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14-04-2013, 08:51 PM | #1 |
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Re: 'मछलीमार' - कहानी - प्रत्यक्षा
-आज एक कम से कम तीन किलो का रोहू फँसा ही लें। बुढ़िया भी कुछ सोचेगी।
डीजे हँस पड़ा था। मैं चौंक गया था। शायद मैंने पहली बार उसे हँसते सुना था। मैंने भी जवाबी हँसी हँसी थी। हमने एक साथ ग्लास ख़त्म किया। शराब की अंतिम घूँट को अंतिम बूँद तक पिया। नसों से होकर दिमाग तक एक सुकून तारी हो गया। मैंने पूरी एकाग्रता से बंसी में चारा फँसाया, फिर ध्यान देकर उसे पानी में फेंका। किसी जंगली फूल की महक से हवा बोझिल थी। पानी में कोई कीड़ा अचानक अपना राग टि टि टि टि गाने लगा था। हल्की हवा में पत्तियाँ सरसरा रही थीं। मेरी उँगलियाँ शांत शिथिल पड गईं। मैंने मुड़ कर देखा, डीजे हल्की खर्राटें लेने लगा था। उसका मुँह खुला था। मेरी इच्छा हुई उसकी कलाईयों के निशान को एक बार सहलाऊँ, उसे छाती से, गले से, एक बार लगा कर मेरे भाई, मेरे यार बोलूँ। मेरी इच्छा हुई कि एक बार मैं उस बूढ़े की तरह एक दस किलो की रोहू मछली पकडूँ, और एक बार, सिर्फ़ एक बार बूढ़ी का पकाया इस पोखर की मछली, सरसों के हरहर रस्से में, नीबू और धनिया पत्ती के सुगंध से सराबोर, बासमती चावल में, उँगलियों से ये चावल के महीन दानों को सानने का सुख लूँ और फिर भर ग्रास मुँह में स्वाद लूँ। मेरी जीभ चटपटा गई। पर मैंने ऐसा कुछ नहीं किया, ऐसा कुछ नहीं किया। मैंने बस बंसी को एक बार पानी से निकाला और एकाग्रता से पानी में देखते रहने के बाद पूरे विश्वास से दोबारा बंसी को पानी में डाल दिया। आज मुझे कम से कम एक तीन किलो की रोहू मछली फँसानी ही थी।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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