My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > New India > India & World
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 06-02-2013, 10:02 AM   #1
Awara
Special Member
 
Awara's Avatar
 
Join Date: Dec 2012
Location: फूटपाथ
Posts: 3,861
Rep Power: 23
Awara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to behold
Default चुनावी नारे (Election Slogans)

चुनावी नारें (Election Slogans)

__________________
With the new day comes new strength and new thoughts.
Awara is offline   Reply With Quote
Old 06-02-2013, 10:06 AM   #2
Awara
Special Member
 
Awara's Avatar
 
Join Date: Dec 2012
Location: फूटपाथ
Posts: 3,861
Rep Power: 23
Awara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to behold
Default Re: चुनावी नारें (Election Slogans)

गरीबी हटाओ!

यह चुनावी नारा 1971 में इंदिरा गाँधी ने दिया था। गरीबी तो कभी हटी नहीं लेकिन इंदिरा की सरकार सेण्टर में टिक गयी।

आजादी के बाद दो दशक तक भारतीय राजनीति देश बनाने में लगी रही। 1966 तक आते-आते नेताओं की दूसरी पीढ़ी भी सामने आने लगी। इसके साथ ही चुनौतियां भी। बाद के चालीस सालों में भारतीय राजनीति को कई बड़े मुद्दों ने झकझोरा। इसने समाज पर असर डाला। चुनावों के नतीजे प्रभावित किए। राजनीति की दशा-दिशा बदल डाली। विचारधाराओं की टकराहट तेज हुई। राजनीति के परिदृश्य पर नए खिलाड़ी आए। ‘आओ राजनीति करें’ अभियान के इस चरण में हम उन खास मुद्दों की पड़ताल शुरू कर रहे हैं जिसने भारतीय राजनीति में बड़ा बदलाव किया। सबसे पहले 1971 की बात।

वर्ष 1966 में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद से इंदिरा गांधी कांग्रेस के अंदर जमे मठाधीशों के लगातार निशाने पर थीं। 1967 के आमचुनाव में जब गैर—कांग्रेसवाद के नारे के तले कांग्रेस का जनाधार खिसका तो उनके विरोधियों को नई ताकत मिल गई। 1969 आते-आते घमासान तेज हो गया और कांग्रेस का विभाजन हो गया। पार्टी के अंदर मौजूद अपने शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वियों से निपटने के लिए इंदिरा गांधी के सामने इसके अलावा कोई चारा नहीं था कि वे पार्टी के अंदर और बाहर अपनी एक अलग पहचान बनाएं।


तब उन्होंने समाजवाद की प्रत्यंचा चढ़ाई और एक साथ कई तीर चलाए। राजा—महाराजाओं के प्रीवी पर्स खत्म करना और 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण इनमें प्रमुख थे। 19 जुलाई 1969 की आधी रात ये बैंक सरकारी नियंत्रण में ले आए गए लेकिन प्रीवी पर्स समाप्ति का विधेयक लोकसभा से पारित होकर जब राज्यसभा में गया तो एक वोट से गिर गया। (बाद में 1971 के आम चुनाव के बाद 26वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिए प्रीवी पर्स खत्म किए गए)। इसके बाद इंदिरा गांधी ने डां. लोहिया के ‘गूंगी गुड़िया’ के आवरण से बाहर निकलकर और अपने को एक जनवादी नेता की तरह स्थापित करते हुए बुद्धिजीवियों, विचारकों और प्रगतिशील लोगों के बीच अपनी पैठ बना ली। उन्हें समर्थन दे रहे वामपंथियों ने इस काम में उनकी पूरी मदद की।


