29-06-2013, 03:39 PM | #11 |
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Re: समाचार
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02-07-2013, 10:32 AM | #12 |
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उत्तराखंड: फिर तेज बारिश का खतरा, बदरीनाथ में अभी भी 150 फंसे
देहरादून। उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा को 16 दिन बीत चुके हैं। लेकिन अब भी ये तस्वीर साफ नहीं हो पाई है कि आखिर इस त्रासदी में कितने चिराग बुझ गए। दर्द के उस मंजर को लोग अभी भूल भी नहीं पाए थे कि मौसम विभाग की ओर से फिर से चेतावनी आ गई है। पढ़ें: आपदा पर सियासी जंग उम्मीद है इस बार राज्य सरकार पिछली बार की तरह इस चेतावनी को अनसुना नहीं करेगी। मौसम विभाग ने चेताया है कि 4-7 जुलाई के बीच उत्तराखंड में भारी बारिश हो सकती है। पढ़ें: तो उत्तराखंड नहीं लेगा गुजराती संस्था से मदद दिल्ली के मौसम विभाग ने बताया कि इस बारिश की मात्रा 70-130 मिलीमीटर तक रह सकती है, जो 16-17 जून को उत्तराखंड में आई बाढ़ की तुलना में कम होगी। विभाग की मानें तो 5 और 6 जुलाई को अधिक बारिश होने की संभावनाएं हैं। दूसरी तरफ, आपदा प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्य तेज करने में प्रशासन को पसीने छूटने लगे हैं। टूटी सड़कें और ध्वस्त संपर्क मार्ग इस राह में बड़ी अड़चन साबित हो रहे हैं। हालांकि हेलीकाप्टर की मदद से गावों में राहत सामाग्री पहुंचाई जा रही है, लेकिन यह गिने-चुने इलाकों तक ही सीमित है। दूरस्थ क्षेत्र के गांवों के लिए हालात विकट होते जा रहे हैं। बदरीनाथ में बचाव अभियान जारी रहा। शासन और प्रशासन यात्रियों की संख्या पर बना भ्रम दूर नहीं कर पा रहे हैं। रविवार को यात्रियों की संख्या मात्र तीन सौ बता रहे प्रशासन के अनुसार सोमवार को बदरीनाथ से कुल 1041 यात्री निकाले गए। प्रशासन की मानें तो अभी बदरीनाथ से लगभग 150 लोगों को निकाला जाना बाकी है। गौरतलब है कि 16-17 जून को उत्तराखंड में आई आपदा में हजारों लोगों की जान चली गई थी। कई गांव और घर तबाह हो गए थे। प्रशासन से मिले आंकड़ों के मुताबिक अब भी कई हजार लोग लापता हैं। इसलिए ये कहना मुश्किल हो रहा है कि आखिर इस त्रासदी में कितने मारे गए हैं। |
02-07-2013, 10:32 AM | #13 |
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उत्तराखंड का गुजराती संस्था की सेवा लेने से इन्कार
ऋषिकेश [देवेंद्र सती/हरीश तिवारी]। केदार घाटी में शवों को तलाशने के लिए राज्य सरकार ने पहले तो सूरत, गुजरात की एक संस्था को बुलावा भेज दिया और जब वह संस्था लाव-लश्कर के साथ आ गई तो सरकार बुलावे से ही मुकर रही है। बगैर कोई शुल्क लिए सेवा के लिए देहरादून पहुंची 14 सदस्यीय इस टीम के पास कठिन परिस्थितियों में काम करने का खासा अनुभव है। टीम तीन दिन से सरकारी गलियारों की खाक छान रही है, लेकिन सरकार है कि उसे पास ही नहीं फटकने दे रही। यह तब है जब केदार घाटी में शवों को खोजना और उनका दाह संस्कार करना मुश्किल हो रहा है। यह संस्था मलबे में शव ढूंढ़ने के साथ ही उनका धार्मिक रीति रिवाज से अंतिम संस्कार भी करती