27-06-2013, 11:09 PM | #1 |
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कहानी / जबरदस्त या जबरदस्ती
नई बेताल कथा (लेखक: गिरीश पंकज) विक्रमादित्य फिर दौड़ा। और वेताल को कंधे पर लाद कर महल की ओर चल पडा। वेताल हँस रहा था। फुसफुसाए जा रहा था- ''लगे रहो मुन्ना भाई... करते रहो ख़ाली-पीली कोशिश । आख़िर वही होगा, जो मंजूरे वेताल होगा। मैं फिर छूमंतर हो जाऊँगा''। विक्रमार्क को गुस्सा तो इतना आ रहा था, कि वेताल के टुकडे-टुकडे कर दे, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। चुपचाप चलता रहा। कुछ दूर चलने के बाद वेताल फिर हँसा और बोला-''राजन, तुम जैसा जिद्दी आदमी तो मैं दुनिया में कहीं नहीं देखा। हद कर दी आपने। लोग टूट जाते है, मगर आपने न हारने का संकल्प ले लिया है। जय हो आपकी। मैं आपको नमन करता हूँ।''.. विक्रमार्क ख़ामोशी के साथ चला जा रहा था। लेकिन वेताल के मुँह मे जैसे खुजली थी। कुछ न कुछ बोलना ही था उसे। वह शुरू हो गया- ''राजन, फ़ोकट में मनोरंजन करना मेरा धर्म है। एक कहानी सुनो. हे...हे...हे...तुम भी क्या याद करोगे।'' विक्रमार्क ख़ामोश था। वेताल ने कहानी शुरू की, '' हे राजन, उठापटकपुर में दो कवि रहा करते थे। एक ''ज़बरदस्त'' का कवि था, और एक ''ज़बरदस्ती'' कवि था। ज़बरदस्त कवि का नाम था, ''दयाराम'' और ज़बरदस्ती कवि का नाम था। धनीराम। दयाराम समाज के दुखदर्द को देख कर कविता करता था और धनीराम को किसी के दुःख दर्द से कोई मतलब नहीं था। वह घोड़े-गधे पर कविताए लिखता था। जानवरों पर, झाड-झंखाड़ पर पहाड़ पर, नदी पर। एक दिन दोनों कवि एक जगह मिल गए। धनीराम ने उसे घूर कर देखा और बोला, तुम्हारे बारे में बहुत सुन रखा है। लोग कहते है, तुम बड़े भारी कवि हो। का लिखते हो, तनिक सुनाओ तो। दयाराम मुस्करा दिया।बोला, ''बस, ऐसे ही, कुछ लिखने की कोशिश करता हूँ। आपके जैसा महाकवि नहीं हूँ।'' 'फिर भी कुछ सुनाओ तो'' धनीराम ने दयाराम के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ''डरो मत, मै भी कवि हूँ।'' दयाराम ने अपनी कविता सुनाई- “कब तक दुनिया में मनुष्य पर अत्याचार रहेगा। करुणा मन में जागेगी और हरपल प्यार बहेगा। शोषण अत्याचार मिटने आगे आओ रे, सोने वाले इस समाज को आज जगाओ रे...'' |
27-06-2013, 11:10 PM | #2 |
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Re: कहानी / जबरदस्त या जबरदस्ती
धनीराम कविता सुनकर हँस पडा-ये क्या कविता है? मान की समस्याएं है। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम लोगों को और परेशान करो। अरे, समाज दुखी है तो उसका मनोरंजन करना चाहिए। यही सच्चा साहित्य है। देखो मेरी कविता। मज़ा आयेगा। सुनो-
घोड़ा देखो समझदार है सरपट भाग रहा है। और गधे को देखो कब से घर में जाग रहा है। भौक रहा है कुत्ता मोटा, बिल्ली करती म्याऊँ, दिखा अगर चूहा तो बोली- खाऊँ, खाऊँ, खाऊँ।। हे-हे , देखा, कैसी है कविता? ये है कविता। कितने अर्थ खोल रही है। मनोरंजन भी कर रही है।'' दयाराम चिढ़ कर बोला- ''कौन-सा अर्थ खोल रही है।।?'' ''नहीं समझे? धनीराम हँसा- ''अर्थ यह है, कि घोडा मेहनतकश आदमी है। गधा कोई सेठ है। मै भयंकर कवि है। मेरी कविता को समझना आसान नहीं। यही तरीक़ा होता है कविता लिखने का। देख लेनाएक दिन मै राजकवि बनूँगा। बहुत बड़ा पुरस्कार हथियऊँगा''.. ''हथियाऊँगा ...? मतलब, तुमको पुरस्कार मिलेगा नहीं, तुम हथियाओगे..?'' दयाराम बोला, ''बाप रे, सचमुच, तुम बड़े कवि हो मैं तुमको नमन करता हूँ। कहाँ है तुम्हारे चरण?।'' धनीराम दयाराम का व्यंग्य समझ नहीं पाया और हँसते हुए बोला- ''हे...हे...