दरअसल कांग्रेस विभाजन के बाद 522 सदस्यों की लोकसभा में कांग्रेस के पास 228 सदस्य रह गए थे और उसकी सरकार वामपंथियों के सहारे टिकी थी। इंदिरा गांधी ने तय किया कि वे मध्यावधि चुनाव कराएंगी और लोकसभा भंग कर दी गई। अपने कुछ तेजतर्रार सलाहकारों से मंत्रणा के बाद उन्होंने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा उछाला। बैंकों के राष्ट्रीयकरण और प्रीवी पर्स की समाप्ति की राह पर चलीं इंदिरा गांधी बड़े-बड़ों मसलन निजी क्षेत्र में बैंक चलाने वाले पूंजीपतियों, महलों में रहने वाले सामंतों और पार्टी के अंदर के बूढ़े हो चले बुर्जुआ नेताओं से सीधी टक्कर लेने वाली गरीबों की हमदर्द की तरह पहले ही उभर आईं थीं। इसलिए आम लोगों को ‘गरीबी हटाओ’ के नारे में सच हो सकने वाला एक और सपना सामने दिखने लगा। इंदिरा गांधी ने 1971 के चुनाव में इस नारे को जमकर भुनाया। यही नारा, बड़ा मुद्दा बना गया। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने जनसभाओं में आमजन की हमदर्दी बटोरी, ‘वो कहते हैं इंदिरा हटाओ, हम कहते हैं गरीबी हटाओ’। इंदिरा गांधी के समर्थन में एक और नारा गढ़ा गया— ‘जात पर न पात पर, इंदिरा जी की बात पर मुहर लगेगी हाथ पर’। विरोधियों ने गरीबी हटाओ के नारे के जवाब में नारा दिया: ‘देखो इंदिरा का ये खेल, खा गई राशन, पी गई तेल’।


पांचवीं लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस ने चुनाव में दो—तिहाई सीटें हासिल कर भारी सफलता प्राप्त कर ली। उसने 518 में से 352 सीटों पर विजय पाई और कांग्रेस (संगठन) को केवल 16 और उसके नेतृत्व में बने ‘ग्रैंड एलाइंस’ को कुल 42 सीटें मिल पाईं। इससे ज्यादा 48 सीटें दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों (भाकपा और माकपा) ने मिलकर जीत लीं।

‘गरीबी हटाओ’ उन बिरले नारों में से है, जिसने उसे गढ़ने वाले को चुनाव में इतनी बड़ी सफलता दिलाई। इंदिरा गांधी ने इस नारे पर सवार होकर चुनाव जीतने के चार साल बाद 1975 में एक 20 सूत्रीय कार्यक्रम देश के सामने पेश किया, जिसका मूल लक्ष्य गरीबी पर हमला था। ‘गरीबी हटाओ’ के नारे को अभी दो साल भी नहीं हुए थे कि 1973 में देश भर में बिगड़ते हुए आर्थिक हालात, महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन हुए। लोगों को एक और चुनावी नारे की असलियत सामने दिख गई। आर्थिक मोर्चे पर धीरे-धीरे जो हालात बिगड़े, उसे आपातकाल की ज्यादतियों ने इतना भड़का दिया कि 1977 में इंदिरा गांधी का कोई नारा काम नहीं आया और वे खुद रायबरेली में हार गईं। शायद इसीलिए कहा जाता है कि नारे चुनाव तो जिता सकते हैं लेकिन उस जीत को बरकरार रखने की क्षमता उनमें नहीं होती। इसके लिए विजेताओं को बहुत सारी और कसरत करने की जरूरत होती है। लेकिन अगर गौर किया जाए तो पता लगता है तमाम चुनावी नारे पार्टियों और नेताओं को जिताते-हराते हैं, नेता आगे बढ़ जाते हैं और जनता वहीं खड़ी रह जाती है।


कहा जाता है कि एक चेक दो बार नहीं भुनाया जा सकता। सो जब यही नारा 1989 में राजीव गांधी ने दिया तो सफलता नहीं मिली। अब पूरनपुर (पीलीभीत) में यही नारा इंदिरा जी के पौत्र और राजीव के पुत्र राहुल ने बुलंद किया है। लेकिन जब इसे इंदिरा जी ने उठाया था तो बात दूसरी थी क्योंकि तब तक वे कई और कदम उठाते हुए उस वर्ग से जुड़ चुकी थीं जिसके लिए यह नारा गढ़ा गया था। राजीव ने जब यह नारा उठाया तो वे बोफोर्स तोप के निशाने पर आकर एक कमजोर नेता हो चुके थे। उनके बेटे राहुल में जोश है, गरीबों और दलितों के घर जाकर उन्होंने इंदिरा जी का करिश्मा वापस लाने की कोशिश भी की है, लेकिन जाति व धर्म के भ्रमर में फंसे उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दरबार में उनकी सुनवाई हो पायगी, कोई नहीं जानता।