है। संस्था में अलग-अलग धर्मो के सदस्य शामिल हैं। उत्तराखंड में तबाही की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें राज्य सरकार अब सूरत की संस्था को बुलावा न भेजने की बात भले कर रही हो, लेकिन खुद उसी ने टीम के खाने-ठहरने की व्यवस्था की हुई है। सरकार के रवैये से टीम आहत है, लेकिन अपनी उपेक्षा-अनदेखी पर खुल कर बोलने को तैयार नहीं। सियासी गलियारों में इसके पीछे गुजरात फैक्टर को देखा जा रहा है। केदार घाटी में तबाही का पता चलने पर सूरत की एकता ट्रस्ट ने 25 जून को मुख्यमंत्री को भेजे मेल के जरिये आपदा प्रभावित क्षेत्रों में मलबे में दबे शवों को तलाशने और उनका अंतिम संस्कार करने की इच्छा जताई। संस्था ने बताया कि उसके पास इस तरह के काम का अनुभव है। भुज में आए भूकंप और चेन्नई में सुनामी में मारे गए लोगों के शव ढूंढने में टीम के लोगों ने मदद की थी। पढ़ें: आपदा पर कांग्रेस-भाजपा के बीच छिड़ी साइबर जंग संस्था के प्रस्ताव पर गृह विभाग के प्रमुख सचिव ओम प्रकाश के कार्यालय से 26 जून को इस संबंध में मेल किया गया कि संस्था की सेवा लिए जाने की स्थिति में उसके सदस्यों को हवाई यात्रा और मानव संसाधन उपलब्ध कराया जाएगा। संस्था ने इस पर हामी भरी तो प्रमुख सचिव गृह के कार्यालय से 27 जून को एक और मेल किया गया कि टीम सदस्यों को देहरादून स्थित जौलीग्रांट हवाई अड्डे से आपदा प्रभावित क्षेत्र तक हवाई मार्ग से ले जाने के साथ वहां प्रवास के दौरान जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। विषम क्षेत्र का हवाला देकर संस्था को टीम सदस्यों के स्वास्थ्य पहलुओं पर भी गौर करने का सुझाव दिया गया। पढ़ें: विघटनकारी हैं मोदी, फिर धूल चाटेगी भाजपा संस्था के चेयरमैन अब्दुल रहमान बताते हैं कि उनकी टीम के सदस्य 29 जून को हवाई मार्ग से देहरादून पहुंचे। उन्होंने प्रमुख सचिव गृह को जौलीग्रांट पहुंचने की जानकारी दी तो उनसे वापस लौटने का आग्रह किया गया। रहमान के अनुसार शासन ने वापसी के लिए हेलीकॉप्टर का इंतजाम करने के साथ ही यहां आने पर हुआ खर्च लौटाने का ऑफर भी दे डाला। रहमान बताते हैं कि चूंकि वह पैसे के लिए नहीं, बल्कि सेवा भाव से अपने खर्चे पर यहां आए हैं, लिहाजा उन्होंने प्रमुख सचिव से सेवा का मौका देने की गुजारिश की। इस पर कुछ पुलिस कर्मी टीम के पाए आए और उसें ऋषिकेश में माता मंदिर धर्मशाला में ठहरा गए। 29 जून से टीम केदारघाटी में रवानगी के आदेश का इंतजार कर रही है। पढ़ें: उत्तराखंड में नदी किनारे भवन निर्माण पर लगी रोक टीम में शामिल डॉ. इमरान मुल्ला दो दिन से सीएम व अधिकारियों से मिलने के लिए सचिवालय के गलियारों धक्के खा रहे हैं, लेकिन मुलाकात नहीं हो पा रही है। एक स्थानीय एनजीओ के माध्यम से भी संस्था ने सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की, पर इंतजार खत्म नहीं हुआ। टीम लीडर अब्दुल का कहना है कि उनकी समझ में नहीं आ रहा कि बुलाने के बाद सरकार उन्हें केदारघाटी क्यों नहीं भेज रही? |
02-07-2013, 10:35 AM | #14 |
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Re: समाचार
उत्तराखंड की तबाही राष्ट्रीय आपदा क्यों नहीं?
