीख जीवन से सीखना एक सतत प्रक्रिया है अनुज. फिर भी आपने पुछा है तो बताता हूँ जो भी सीखा है. बड़ों को आदर देना, छोटों से प्यार करना, परायी स्त्री और पराया धन वर्जित समझना, अपनी सफलता को मित्रों, परिवार जनों और अधीनस्थ और वरिष्ठ के साथ बांटना, अपना काम मन से करते रहो सफलता झक मार कर आपके पास आएगी, किसी की सफलता और संपत्ति से जलो मत, सबका भला चाहो आपका भी भला ही होगा, किसी पर भी अँधा भरोसा मत करो, सावधानी जरूरी है प्रत्येक कदम पर इत्यादि चीजें हैं जो इस जिंदगी से सीखी हैं. जीवन का लक्ष्य काफी हद तक ये बात कही जा सकती है. पर अति महत्वाकांक्षी ना होने की वजह से मुझे सभी कुछ अपनी रीच में ही लगा कभी भी अपनी पहुँच से बाहर की चीज को लक्ष्य नहीं बनाया. एक सपना जरुर पूरा होना बाकी है जब पूरा होगा तो सभीको पता चलेगा. जीवन का सबसे ख़ुशी का दिन जब मैं सी.ए. बनकर पहली बार अपने बाबूजी के सामने गया और उनके मुंह से ये सुना. " मुझे तुम पर गर्व है कि तुमने मेरे सीमित साधनों का श्रेष्ठ उपयोग किया है. " मेरे लिए ये दुगनी ख़ुशी की बात थी क्योंकि मुझे अकाउंटिंग पढ़ाने वाले गुरु भी मेरे बाबूजी ही थे. हादसा काम की अधिकता की वजह से में एक बार रात को करीब ९ बजे अपनी कार से खुद ड्राइव करते हुए हाथरस के लिए रवाना हुआ. उस दिन ३० मार्च थी और अगले दिन ३१ मार्च होने की वजह से इनकम टैक्स की रिटर्न की लास्ट डेट थी. मैं लगभग १२.३० पर हाथरस पहुँच कर सारी रात काम में लगा रहा और अगले दिन सुबह पांच बजे वापस दिल्ली के लिए रवाना हुआ क्योंकि इनकम टैक्स की लास्ट डेट थी इसलिए मैंने सोचा कि अगर सो गया तो यहीं पर फंस जाऊंगा. रास्ते में मुझे काफी बार नींद के झटके लगे और मैं चलता रहा तभी दिल्ली के नजदीक पहुँच कार मुझे कार चलाते चलाते नींद आ गयी और मैं अपनी कार सहित एक अन्य वहां से जा टकराया जो मेरे आगे आगे चल रहा था. कार को कैफ नुक्सान हुआ पर मुझे कोई शारीरिक चोट नहीं आयी पर मानसिक आघात अवश्य ही लगा. आज भी जब कभी इस घटना को सोचता होण तो मेरे रोंगटे ये सोच क़र खड़े हो जाते हैं:- 1.कि अगर उस वाहन और मेरे बीच में कोई पैदल यात्री या साइकिल यात्री होता तो क्या होता ? 2.कि अगर मैं सामने वाले वाहन से टकराता तो क्या होता ?
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Last edited by aksh; 01-12-2010 at 07:39 PM. |
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02-12-2010, 12:17 AM | #470 |
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Re: साक्षात्कार
बहुत ही जीवंत साक्षात्कार हो रहा है आपका अनिल भाई ...
एक हल्का फुल्का प्रश्न ............. क्योंकि आप एक सेवा प्रदाता हैं अतः आपको कई प्रकार के ग्राहकों से आमना सामना करना पड़ता होगा / क्या कभी आपने अपने ग्राहकों में 'मोटा मुर्गा' या 'कुड़क मुर्गी' जैसे वर्गीकरण किये हैं ?
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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