मानना पड़ेगा इंदिरा गांधी के चार दशक पुराने इस नारे में अब भी गजब की ताजगी है। अब भी नेता जब वोट के लिए हाथ आगे बढ़ाते हैं तो सामने पहले से कटोरा लिए खड़े गरीब को दिलासा दिलाते हैं, कसमें खाते हैं और उसकी झोली भर देने के सुनहरे सपने उसे दिखाते हैं। इंदिरा गांधी के बाद राहुल गांधी भी यही नारा दे रहे हैं और मनमोहन सरकार कई ऐसे ही कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन से जूझ रही है जिनके निशाने पर गरीबी ही है। राजीव गांधी के बाद अब राहुल गांधी भी यही कह रहे हैं कि गरीबों के लिए जो पैसा आवंटित होता है वह उन तक पहुंचता ही नहीं। 20 फीसदी पहुंचता है या 15 फीसदी। इस बारे में अलग राय हो सकती है। बाकी बात वही रहती है।
__________________
With the new day comes new strength and new thoughts.
Awara is offline   Reply With Quote
Old 06-02-2013, 10:07 AM   #3
Awara
Special Member
 
Awara's Avatar
 
Join Date: Dec 2012
Location: फूटपाथ
Posts: 3,861
Rep Power: 23
Awara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to behold
Default Re: चुनावी नारें (Election Slogans)

इशारों में बात कहतीं
इंदिरा गांधी अच्छी तरह जानती थीं कि पार्टी के अंदर के विरोधियों पर जो फतह पाई है, वह स्थाई रूप तभी ले पाएगी जब वह प्रधानमंत्री के रूप में 1971 के अपने दूसरे चुनाव में कोई धमाका करके दिखाएं। ‘गरीबी हटाओ’ का नारा फिर भी बहुत कारगर साबित न हो पाता यदि चुनाव-प्रचार का उनका अपना करिश्माई अंदाज उसके साथ जुड़ा न होता। वह जहां जातीं, वहां का सांस्कृतिक परिवेश उनके जहन में रहता। प्रदेश के 1969 के विधानसभा चुनाव में वे मेरे कस्बे-मऊरानीपुर में चुनाव सभा में आईं। मेरी मां की जिद थी तो मैं उन्हें चुनाव सभा में ले गया। वहां से वापस आने पर मां सबको यह बता रही थीं कि इंदिरा जी किस तरह से अपना सिर ढंके थीं और पूरी बाहों का ब्लाउज पहने थीं, बार-बार पल्लू ले लेती थीं। श्रीमती गांधी चुनाव प्रचार के दौरान विपक्षी दलों या नेताओं का नाम बहुत कम ही लेती थीं। ऐसे इशारों में बात कहतीं कि सब समझ जाते थे। मैं यह कहती हूं ‘गरीबी हटाओ और ये कहते हैं कि इंदिरा हटाओ’ जब वे यह बोलतीं तो सामने बैठे कम पढ़े लोग भी समझ जाते थे कि इशारा किस ओर है।

ज्ञानेन्द्र शर्मा

एक शख्स का करिश्मा

‘गरीबी हटाओ एक प्रेरणादायी नारा था। इसने कांग्रेस (आर) को सबसे अलग खड़ा कर दिया। इसने अपनी छवि प्रतिक्रियावादी गठबंधन के खिलाफ एक प्रगतिशील पार्टी के रूप में पेश की। विपक्ष के लिए चुनाव को व्यक्ति केन्द्रित बनाना भारी पड़ गया। .. श्रीमती गांधी ने अपनी पार्टी को वोट दिलाने के लिए दिन-रात मेहनत की। दिसम्बर 1970 के आखिरी हफ्ते में संसद भंग होने और दस हफ्ते बाद हुए चुनाव के बीच, इंदिरा गांधी ने लगभग 58 हजार किलोमीटर का दौरा किया। उन्होंने 300 सभाओं को सम्बोधित किया। लगभग दो करोड़ लोगों ने उन्हें देखा और सुना। .. उनकी यात्राओं ने उन्हें लोगों के बीच पहचान बनाने में बड़ी मदद की। वोट मांगने के लिए उन्होंने अपने ‘आकर्षक व्यक्तित्व’, अपने पिता की ‘ऐतिहासिक भूमिका’ और सबसे अहम ‘गरीबी हटाओ’ नारे का सहारा लिया। भूमिहीन और दलित जातियों ने बड़ी तादाद में उन्हें वोट दिया। पिछले चुनाव की तरह इस बार मुसलमान पीछे नहीं रहे। .. विजेता और पराजित दोनों इस बात पर सहमत थे कि चुनाव में जबरदस्त कामयाबी का यह काम मुख्यत: एक शख्स का करिश्मा है।..’