केंद्र सरकार की ओर से कुदरत के कहर को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का कोई प्रावधान नहीं है। यही वजह है कि सरकार ने उत्तराखंड की तबाही को राष्ट्रीय आपदा घोषित नहीं कर उसे गंभीर व भीषण संकट यानी कलैमिटी ऑफ सीरियस नेचर (सीएसएन) माना है। सरकार के मुताबिक उत्तराखंड की तबाही को सीएसएन घोषित करने से केंद्र और राज्य के साथ मिलकर तत्काल और दूरगामी योजनाओं पर काम करने के कई तकनीकी रास्ते खुल जाते हैं। साथ ही इस त्रासदी से उबरने में सांसद निधि के फंड का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। सरकार ने उत्तराखंड की प्राकृतिक आपदा को कलैमिटी ऑफ सीरियस नेचर करार देने की जानकारी संसद के दोनों सदनों के सचिवालयों को भी भेज दी है, ताकि सांसद अपनी सांसद निधि से भी मदद कर सकें। सांसद निधि के नियमों के मुताबिक सरकार की इस घोषणा से देश भर के सांसद अपने इलाके के लिए खर्च किए जाने वाले 50 लाख के फंड को उत्तराखंड के लिए दे सकते हैं। सरकार को उम्मीद है कि इससे प्रधानमंत्री की ओर से 1000 करोड़ रुपये के राहत पैकेज के अलावा सांसदों की ओर से भारी रकम सहायता के तौर पर मिलेगी। गृहमंत्रालय के आपदा प्रबंधन के उच्च अधिकारी के मुताबिक इस तबाही को तकनीकी तौर पर राष्ट्रीय आपदा नहीं कहा जा सकता क्योंकि सरकार के शब्दकोश में कुदरत के कहर के लिए राष्ट्रीय आपदा जैसा शब्द है ही नहीं। अधिकारी के मुताबिक संघीय ढांचे में राहत व बचाव का असल दायित्व तो राज्य का है लेकिन उत्तराखंड जैसी आपात स्थिति में केंद्र के बिना यह संभव नहीं। यही वजह है कि इसे सीएसएन घोषित किया गया ताकि तकनीकी तौर पर केंद्र के मदद से रास्ते खुल जाएं। हालांकि खाद्य व नागरिक आपूर्ति और स्वास्थ्य जैसे मंत्रालयों के लिए इसे सीएसएन जैसे प्रावधानों की भी जरूरत नहीं। ये मंत्रालय अपने बूते ही राहत और बचाव के लिए पहल कर सकते हैं। अधिकारी के मुताबिक गृहमंत्रालय और वित्त मंत्रालय ने सुनामी और लेह के बादल फटने जैसी तबाही के बाद उठाए गए कदमों की तर्ज पर उत्तराखंड में भी अंतर मंत्रालयी समूह भेजने की हरी झंडी दे दी है। वहां की स्थिति में थोड़ी सुधार आते ही यह समूह प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करेगी। यह समूह उत्तराखंड को इस तबाही से उबारने के लिए दूरगामी उपायों पर अपनी रिपोर्ट देगी। जहां तक तत्काल उपायों का सवाल है उसके लिए केंद्र हर उपाय कर रहा है। |
02-07-2013, 10:36 AM | #15 |
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Re: समाचार
आकाश-4 के यह फीचर्स आपको दीवाना कर देंगे
कम कीमत वाले आकाश टैबलेट के चौथे संस्करण की नई विशेषताओं से पर्दा उठ गया है। नए फीचर्स में इसमें कॉलिंग सुविधा के साथ ही हाई स्पीड 4जी सेवा भी उपलब्ध कराई जाएगी। सरकार द्वारा जारी विनिर्देश में कहा गया है कि इसमें बाहरी डोंगल की मदद से कॉलिंग सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। साथ ही 2जी या 3जी या 4जी डोंगल की मदद से डाटा काम करेगा। महत्वाकांक्षी आकाश प्रोजेक्ट दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल के मानव संसाधन विकास मंत्री रहने के वक्त शुरू किया गया था। आकाश टैबलेट का पहला संस्करण 5 अक्तूबर 2011 को लांच किया गया था। इसके बाद से आकाश टैबलेट को अपग्रेड किया जाता रहा है। |
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