30-06-2013, 07:43 AM | #1 |
Diligent Member
|
पाँच दोहे
. . . . . . . . वे जग मेँ हैँ मर चुके, सत्य न जिनके संग। बिन डोरी कबतक उड़े, जैसे कटी पतंग।।1।। बोली से ही सुख मिले, बोली से संताप। बोली से मालूम हो, मन के कद की नाप।।2।। संकट हो भारी बहुत, अंधेरा घनघोर। उसमेँ भी कुछ रास्ते, जाते मंजिल ओर।।3।। दारू पीने के लिए, जो भी बेचे खेत। बन जाता है एक दिन, वह मुट्ठी की रेत।।4।। धरती की चन्दा तलक, जाती है कब गंध। इसीलिए करिए सदा, समता मेँ सम्बन्ध।।5।। दोहे- आकाश महेशपुरी . . . . . . . . . . . . . . . . . . . पता- वकील कुशवाहा उर्फ आकाश महेशपुरी ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश मो.न.- 09919080399 Last edited by आकाश महेशपुरी; 30-06-2013 at 08:05 AM. |
30-06-2013, 11:58 AM | #2 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 241 |
Re: पाँच दोहे
[QUOTE=आकाश महेशपुरी;313741]पाँच दोहे
. . . . . . . . वे जग मेँ हैँ मर चुके, सत्य न जिनके संग। बिन डोरी कबतक उड़े, जैसे कटी पतंग।।1।। बोली से ही सुख मिले, बोली से संताप। बोली से मालूम हो, मन के कद की नाप।।2।। संकट हो भारी बहुत, अंधेरा घनघोर। उसमेँ भी कुछ रास्ते, जाते मंजिल ओर।।3।। दारू पीने के लिए, जो भी बेचे खेत। बन जाता है एक दिन, वह मुट्ठी की रेत।।4।। धरती की चन्दा तलक, जाती है कब गंध। इसीलिए करिए सदा, समता मेँ सम्बन्ध।।5।। दोहे- आकाश महेशपुरी बहुत सुन्दर, आकाश जी. इन श्रेष्ठ दोहा रचनाओं को फोरम पर हम सभी के साथ शेयर करने के लिए धन्यवाद. |
30-06-2013, 02:44 PM | #3 |
VIP Member
|
Re: पाँच दोहे
बदुत ही बदीया
__________________
Disclamer :- All the My Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed. |
30-06-2013, 06:42 PM | #4 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99 |
Re: पाँच दोहे
मैं नतमस्तक हूँ बन्धु ऐसी अद्भुद पंक्तियों की रचना एवं प्रस्तुति पर ..
अंको के जो शिखर पर रहते बना मकान ८ प्रविष्टि वाला आकाश छू रहा है आसमान
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
Bookmarks |
|
|