रामचन्द्र गुहा की पुस्तक ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ से


‘गरीबों को आमतौर पर कहीं नुमाइंदगी हासिल नहीं थी। प्रधानमंत्री (इंदिरा गांधी) ने इस लोकलुभावनवाद को अभूतपूर्व ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। उन्होंने रजवाड़ों की लगभग भुलाई जा चुकी याद को कुछ इस तर्ज पर ताजा किया कि वे देश की समस्याओं के लिए एक हद तक जिम्मेदार लगने लगे। इसी पैंतरे के आधार पर उनके प्रीवी पर्स समाप्त कर दिए गए, यद्यपि संविधान में उन्हें इसका आश्वासन मिला हुआ था। (नेहरू में रजवाड़ों के प्रति कोई हमदर्दी नहीं थी लेकिन उन्होंने संवैधानिक उसूलों के खिलाफ जाने के संसदीय दबाव को मानने से इंकार कर दिया था।) बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया, जिससे सरकार को सस्ती दरों पर धन का स्नोत मिल गया। इसके बाद बीमा, कोयला उद्योग और ‘बीमार’ उद्यमों (खासकर सूती वस्त्र उद्योग) का अधिग्रहण हुआ। वैज्ञानिकों और वामपंथियों के बुद्धिजीवी वर्ग ने इन कदमों को हाथों-हाथ लिया। .. लेकिन, स्वयं श्रीमती अपने कदमों के बारे में अलग ढंग से सोचती थीं। एक पत्रकार के सामने उन्होंने साफ तौर पर माना कि वे समाजवाद के बारे में इसलिए बोलती हैं कि लोग यही सुनना चाहते हैं। .. इसके बावजूद वे समाजवादी नारों का भजन की तरह उच्चरण करती रहीं, उन्होंने अनाप-शनाप वादे कर डाले..’

सुनील खिलनानी की पुस्तक ‘भारतनामा’ से राजा का ताज भी छीना

1951 के पहले आम चुनाव से अजेय बने रहे टिहरी रियासत के पूर्व महाराजा मानवेन्द्र शाह ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के सामने टिक न सके। उन्हें कांग्रेस के परिपूर्णानन्द पैन्यूली ने बुरी तरह परास्त किया। पैन्यूली को कुल 55.74 प्रतिशत वोट मिले जबकि राजा केवल 22.06 प्रतिशत वोट ही पा सके। आज के उत्तराखण्ड की शेष चारों लोकसभा सीटों पर भी कांग्रेस उम्मीदवार जीते। गढ़वाल से प्रताप सिंह, अल्मोड़ा से नरेन्द्र सिंह, नैनीताल से कृष्णचन्द्र पंत और देहरादून सीट से कांग्रेस उम्मीदवार मुल्कीराज जीते। 71 के चुनावों की खास बात रही कि कांग्रेस सभी सीटों पर बड़े अंतर से जीती।


गरीबी घटी, गरीब नहीं

1971 में गरीबी की दर 57 प्रतिशत थी। इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा देकर कई योजनाएं शुरू की। 1973 में श्रीमान कृषक एवं खेतिहर मजदूर एजेन्सी व लघु कृषक विकास एजेन्सी तथा 1975 में गरीबी उन्मूलन के लिए बीस सूत्रीय कार्यक्रम लागू किए। जो गांव के लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए और गरीबी कम करने के लिए प्रभावशाली साबित हुए। 1977 में गरीबी दर 52 प्रतिशत और 1983 में 44 प्रतिशत हो गई। इसके बाद यह 1987 में 38.9 फीसदी तक आ गई। नब्बे के दशक में सुशासन की कमी, वैश्वीकरण और खाद्यन्न की कीमतों में कमी न होने के कारण गरीबों को अधिक लाभ नहीं मिला। मौजूदा समय में गरीबी की दर 27.5 फीसदी जरूर है लेकिन संख्या में कमी नहीं आई है। अनुपात घटा मगर गरीब लोग बढ़ गए। यूपी में गरीबी का आंकड़ा केन्द्र से अधिक ही रहा है। यहां 1971 में गरीबी की दर 65 फीसदी थी। इस समय यह 32.8 प्रतिशत है। आज भी विश्व के आठ प्रतिशत गरीब यहीं रहते हैं।

