My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > New India > Religious Forum
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 11-12-2010, 07:34 PM   #41
amit_tiwari
Special Member
 
amit_tiwari's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Posts: 1,519
Rep Power: 22
amit_tiwari is a splendid one to beholdamit_tiwari is a splendid one to beholdamit_tiwari is a splendid one to beholdamit_tiwari is a splendid one to beholdamit_tiwari is a splendid one to beholdamit_tiwari is a splendid one to behold
Default Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???

Quote:
Originally Posted by kuram View Post
गीता पढ़ते पढ़ते कृष्ण की एक बात आगे आयी - "धर्म क्या है और अधर्म क्या है इस विषय में पंडित लोग भी भ्रमित हो जाते है तो मनुष्य को चाहिए की सोच विचारकर धर्म और अधर्म का निर्णय करे" अब इससे आगे बेचारा क्या कहेगा. लेकिन हंसी तो तब आयी जब अध्याय ख़त्म होते ही उस अध्याय के पीछे उसका महात्म्य था जिसमे एक तोते को विष्णु भगवान् के दूतो ने यमदूतो से खाली इसलिए छीन लिया क्योंकि उसने सात आठ बार एक ऋषि के आश्रम में यह अध्याय सुना था. और तोते को वैकुण्ठ मिल गया.
हाहाहा आपकी बात सही है बन्धु | इसका असल कारण यह है की बाद के कालों में हर पुस्तक में काफी सारे अध्याय जोड़ के ऐसी जाने कितनी कहानियाँ जोड़ दी गयीं हैं | जैसे उदाहरण के लिए ऋग्वेद का ही दूसरा और दसवां अध्याय बाद के काल में लिखे गए | तो ये कुछ अवशिष्ट बाद के काल में आ अवश्य गए किन्तु इन्हें सहज बुद्धि से पढ़ कर आराम से अलग किया जा सकता है |

वैसे मुझे पता है की आप यहाँ अधिक लम्बा लेख नहीं लिख सकते, व्यावसायिक मजबूरियां हैं किन्तु एक सारगर्भित लेख की आशा अवश्य है आपसे बन्धु |
amit_tiwari is offline   Reply With Quote
Old 13-12-2010, 05:51 PM   #42
kuram
Member
 
kuram's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Posts: 168
Rep Power: 15
kuram will become famous soon enoughkuram will become famous soon enough
Default Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???

Quote:
Originally Posted by amit_tiwari View Post
हाहाहा आपकी बात सही है बन्धु | इसका असल कारण यह है की बाद के कालों में हर पुस्तक में काफी सारे अध्याय जोड़ के ऐसी जाने कितनी कहानियाँ जोड़ दी गयीं हैं | जैसे उदाहरण के लिए ऋग्वेद का ही दूसरा और दसवां अध्याय बाद के काल में लिखे गए | तो ये कुछ अवशिष्ट बाद के काल में आ अवश्य गए किन्तु इन्हें सहज बुद्धि से पढ़ कर आराम से अलग किया जा सकता है |

