13-01-2013, 08:29 AM | #51 |
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Re: महान व्यक्तित्व {Great personality}
एक बड़ी लड़ाई उन्होंने भी लड़ी थी | यह दीगर है कि उनके चेले भी उन्हें धोखा दे गए !! आज से करीब 38 साल पहले देश में करप्शन का वैसा ही बोलबाला था जैसा आज है। उस समय के करप्ट नेताओं ने लोकतंत्र की हत्या की कोशिश की। जब देश और लोकतंत्र संकट में दिखा तो उस वक्त एक ऐसा बूढ़ा जो अशक्त और बीमार रहता था, सामने आया। सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया। पूरे देश को आंदोलित कर दिया। लोकतंत्र विरोधी नेताओंको धूल चटा दी। देश और लोकतंत्र दोनों को बचा लिया। हालांकि, उस शख्स के सम्पूर्ण क्रांति का सपना आज भी अधूरा है। उस शख्स का नाम था लोकनायक जय प्रकाश नारायण । दूर्भाग्य की बात है कि नई पीढ़ी इस असली नायक को भूलती जा रही है। 11 अक्टूबर इनका जन्मदिन है। उसुलों पर आंच आये तो टकराना जरुरी है जिन्दा हो तो जिन्दा नजर आना जरुरी है !
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14-01-2013, 08:34 AM | #52 |
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Re: महान व्यक्तित्व {Great personality}
करूणामय रामकृष्ण
1871-1872 की बात है। श्री रामकृष्णदेव ने दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में ईश्वर प्राप्ति के लिये अति कठिन और विविध साधना में सिध्दि प्राप्त करने के पश्चात अपने भक्त मथुरनाथ बिस्वास के साथ वे वृंदावन वाराणसी और काशी विश्वेश्वर के लिये रेल यात्रा पर निकले। इस यात्रा के दौरान श्री रामकृष्णदेव और उनके साथी बिहार के एक ग्राम बर्धमान के पास रूके। ब्रिटिश राज की नीतियों और मौसम की लहर के कारण उन दिनों पूरा बिहार अकाल की चपेट में था। अन्न और जल दोनों की खासी कमी थी। गरीब जनता अतिशय दुख और कष्ट से बेहाल थी। इस माहौल में भूख और त्रासदी से ग्रस्त लोगों के एक समूह को देखकर ये स्वस्थ और सुखी यात्री अपने आप को बेचैन महसूस करने लगे। करूणामय श्री रामकृष्ण इस अस्वस्थता को बरदाश्त नहीं कर सके। वे अपने धनिक साथी माथुरबाबू से बोले ''देखो क्या त्रासदी आई है। देखो इस भारत मां की सन्तान कैसे दीन और हीन भाव से त्रस्त है। भूख से उनका पेट और पीठ एक होते जा रहा है। आंखे निस्तेज और चेहरा मलिन हो गया है।बाल अस्तव्यस्त और सूखे जा रहे हैं। ओ मथुर आप इन सब दरिद्र नारायण को अच्छी तरह नहाने का पानी बालों में डालने तेल और भरपेट भोजन की व्यवस्था करो। तभी मैं यहॉ से आगे बढूंगा। मानव ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ आविष्कार है। इन्हे इस तरहा तडपता मैं देख नहीं सकता। मथुराबाबु बडी भारी उलझन में घिर गये। ना तो उनके पास इतनी रकम थी ना ही अनाज और अन्य सामग्री। इतने सारे गरीबों को खाना खिलाना और अन्य चीजें देना एकदम सहज नहीं था। इससे उनकी आगे की यात्रा पर भी प्रतिकूल असर होनेवाला था। सो उन्होने श्री रामकृष्णदेव से कहा ''बाबा यहां अकाल पडा है। सब तरफ यही हालात है। किसे किसे खाना दोंगे।हमारे पास न तो अनाज है न ही कंबल। हम नियोजन कर के भ्विष्य में यह सत्कार्य करेंगे। फिलहाल हम अपनी आगे की यात्रा पर ध्यान दें।'' लेकिन नहीं। करूणामय श्री रामकृष्ण तो साक्षात नारायण को ही उन नरदेह में देख रहे थे। वे आगे कैसे बढते। बस झटसे उन गरीब लोगो के समूह में शामिल हो गये। उनके साथ जमकर बैठ गये और बोले ''जब तक इन नर नारायणों की सेवा नहीं करोगे तब तक मैं यहां से हिलूंगा नहीं। श्री रामकृष्णदेव के मुखपर असीम करूणा का तेज उभर आया मानो करूणाने साक्षात नरदेह धारण कर लिया हो। उनकी वाणी मृदु नयन अश्रुपूर्ण और हृदय विशाल हो गया था। उन गरिबो में और अपने आप में अब उन्हें कोई भेद जान नहीं पडता था। अद्वैत वेदान्त की उच्चतम अवस्था में वे सर्वभूतो से एकरूप हो गये थे। अब मथुरबाबू के पास उस महापुरूष की आज्ञा का पालन करने सिवाय दूसरा कोई मार्ग नहीं बचा था। वे तत्काल कलकत्ता गये धन और राशन की व्यवस्था की और करूणामय श्री रामकृष्णदेव की इच्छानुसार उन गरीबों की सेवा करने के पश्चात ही उन्होने दम लिया। इस असीम प्रेम से उन गरीबों के चेहरोंपर मुस्कान की एक लहर दौड ग़यी। तब एक नन्हे बालक के भांति खुश होकर श्री रामकृष्णदेव आगे की यात्रा के लिये रवाना हुए।
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14-01-2013, 07:28 PM | #53 |
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Re: महान व्यक्तित्व {Great personality}