आजादी के बाद कांग्रेस को 1967 में पहली बार गंभीर चुनौतियों से जूझना पड़ा। एक ओर जहां विपक्षी पार्टियों ने संयुक्त विधायक दल के बैनर तले हिंदी पट्टी के कई राज्यों में जीत हासिल कर ली वहीं कांग्रेस के अंदर कलह भी चरम पर थी। इंदिरा गांधी तब प्रधानमंत्री थीं। कांग्रेस के अधिकतर कद्दावर नेता इंदिरा गांधी के खिलाफ थे। ऐसे में 1969 में इंदिरा गांधी ने अलग कांग्रेस पार्टी का गठन कर लिया। शुरुआत में इसे कांग्रेस (आर) का नाम दिया गया। (आर) यानी रिक्वीजिशन जिसे बाद में रूलिंग कांग्रेस के रूप में देखा गया। जल्द नई कांग्रेस के नाम से जाना लगा। आगे चलकर कांग्रेस (आई) यानी कांग्रेस (इंदिरा) के नाम से यह पार्टी लोकप्रिय हुई। दूसरी ओर, आधिकारिक कांग्रेस पार्टी कांग्रेस (संगठन) या पुरानी कांग्रेस के नाम से जानी गई। विरोधियों ने इसे कांग्रेस (सिंडिकेट) का नाम दिया। के. कामराज इसके प्रमुख नेता थे। बाद में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को ही चुनाव आयोग ने वास्तविक कांग्रेस की मान्यता दे दी। आगे चलकर कांग्रेस (संगठन) का जनता पार्टी में विलय हो गया।


क्या था प्रीवी पर्स

प्रीवी पर्स एक तरह का भुगतान था जो सरकार रियासतों को भारत में विलय के बदले में सालाना देती थी। आजादी से पहले देश में 565 छोटी-बड़ी रियासतें थीं। भुगतान राशि रियासत से मिलने वाले राजस्व पर तय होती थी। विभिन्न रियासतों को पांच हजार से लेकर लाखों रुपए तक हर साल दिया जाता था। हैदराबाद, मैसूर, त्रवनकोर, जयपुर और पटियाला ऐसी रियासतें थीं, जिन्हें दस लाख रुपए से ज्यादा दिया जाता था। हैदराबाद को कुछ साल करीब 42 लाख रुपया दिया गया। बाद में इसे 20 लाख कर दिया गया।


कैसे खत्म हुआ: देश में समानता का अधिकार लाने के लिए इसे खत्म करने की मांग उठी। इसे खत्म करने में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अहम भूमिका रही। 1969 में संसद में प्रस्ताव लाया गया, पर एक वोट से गिर गया। फिर 1971 में 26वें संविधान संशोधन से इसे खत्म किया गया।
__________________
With the new day comes new strength and new thoughts.
Awara is offline   Reply With Quote
Old 06-02-2013, 10:17 AM   #4
Awara
Special Member
 
Awara's Avatar
 
Join Date: Dec 2012
Location: फूटपाथ
Posts: 3,861
Rep Power: 23
Awara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to behold
Default Re: चुनावी नारें (Election Slogans)

1977 में जनता पार्टी ने यह नारें दिए थे
  • इंदिरा हटाओ देश बचाओ। (इंदिरा तो हट गयी लेकिन देश वैसा ही रहा।)
  • सम्पूर्ण क्रान्ति (कोई क्रान्ति व्रांति नहीं आई, उस आन्दोलन के कई प्रोडक्ट लालू, मुलायम आदि ने पार्टी बनाई और अब उसे फॅमिली बिज़नस की तरह चला रहे हैं )
__________________
With the new day comes new strength and new thoughts.
Awara is offline   Reply With Quote
Old 06-02-2013, 10:22 AM   #5
Awara
Special Member
 
Awara's Avatar
 
Join Date: Dec 2012
Location: फूटपाथ
Posts: 3,861
Rep Power: 23
Awara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to behold
Default Re: चुनावी नारें (Election Slogans)

एक और नारा 1996 के आम चुनाव में आया था

सबको देखा बारी बारी अबकी बारी अटल बिहारी
__________________
With the new day comes new strength and new thoughts.
Awara is offline   Reply With Quote
Old 06-02-2013, 10:23 AM   #6
Awara
Special Member
 