वैसे मुझे पता है की आप यहाँ अधिक लम्बा लेख नहीं लिख सकते, व्यावसायिक मजबूरियां हैं किन्तु एक सारगर्भित लेख की आशा अवश्य है आपसे बन्धु |
अमित कोई पेशेवर लेखक या फिर फिलोसपर तो नहीं हूँ हाँ धर्म में रुचि है और इसलिए हर दिन दो चार घंटे चलते चलते या बैठा बैठा सोचता रहता हूँ.
क्या है हम - अकेले डर लगता है इसलिए संगठन बनाते है धर्म भी संगठन ही है डर के चलते और अपनी श्रेष्ठता के अहंकार में अपने धर्म को श्रेष्ट और विकार रहित मानते है. ज्यादा से ज्यादा संख्या बढ़ाना चाहते है. लेकिन खुद हमने न इश्वर को पाया है और न दुसरे को पाने में मदद कर सकते. मजे की बात तो ये है की संख्या बढ़ाकर भी हम फिर से कम होकर अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने में लग जाते है यानी अकेले भी नहीं रह सकते और सबके साथ भी गुम नहीं होना चाहते. भीड़ या संगठन या धर्म में भी अपनी पहचान या श्रेष्ठता भी साबित करना चाहते है. अनेक पंथ और अनेक देव का यह भी एक कारण है. ठीक यही बात जातियों में है. बात जब वृहद् स्तर पे है तो ब्राहमण बड़ा है बात जब केवल ब्रह्मण के स्तर पे है तो ब्रह्मण में एक विशेष गौत्र श्रेष्ठ है और बात जब एक गौत्र की है तो उसमे भी एक विशेष उप गौत्र श्रेष्ठ है और बात जब उस विशेष उप गौत्र की है तो उसमे खाली इस क्षेत्र में रहने वाला श्रेष्ठ है. यानी दुनिया में भारत श्रेष्ठ है भारत में मेरा राज्य और मेरे राज्य में मेरा शहर और मेरे शहर में मेरा घर और मेरे घर में में.
kuram is offline   Reply With Quote
Old 14-12-2010, 11:57 AM   #43
arvind
Banned
 
Join Date: Nov 2010
Location: राँची, झारखण्ड
Posts: 3,682
Rep Power: 0
arvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant future
Default Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???

Quote:
Originally Posted by kuram View Post
अमित कोई पेशेवर लेखक या फिर फिलोसपर तो नहीं हूँ हाँ धर्म में रुचि है और इसलिए हर दिन दो चार घंटे चलते चलते या बैठा बैठा सोचता रहता हूँ.
क्या है हम - अकेले डर लगता है इसलिए संगठन बनाते है धर्म भी संगठन ही है डर के चलते और अपनी श्रेष्ठता के अहंकार में अपने धर्म को श्रेष्ट और विकार रहित मानते है. ज्यादा से ज्यादा संख्या बढ़ाना चाहते है. लेकिन खुद हमने न इश्वर को पाया है और न दुसरे को पाने में मदद कर सकते. मजे की बात तो ये है की संख्या बढ़ाकर भी हम फिर से कम होकर अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने में लग जाते है यानी अकेले भी नहीं रह सकते और सबके साथ भी गुम नहीं होना चाहते. भीड़ या संगठन या धर्म में भी अपनी पहचान या श्रेष्ठता भी साबित करना चाहते है. अनेक पंथ और अनेक देव का यह भी एक कारण है. ठीक यही बात जातियों में है. बात जब वृहद् स्तर पे है तो ब्राहमण बड़ा है बात जब केवल ब्रह्मण के स्तर पे है तो ब्रह्मण में एक विशेष गौत्र श्रेष्ठ है और बात जब एक गौत्र की है तो उसमे भी एक विशेष उप गौत्र श्रेष्ठ है और बात जब उस विशेष उप गौत्र की है तो उसमे खाली इस क्षेत्र में रहने वाला श्रेष्ठ है. यानी दुनिया में भारत श्रेष्ठ है भारत में मेरा राज्य और मेरे राज्य में मेरा शहर और मेरे शहर में मेरा घर और मेरे घर में में.
कुरम गुरु..... सही फरमाया है आपने।
श्रेष्ठ होने का दंभ भरना मानव की सबसे बड़ी कमजोरी है। मेरा तो मानना है की मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं है। अगर मानवता इंसान को इंसान से जोड़ती है तो धर्म या पंथ इसे तोड़ती है। एक आदम जात ही ऐसी जीव है जो धर्म, पंथ या जात के नाम पर भेदभाव, अत्याचार और खून खराबा करती है, बाकी किस अन्य जीव मे आपको यह प्रवृति देखने को नहीं मिलेगा। और अगर हम यह मान भी ले की भगवान या ईश्वर है, तो आप खुद ही सोचिए, क्या उसे धर्म का यह रूप पसंद होगा?
arvind is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 08:16 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.