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के विषय में कुछ जानकारी जिन लोगों ने देश की स्वतन्त्रता के लिए अपना सर्वस्व यहाँ तक कि प्राण तक न्यौछावर कर दिया, हम लोगों में अधिकतर लोग उनके विषय में, दुर्भाग्य से, बहुत कम जानते हैं। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस भी उन महान सच्चे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों में से एक हैं जिनके बलिदान का इस देश में सही आकलन नहीं हुआ। देखा जाए तो अपनी महान हस्तियों के विषय में न जानने या बहुत कम जानने के पीछे दोष हमारा नहीं बल्कि हमारी शिक्षा का है जिसने हमारे भीतर ऐसा संस्कार ही उत्पन्न नहीं होने दिया कि हम उनके विषय में जानने का कभी प्रयास करें। होश सम्भालने बाद से ही जो हमें "महात्मा गांधी की जय", "चाचा नेहरू जिन्दाबाद" जैसे नारे लगवाए गए हैं उनसे हमारे भीतर गहरे तक पैठ गया है कि देश को स्वतन्त्रता सिर्फ गांधी जी और नेहरू जी के कारण ही मिली। हमारे भीतर की इस भावना ने अन्य सच्चे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों को उनकी अपेक्षा गौण बना कर रख दिया। हमारे समय में तो स्कूल की पाठ्य-पुस्तकों में यदा-कदा "खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी...", "अमर शहीद भगत सिंह" जैसे पाठ होते भी थे किन्तु आज वह भी लुप्त हो गया है। ऐसी शिक्षा से कैसे जगेगी भावना अपने महान हस्तियों के बारे में जानने की? अस्तु। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती था। सुभाष चन्द्र बोस अपनी माता-पिता की 14 सन्तानों में से नौवीं सन्तान थे। जानकीदास बोस को ब्रिटिश सरकार ने रायबहादुर का खिताब दिया था और वे चाहते थे कि उनका पुत्र आई.सी.एस. (आज का आई.ए.एस.) अधिकारी बने, इसलिए पिता का मन रखने के लिए सुभाष चन्द्र बोस सन् 1920 में आई.सी.एस. अधिकारी बने। महज एक साल बाद ही अर्थात् सन् 1921 में वे अंग्रेजों की नौकरी छोड़कर राजनीति में उतर आए। सन् 1938 में सुभाष चन्द्र बोस बोस कांग्रेस के अध्यक्ष हुए। अध्यक्ष पद के लिए गांधी जी ने उन्हें चुना था और कांग्रेस का यह रवैया था कि जिसे गांधी जी चुन लेते थे वह अध्यक्ष बन ही जाता था क्योंकि हमने सुना है कि जो भी अध्यक्ष बनता था वह वास्तव में 'डमी' होता था, असली अध्यक्ष तो स्वयं गांधी जी होते थे और चुने गए अध्यक्ष को उनके ही निर्देशानुसार कार्य करना पड़ता था। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों की कठिनायों को मद्देनजर रखते हुए सुभाष चन्द्र बोस चाहते थे कि स्वतन्त्रता संग्राम को अधिक तीव्र गति से चलाया जाए किन्तु गांधी जी को उनके इस विचार से सहमत नहीं थे। परिणामस्वरूप बोस और गांधी के बीच मतभेद पैदा हो गया और गांधी जी ने उन्हें कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाने के लिए कमर कस लिया। गांधी जी के विरोध के बावजूद भी कांग्रेस के सन् 1939 के चुनाव में सुभाष चन्द्र बोस फिर से चुन कर आ गए। चुनाव में गांधी जी समर्थित पट्टाभि सीतारमैया को 1377 मत मिले जबकि सुभाष चन्द्र बोस को 1580। गांधी जी ने इसे पट्टाभि सीतारमैया की हार न मान कर अपनी हार माना। गांधी जी तथा उनके सहयोगियों के व्यवहार से दुःखी होकर अन्ततः सुभाष चन्द्र बोस ने 29 अप्रैल, 1939 को कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने सुभाषचन्द्र बोस को ग्यारह बार गिरफ्तार किया और अन्त में सन् 1933 में उन्हें देश निकाला दे दिया। 1934 में पिताजी की मृत्यु पर तथा 1936 में काँग्रेस के (लखनऊ) अधिवेशन में भाग लेने के लिए सुभाष चन्द्र बोस दो बार भारत आए, मगर दोनों ही बार ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर वापस देश से बाहर भेज दिया। यूरोप में रहते हुए सुभाषचन्द्र बोस ने सन् 1933 से ’38 तक ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, फ्राँस, जर्मनी, हंगरी, आयरलैण्ड, इटली, पोलैण्ड, रूमानिया, स्वीजरलैण्ड, तुर्की और युगोस्लाविया की यात्राएँ कर के यूरोप की राजनीतिक हलचल का गहन अध्ययन किया और उसके बाद भारत को स्वतन्त्र कराने के उद्देश्य से आजाद हिन्द फौज का गठन किया। नेताजी का नारा था "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा"। 18 अगस्त 1945 को हवाई जहाज से मांचुरिया की ओर जाते हुए व लापता हो गए तथा उसके बाद वे कभी किसी को दिखाई नहीं दिये। नेताजी की मृत्यु (?) आज तक इतिहास का एक रहस्य बना हुआ है?
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28-01-2013, 11:09 AM | #54 |
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Re: महान व्यक्तित्व {Great personality}
These are the really Great Man
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