Awara's Avatar
 
Join Date: Dec 2012
Location: फूटपाथ
Posts: 3,861
Rep Power: 23
Awara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to behold
Default Re: चुनावी नारें (Election Slogans)

जंग असली हो या चुनावी, नारों की अहमियत हमेशा बरकरार रहती है। नारे ही पार्टियों के चुनाव अभियान में दम और कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम करते हैं। हर पार्टी एक ऐसा नारा अपने लिए चाहती है जिससे वह वोटरों को लुभा सके।

उन्हीं में से कुछ नारे ऐसे निकल आते हैं, जो कई साल तक लोगों की जुबान पर चढे रह जाते हैं। इस बार स्लमडॉग... के ऑस्करी गाने जय हो का पट्टा कांग्रेस को मिल गया है, जो बीजेपी ने इसके मुकाबले फिर भी जय हो और भय हो जैसे नारे उतारे हैं।

पिछली बार भारत उदय की वजह से भाजपा अस्त हो गई थी और इंडिया शाइनिंग ने एनडीए की चमक उतार दी थी।

साठ के दशक में लोहिया ने समाजवादियों को नारा दिया था, सोशलिस्टों ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ.। ये महज नारा नहीं था बल्कि लोहिया की पूरी विचारधारा की ज़मीन थी। उस दौर में जनसंघ ने अपने चुनाव चिह्न दीपक और कांग्रेस ने अपने दौ बैलों की जौड़ी के ज़रिए एक दूसरे पर खूब निशाना साधा था।

जली झोंपडी़ भागे बैल,यह देखो दीपक का खेल

इसके मुकाबले कांग्रेस का नारा था-

इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं

उसी तरह कांग्रेस का गरीबी हटाओं नारा भी खूब चर्चित रहा और भारतीय अर्थव्यवस्था और समाज की एक ज़रुरत ने वोटरों पर खासा असर डाला। उसी दौरान रायबरेली से इंदिरा को हराने में भी नारों की अहम भूमिका रही। हालांकि चिकमंगलूर से उपचुनाव भी उन्होंने नारो के रथ पर ही जीता। एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर, चिकमंगलूर । इसी तरह 1980 के चुनाव में कई दिलचस्प नारे गढ़े गए। इनमें इंदिरा जी की बात पर मुहर लगेगी हाथ पर, तो कई लोगो की जुबान पर आज भी है।

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिराजी तेरा नाम रहेगा, जैसे नारे ने पूरे देश में सहानुभूति लहर पैदा की, और कांग्रेस को बड़ी भारी जीत हासिल हुई।

1989 में बीजेपी ने राम मंदिर से जुड़े नारे भुनाए, सौगंध राम की खाते हैं हम मंदिर वहीं बनाएंगे, और बाबरी ध्वंस के बाद ये तो पहली झांकी है, काशी मथुरा बाकी है (हालांकि ये चुनावी नारा नहीं था) तो वीपी सिंह को नारों में फकीर और देश की तकदीर बनाने वाला बताया गया। लेकिन कांग्रेस ने उन्हे रंक और देश का कलंक भी बताया था। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद राजीव तेरा .ये बलिदान याद करेगा हिंदुस्तान सामने आया। और इसका असर भी वोटिंग पर देखा गया।

1998 में अबकी बारी अटल बिहारी बीजेपी को खूब भाया और उसने इसका खूब इस्तेमाल भी किया। यूपी में पिछले विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने अगड़े वोट लुभाने के लिए हाथी की तुलना भगवान गणेश से कर दी थी तो समाजवादी पार्टी ने जिसने कभी न झुकना सीखा उसका नाम मुलायम है से मुलायम को खूब हौसला दिया था।
__________________
With the new day comes new strength and new thoughts.
Awara is offline   Reply With Quote
Old 06-02-2013, 10:24 AM   #7
Awara
Special Member
 
Awara's Avatar
 
Join Date: Dec 2012
Location: फूटपाथ
Posts: 3,861
Rep Power: 23
Awara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to beholdAwara is a splendid one to behold
Default Re: चुनावी नारें (Election Slogans)