हे.. तुम भी यार '' कुछ देर चुप रहने के बाद धनीराम बोला, ''तुम जो कविता लिखते हो, उससे राजा नाराज़ हो जाएगा। ये क्या कविता है, कि कब तक दुनिया में मनुष्य पर अत्याचार रहेगा। करुणा मन में जागेगी और हरपल प्यार बहेगा।'' या फिर अन्याय हटाओ, आगे आओ।'' लगता है तुम राजदरबार से लाभ नहीं लेनाचाहते। अरे, सही कविता वही है, जो सत्ता को गदगद कर दे। लोगों को हँसाओ, मन बहलाओ, मनोरंजन करो। लोगों को तनाव मत दो। लोगो को जगाने वाली कविताये लिखोगे तो लोग तुमको ही भगा देंगे। इसलिये मेरी मानो, चटकुल्ले लिखो, और ऐसा कुछ लिखो, कि किसी के पल्ले न पड़े। और मान लो तुम्हारे मन में राजा के खिलाफ़ गुस्सा है तो तुम लिखो, 'एक आग बरस रही है उधर, सुलग रहा है जंगल। चिड़िया गा रही है टुट..टुट..टुट...'' अरे, हम जैसे कवियों से कुछ चालाकी सीखो'। वरना सड़ जाओगे''। दयाराम हँसा। और आगे बढ़ गया। फिर दोनों की वर्षों तक मुलाक़ात नहीं हुई। दयाराम की कविताये पढ़ कर राजदरबार के लोग नाराज़ होते रहे। एक समय तो ऐसा भी आया कि राजदरबार से आदेश ही जारी कर दिया गया, कि दयाराम को राज्य से बाहर निकाल दिया जाए, क्योंकि वह लोगों को भड़काता है। राज्य ने कविता की परिभाषा तय कर दी-'जो कविता भड़काए, वह कविता नहीं होती। जो कवित्त हँसाये, मन बहलाए, वही सच्ची कविता है। जैसी कविता धनीराम लिखता है'। |
27-06-2013, 11:12 PM | #3 |
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Re: कहानी / जबरदस्त या जबरदस्ती
एक दिन धनीराम को राजदरबार ने सम्मानित किया। बड़ा समारोह किया। धनीराम ने कविता क्या है' इस विषय पर भाषण दिया। उसने सबको ख़ूब हँसाया। उधर दूर देश में बैठा कर दयाराम जनसाधारण के दुःख-दर्द को स्वर दे रहा था। उसे आसपास के लोग भी पसंद नहीं करते थे। लोगों को हँसने-गुदगुदाने वाली कविताये चाहिए थी। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी मिले जिन्हें दयाराम की कविताये पसंद थी। लोग आपस में बतियाते-''सच्चा कवि यही है।''
...समय बीतता गया। एक दिन दयाराम बीमार हो कर मर गया। उसके पास दवा-दारू के पैसे भी नहीं थे। उधर धनीराम मोटा-ताज़ा हो चुका था। स्वस्थ था। उसे दवा की ज़रूरत नहीं थी। हाँ , दारू के भरपूर पैसे थे उसके पास'' इतना बोलकर वेताल रुक गया और बोला, '' कहानी को कितना खींचूँ? राजन, कहानी का अंत अभी बाकी है। अब तुम बताओ, कि दयाराम तो मर गया, धनीराम ऐश करता रहा। फिर उसका अंत कैसा रहा?'' विक्रमार्क कहानी सुन कर उत्तेजित हो चुका था। दयाराम के प्रति उसके मन मे सहानुभूति थी। धनीराम के प्रति गुस्सा था। उसने कहना शुरू किया, ''समाज का दुर्भाग्य है कि यहा सच कहने वाले निर्वासित हो जाते है और चाटुकार सम्मानित होते है। धनीराम भी एक दिन खा-पीकर भरपूर ऐश करके एक दिन मर गया। लेकिन उसके मरने के कुछ दिन बाद उठापटकपुर के लोग उसे भूल भी गए कि कोई धनीराम भी कभी हुआ था। मगर दयाराम की कवितायें लोग गाने लगे। इधर-उधर जब कभी दुःख, करुणा, क्रांति, त्याग की बात निकली, लोगों की ज़ुबान पर दयाराम की कविताएँ गूँजने लगी। मतलब यह कि गुमनाम कवि अमर हो गया और नाम वाला कवि हमेशा-हमेशा के लिये मर गया। यही अटल सत्य है। यह समझ लो,कि चाटुकार, मसखरे कलाकार क़िस्म के डरपोक कवि जीते-जी चर्चा में ज़रूर रहते है, मगर सच्च्चा पानीदार महान कवि मरने के बाद ज़िंदा रहता है।'' विक्रमार्क ने बिल्कुल सही कहा था। मगर उसका मौन भंगभी हो चुका था इसलिए वेताल को मौक़ा मिल गया और वह फिर डाल पर जा कर लटक गया। और विक्रमार्क हमेशा की तरह फिर भगा उसके पीछे... (अंतर-जाल से) ** |
27-06-2013, 11:50 PM | #4 |
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Re: कहानी / जबरदस्त या जबरदस्ती
बहुत अच्छी कहानी है भाई, आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।
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28-06-2013, 11:41 AM | #5 |
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Re: कहानी / जबरदस्त या जबरदस्ती
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