15 लोकप्रिय नारे --

1-इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं
2- जली झोंपडी़ भागे बैल,यह देखो दीपक का खेल
3- गरीबी हटाओ
4- संजय की मम्मी बड़ी निकम्मी
5- बेटा कार बनाता है, मां बेकार बनाती है
6- एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर चिकमंगलूर
7- स्वर्ग से नेहरू रहे पुकार, अबकी बिटिया जहियो हार
8- इंदिरा लाओ देश बचाओ
9- आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को लाएंगे
10-इंदिरा जी की बात पर मुहर लगेगी हाथ पर
11- सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे
12- जिसने कभी न झुकना सीखा, उसका नाम मुलायम है
13- राजीव तेरा यह बलिदान याद करेगा हिंदुस्तान
14- अबकी बारी अटल बिहारी
15- जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिराजी तेरा नाम रहेगा
16- सोशलिस्टों ने बांधी गांठ पिछड़े पावैं सो में साठ
__________________
With the new day comes new strength and new thoughts.
Awara is offline   Reply With Quote
Old 07-02-2013, 05:46 PM   #8
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default Re: चुनावी नारें (Election Slogans)

Quote:
Originally Posted by Awara View Post
15 लोकप्रिय नारे --

1-इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं
2- जली झोंपडी़ भागे बैल,यह देखो दीपक का खेल
3- गरीबी हटाओ
4- संजय की मम्मी बड़ी निकम्मी
5- बेटा कार बनाता है, मां बेकार बनाती है
6- एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर चिकमंगलूर
7- स्वर्ग से नेहरू रहे पुकार, अबकी बिटिया जहियो हार
8- इंदिरा लाओ देश बचाओ
9- आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को लाएंगे
10-इंदिरा जी की बात पर मुहर लगेगी हाथ पर
11- सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे
12- जिसने कभी न झुकना सीखा, उसका नाम मुलायम है
13- राजीव तेरा यह बलिदान याद करेगा हिंदुस्तान
14- अबकी बारी अटल बिहारी
15- जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिराजी तेरा नाम रहेगा
16- सोशलिस्टों ने बांधी गांठ पिछड़े पावैं सो में साठ


बहुत अच्छे, आवारा जी. आपको याद होगा कि सन् 1989 के चुनावों के दरम्यान एककार्टून युद्ध शुरू हो गया था. राजेन्द्र द्वारा बनाए गए मूल कार्टून कांग्रेसपार्टी द्वारा अनेक अंग्रेजी समाचार पत्रों में प्रतिदिन प्रकाशित करवाया जाता थाऔर अगले ही दिन उसी कार्टून में कुछ रेखांकन या डायलॉग में फेरबदल किया हुआ जवाबीकार्टून विरोधी दलों द्वारा छपवाया जाता था. बहरहाल, इनके कुछ नारे / वाक्य इसप्रकार हैं:
1. My heart beats for India:
And I won't let jhagda dals have a party at its cost:
Give India a hand. Vote CCong (I).
(here the graphic shows a throne flanked by two warring lions on either side)
2. गालों पे जो लाली है, बोफोर की दलाली है.
3. कांग्रेस (I) धोका है, मरो धक्का मौका है.
4. मेरा भारत महान, और प्रधानमंत्री बेईमान.
5. ये हाथ नहीं हथोड़ा है, जिसने देश को तोड़ा है.
6. सास, ननद, देवरानी, जेठानी,
सब का ये समझा दयियों,
पंजा में मोहर लगा दयियों.
7. तख़्त बदल दो ताज बदल दो,
तोप दलालों का राज बदल दो.
8. न बिल्ला है न परचा है,
बस वी.पी.सिंह का चर्चा है.
9. स्वर्ग से नेहरु करे पुकार,
नाती अब तू जाएगा हार.
10. हम कहते हैं -- सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा,
वो कहते हैं --- हिन्दुस्तान से अच्छा इटली, स्विटज़रलैंडहमारा.
rajnish manga is offline   Reply With Quote
Old 07-02-2013, 08:40 PM   #9
Dark Saint Alaick
Super Moderator
 
Dark Saint Alaick's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 183
Dark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond reputeDark Saint Alaick has a reputation beyond repute
Default Re: चुनावी नारे (Election Slogans)

इस सूत्र को देख कर मैं आपका मुरीद हुआ आवारा जी। आप ऐसे सूत्र बनाते हैं, जो और कहीं हासिल नहीं हैं। क्या कहूं ... ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं।
दो बहुत ही प्रचलित नारे आप भूल गए - 'india is indira, indira is india' और 'गली-गली में शोर है ... चोर है'
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
Dark Saint Alaick is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks

Tags
election slogans


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 03:38 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.